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Kuch log ese hote hai jo itihash padhte hai,Kuch Ithihash Padhate hai, Kuch ese hote hai Jo NYDC mein aate hai Or Khud Itihash Banate Hai. Jai Hind Jai Bharat!...Khem Chand Rajora....A Great Leader's Courage to fulfill his Vision comes from Passion, not Position...Gajendra Kumar....National Youth Development Committee is a Platform which remove the hesitation and improve the motivation and talent of the Youth...Manu Kaushik..!!

About Manu

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मैं अपने प्यारे भारत को स्वर्ग से भी सुंदर बनाना चाहता हूँ जहाँ देवता भी आने को तरसें..इसे फ़िर से सोने की चिडि़या और विश्वगुरु बनाना चाहता हूँ ना सिर्फ़ धर्म के मामले में बल्कि हरेक क्षेत्र में..अपने देश को मैं फ़िर से इतना शक्तिशाली बना देना चाहता हूँ कि अगर ये जम्हाई भी ले ले तो पूरे विश्व में तूफ़ान आ जाय. मैं अपने भारतवर्ष ,अपने माता-पिता तथा सनातन वैदिक धर्म से अगाध प्रेम और सम्मान करता हूँ |
हमारे बारे में, हम बताएँगे, फिर भी, क्या आप समझ पाएंगे, नहीं न, फिर क्या, हम बताते आप उलझ जाते, आप समझते तो हम मुकर जाते, क्यूंकि अब किसी को किसी के बारे में जानने की, न तो चाहत है और न ही फुर्सत है |
वन्दे मातरम्... जय हिंद... जय भारत...
कोशिश तो कोई करके देखे,यहाँ सपने भी सच होते है ।
ये दुनिया इतनी बुरी नहीं, कुछ लोग अच्छे भी होते है ।।
~ मनु कौशिक

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Tuesday 21 August 2012

नोचते भी गए ,लुटते भी गए देश के नेता सिर्फ यही जाने ,


''नोचते भी गए ,लुटते भी गए देश के नेता सिर्फ यही जाने ,
 जीना तो उसी का जीना है जो लूटना अपने वतन को जाने "
''ऐ वतन ऐ वतन हम को तेरी कसम  |
 तुझे बेच के ही पूरा अब दम लेंगे हम   |
 मात्रभूमि क्या चीज़ है विदेशियों के कदमो में हम ,
 इस देश के स्वाभिमान को चढ़ा जायेंगे
"ऐ वतन ऐ वतन ........

''कोई अमरीका से ,कोई ऑस्ट्रेलिया से ,कोई चाइना से है कोई है ब्रिटेन से ,
 विदेशी कम्पनियो को फिर से बुला बुला के लाये है है हम
"हर इक राष्ट्र से दुनिया के हर इक कोनो से ,
 हर इक राष्ट्र से दुनिया के हर इक कोनो से ........
 पार्टी कोई भी सही पर धर्म (पैसा) एक है |
 घोटालो पे घोटाले करते जायेंगे हम |
"ऐ वतन ऐ वतन ........

''हम रहें न रहें इसका कुछ गम नहीं ,
 इस देश को तो पूरा नोंच खायेंगे हम |
"हमारी पीढियां ऐश से जियेंगी तो क्या
 माँ भारती को पूरा लहू लुहान कर जायेंगे हम |
 माँ भारती को पूरा लहू लुहान कर जायेंगे हम.............
 बेच के विदेशियों के हाथो में इस देश को
 देखना फिर से गुलाम हम बना जायेंगे |
"ऐ वतन ऐ वतन ........

"तेरी जानिब उठी जो सरफरोशी की लहर ,
 उस लहर को मिटाते ही जायेंगे हम
"मेरे विदेशी खातो पे जो रखी तुने कहर की नज़र ,
 उस नज़र को झुका के ही दम लेंगे हम
 उस नज़र को झुका के ही दम लेंगे हम ...........
 जो भी पद आएगा , अब सामने
 उस पद की गरिमा को भी हम मिटा जायेंगे |
"ऐ वतन ऐ वतन ........

"चाहे गालियाँ दो,या मुहं पे थप्पड़ जड़ो ,
 देश को बेचने अब हम चल दिए
 बहुमत दिया था लोगो ने जिस हाथ से ,
 उन्हें विदेशी बेड़ियों में जकड के हम निकल लिए
" तुम न देखोगे कल की बहारे तो क्या
 अपनी पीढ़ियों के लिए तो हम कमा जायेंगे |

''ऐ वतन ऐ वतन हम को तेरी कसम  |
 तुझे बेच के ही पूरा अब दम लेंगे हम   |

..................
लेखक
राजेश कुमार

क्रांतिकारी दिनेश गुप्ता


दिनेश गुप्ता का जन्म 6 दिसंबर 1911में ग्राम जोशोलोंग जिला मुंशीगंज (वर्तमान बंगलादेश) में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात स्नातक शिक्षा प्राप्त करने हेतु ढाका कॉलेज में प्रवेश लिया। वहीं दिनेश गुप्ता ने सन १९२८ में बंगाल क्रांतिकारी संघ (नेताजी सुभाष चन्द्र बोस द्वारा गठित) की सदस्यता ग्रहण की। जो प्रारंभ में राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी का घटक दल थी परन्तु कालान्तर में कांग्रेस की नीतियों से खिन्न होकर स्वयं को अलग कर सशस्त्र क्रांति से जोड़ लिया एवं क्रूर अँगरेज़ अधिकारीयों को दंड देने की ठानी।

स्वतंत्र भारत में आज के इतिहासकारों ने एक पक्षपातपूर्ण धारणा बना डाली हैं कि भारत पर राज करने वाले अंग्रेजों को यहाँ से भगाने में अहिंसा का झंडा लेकर चलने वालों का ही योगदान था जबकि गर्म दल से सम्बंधित सशत्र क्रांति करने वाले, अपने जीवन की आहुति देने वाले,अपने प्राणों को न्योछावर करने वाले हजारों ऐसे क्रांतिकारियों की अवहेलना न केवल उन गुमनाम शहीदों का अपमान हैं अपितु भारत के इतिहास के साथ अन्याय भी हैं.अंग्रेज अफसरों द्वारा लिखे गए लेखों, पुस्तकों से पता चलता हैं की उन्हें भारत में रहते हुए सबसे ज्यादा भय,डर अगर किसी से लगता था तो वो सर पर कफ़न बांध कर, हाथ में पिस्तोल लेकर आज़ादी का गीत गाते हुए उन दीवानों से ,उन जवान युवकों से जिन्हें अपने घर,परिवार,आमदनी, रोजी-रोटी की परवाह न थी अगर परवाह थी तो बस केवल और केवल भारत देश को आजाद करवाने की.आज की जवान पीढ़ी विशेषकर भारत के पूर्वी हिस्से यानि बंगाल से जो सम्बन्धित नहीं हैं उनमें से कितनो ने अपने जीवन में क्रांतिवीर दिनेश चन्द्र गुप्ता का नाम सुना हैं जिन्होंने भारत माँ की बलिवेदी पर केवल १९ वर्ष की अल्पायु में हस्ते हस्ते अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे.
अविभाजित भारत के मुन्सीगंज जिले के जोशागंज गाँव में आज से ठीक १०० वर्ष पहले वीर दिनेश चन्द्र गुप्ता का जन्म हुआ था. बचपन से कुशाग्र बुद्धि दिनेश चन्द्र भारतीयों के अधिकारों को अंग्रेजी बूटों के तले कुचलते देख व्यथित हो उठते थे.१९२८ में आप नेताजी सुभाष चन्द्र बोस द्वारा स्थापित करे गए क्रन्तिकारी संगठन बंगाल वोलुयुंटर से जुड़ गए और अस्त्र-शास्त्र में ट्रेनिंग लेकर पारंगत हो गए.  उन दिनों अंग्रेज अधिकारी किसी भी भारतीय क्रन्तिकारी को यदि पकड़ लेते तो उस पर इतने अत्याचार करते कि वह दोबारा क्रांति का नाम न ले. सिम्पसन नामक एक अंग्रेज अधिकारी तो अपने अत्याचारों के लिए अत्यंत कुख्यात हो गया था.

दिनेश चन्द्र इस युवा क्रांतिकारियों के दिमाग में चल रहे मानसिक द्वन्द को जीतने कि योजना बनाने में लग गए जिससे न केवल अंग्रेज सरकार के मन में क्रांतकारियों का भय छा जाये बल्कि उसके साथ साथ अन्य क्रांतिकारियों का मनोबल भी बढ जाये. उन्होंने सरकार के सबसे सुरक्षित स्थान रईटर बिल्डिंग में घुस कर अंग्रेजों को सबक सिखाने कि योजना बनाई. ८ दिसम्बर १९३० को बादल गुप्ता और बिनोय बसु के साथ दिनेश चन्द्र अंग्रेजी वेश भूषा में, अपने कोट में रिवोल्वर दबाये हुए आसानी से रईटर बिल्डिंग में घुस गए. सबसे पहले सिम्पसन को ही उसकी करनी का फल यमलोक पंहुचा कर दिया गया. इस अप्रत्याशित हमले से पुलिस  विभाग में मानों भूचाल ही आ गया. आनन फानन में तीनों को घेर लिया गया. चारों तरफ से फंसते देख अपने आपको जीवित न पकडे जाने का प्रण लिए हुए युवकों ने आत्मदाह का निश्चय किया.बादल गुप्ता ने जहर खाकर वहीँ प्राण दे दिए, बिनोय बसु और दिनेश चन्द्र ने अपने आपको गोली मार ली. बिनोय का हस्पताल में निधन हो गया जबकि दिनेश चन्द्र को बचा लिया गया.
इसके बाद वही राजनैतिक ड्रामा शुरू हुआ और अंत में केवल १९ वर्ष कि अवस्था में ७ जुलाई १९३१ को दिनेश चन्द्र को फँसी के तख्ते पर चड़ा दिया गया.
आज उनके १०० वें जन्मदिवस के अवसर पर ब्रिटिश सरकार के घर में घुस कर उसकी नींव को हिला देने वाले वीर दिनेश चन्द्र गुप्ता को हम स्मरण करते हैं जिनका बलिदान आज हमे अन्याय के विरुद्ध प्रेरणा दे रहा हैं और देता रहेगा.आजाद भारत में जन्म लेने वालों पर दिनेश चन्द्र सरीखे वीर क्रांतिकारियों का कितना उपकार हैं इतिहास इसका गवाह हैं.





बाघा जतीन मुखर्जी (जतीन्द्रनाथ मुखोपाध्याय )

Bagha Jatin at the age of 24, in Darjeeling, 1903

बाघा जतिन ( 07 दिसम्बर, 1879 - 10 सितम्बर , 1915) जतींद्र नाथ मुखर्जी का जन्म जैसोर जिले में सन् 1879 ईसवी में हुआ था। पाँच वर्ष की अल्पायु में ही उनके पिता का देहावसान हो गया। माँ ने बड़ी कठिनाई से उनका लालन-पालन किया। 18 वर्ष की आयु में उन्होंने मैट्रिक पास कर ली और परिवार के जीविकोपार्जन हेतु स्टेनोग्राफी सीखकर कलकत्ता विश्वविद्यालय से जुड़ गए। वह बचपन से हई बड़े बलिष्ठ थे। सत्यकथा है कि २७ वर्ष की आयु में एक बार जंगल से गुजरते हुए उनकी मुठभेड़ एक बाघ (रॉयल बेन्गाल टाइगर) से हो गयी। उन्होंने बाघ को अपने हंसिये से मार गिराया था। इस घटना के बाद यतीन्द्रनाथ "बाघा जतीन" नाम से विख्यात हो गए थे।

बाघा जतीन मुखर्जी के बचपन का नाम जतीन्द्रनाथ मुखोपाध्याय  था। वे ब्रिटिश शासन के विरुद्ध कार्यकारी दार्शनिक क्रान्तिकारी थे। वे युगान्तर पार्टी के मुख्य नेता थे। युगान्तर पार्टी बंगाल में क्रान्तिकारियों का प्रमुख संगठन थी।

1895 shortly before joining the University of Calcutta.

क्रांतिकारी जीवन
उन्हीं दिनों अंग्रेजों ने बंग-भंग की योजना बनायी। बंगालियों ने इसका विरोध खुल कर किया। यतींद्र नाथ मुखर्जी का नया खून उबलने लगा। उन्होंने साम्राज्यशाही की नौकरी को लात मार कर आन्दोलन की राह पकड़ी। सन् 1910 में एक क्रांतिकारी संगठन में काम करते वक्त यतींद्र नाथ 'हावड़ा षडयंत्र केस' में गिरफ्तार कर लिए गए और उन्हें साल भर की जेल काटनी पड़ी।
जेल से मुक्त होने पर वह 'अनुशीलन समिति' के सक्रिय सदस्य बन गए और 'युगान्तर' का कार्य संभालने लगे। उन्होंने अपने एक लेख में उन्हीं दिनों लिखा था-' पूंजीवाद समाप्त कर श्रेणीहीन समाज की स्थापना क्रांतिकारियों का लक्ष्य है। देसी-विदेशी शोषण से मुक्त कराना और आत्मनिर्णय द्वारा जीवनयापन का अवसर देना हमारी मांग है।' क्रांतिकारियों के पास आन्दोलन के लिए धन जुटाने का प्रमुख साधन डकैती था। दुलरिया नामक स्थान पर भीषण डकैती के दौरान अपने ही दल के एक सहयोगी की गोली से क्रांतिकारी अमृत सरकार घायल हो गए। विकट समस्या यह खड़ी हो गयी कि धन लेकर भागें या साथी के प्राणों की रक्षा करें! अमृत सरकार ने जतींद्र नाथ से कहा कि धन लेकर भागो। जतींद्र नाथ इसके लिए तैयार न हुए तो अमृत सरकार ने आदेश दिया- 'मेरा सिर काट कर ले जाओ ताकि अंग्रेज पहचान न सकें।' इन डकैतियों में 'गार्डन रीच' की डकैती बड़ी मशहूर मानी जाती है। इसके नेता यतींद्र नाथ मुखर्जी थे। विश्व युद्ध प्रारंभ हो चुका था। कलकत्ता में उन दिनों राडा कम्पनी बंदूक-कारतूस का व्यापार करती थी। इस कम्पनी की एक गाडी रास्ते से गायब कर दी गयी थी जिसमें क्रांतिकारियों को 52 मौजर पिस्तौलें और 50हजार गोलियाँ प्राप्त हुई थीं। ब्रिटिश सरकार हो ज्ञात हो चुका था कि 'बलिया घाट' तथा 'गार्डन रीच' की डकैतियों में यतींद्र नाथ का हाथ था।

Bagha Jatin after the final battle. Balasore, 1915.

अंतिम समय

1 सितंबर 1915 को पुलिस ने जतींद्र नाथ का गुप्त अड्डा 'काली पोक्ष' (कप्तिपोद) ढूंढ़ निकाला। यतींद्र बाबू साथियों के साथ वह जगह छोड़ने ही वाले थे कि राज महन्ती नमक अफसर ने गाँव के लोगों की मदद से उन्हें पकड़ने की कोशश की। बढ़ती भीड़ को तितरबितर करने के लिए यतींद्र नाथ ने गोली चला दी। राज महन्ती वहीं ढेर हो गया। यह समाचार बालासोर के जिला मजिस्ट्रेट किल्वी तक पहुंचा दिया गया। किल्वी दल बल सहित वहाँ आ पहुंचा। यतीश नामक एक क्रांतिकारी बीमार था। जतींद्र उसे अकेला छोड़कर जाने को तैयार नहीं थे। चित्तप्रिय नामक क्रांतिकारी उनके साथ था। दोनों तरफ़ से गोलियाँ चली। चित्तप्रिय वहीं शहीद हो गया। वीरेन्द्र तथा मनोरंजन नामक अन्य क्रांतिकारी मोर्चा संभाले हुए थे। इसी बीच यतींद्र नाथ का शरीर गोलियों से छलनी हो चुका था। वह जमीन पर गिर कर 'पानी-पानी' चिल्ला रहे थे। मनोरंजन उन्हें उठा कर नदी की और ले जाने लगा। तभी अंग्रेज अफसर किल्वी ने गोलीबारी बंद करने का आदेश दे दिया। गिरफ्तारी देते वक्त जतींद्र नाथ ने किल्वी से कहा- 'गोली मैं और चित्तप्रिय ही चला रहे थे। बाकी के तीनों साथी बिल्कुल निर्दोष हैं। 'इसके अगले दिन भारत की आज़ादी के इस महान सिपाही ने अस्पताल में सदा के लिए आँखें मूँद लीं।।



खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी




सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी

चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी
बरछी ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी

वीर शिवाजी की गाथायें उसकी याद ज़बानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

लक्ष्मी थी या दुर्गा थी, वह स्वयं वीरता की अवतार
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार
नकली युद्ध व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़

महाराष्टर कुल देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झांसी में
ब्याह हुआ रानी बन आयी लक्ष्मीबाई झांसी में
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छायी झांसी में
सुघट बुंदेलों की विरुदावलि सी वह आयी झांसी में

चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव से मिली भवानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजयाली छायी
किंतु कालगति चुपके चुपके काली घटा घेर लायी
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भायी
रानी विधवा हुई, हाय विधि को भी नहीं दया आयी

निसंतान मरे राजाजी रानी शोक समानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हर्षाया
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया
फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झांसी आया

अश्रुपूर्ण रानी ने देखा झांसी हुई बिरानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट फिरंगी की माया
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया
डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया
राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया

रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों बात
कैद पेशवा था बिठुर में, हुआ नागपुर का भी घात
उदैपुर, तंजौर, सतारा, कर्नाटक की कौन बिसात?
जबकि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात

बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

रानी रोयीं रनवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार
सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार
नागपूर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार

यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान
बहिन छबीली ने रण चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान

हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी
यह स्वतंत्रता की चिन्गारी अंतरतम से आई थी
झांसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी
मेरठ, कानपूर, पटना ने भारी धूम मचाई थी

जबलपूर, कोल्हापूर में भी कुछ हलचल उकसानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम

लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बड़ा जवानों में
रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वन्द्ध असमानों में

ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

रानी बढ़ी कालपी आयी, कर सौ मील निरंतर पार
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खायी रानी से हार
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार

अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

विजय मिली पर अंग्रेज़ों की, फिर सेना घिर आई थी
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी
युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी

पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय घिरी अब रानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार
किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार
घोड़ा अड़ा नया घोड़ा था, इतने में आ गये सवार
रानी एक शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार पर वार

घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीरगति पानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

बाबू गेनू




(12 दिसंबर 1930 ) को आज ही के दिन महान क्रंतिकारी बाबू गेनू ने अंग्रेजो के खिलाफ़ लड़ते हुए अपना बलिदान दे दिया था ।


बाबू गेनू आजादी से पहले सवदेशी अंदोलन में लगे हुए थे ।

इन्होने तो अपनी एक फ़ौज बना रखी था ।
जो रात को पानी के जहाजो मे आने वाले विदेशी सामान को आग लगाया करते थे ।

और दुकानो के आगे लेट जाते थे और लोगो से कहते थे । अगर ये विदेशी सामान ख़रीदना है तो हमारे ऊपर से गुजर कर जाओ ।

एक दिन एक ट्र्क में विदेशी समान भर लाया जा रहा जिसके साथ पुलिस भी थी

बाबू गेनू ने कहा इस ट्र्क को मैं शहर की तरफ़ नहीं जाने दूगां ।

और ट्र्क के आगे लेट गये ।
और पुलिस के आदेश पर ट्र्क वाले बाबू गेनू की ऊपर से निकाल दिया

और ये महान क्रंतिकारी मात्र 22 साल की आयु में अंग्रेजो और विदेशी सामान के खिलाफ़ लड़्ता हुआ । शहीद हो गया ।

भारत माता और स्वदेशी अंदोलन के अपना बलिदान देने वाले महान क्रंतिकारी बाबू गेनू को पूरे भारत की तरफ़ से शत शत नमन ।


बाबू गेनू अमर रहे ।

वंदेमातरम ।

इन सात लोगों को नींद में से भी जगा देना चाहिए...


 आचार्य चाणक्य द्वारा रचित चाणक्य नीति में सफलता प्राप्त करने के लिए अनेक सूत्र दिए गए हैं। जिन्हें जीवन में उतारने वाले व्यक्ति को निश्चित ही हर कदम सफलता प्राप्त होगी। आचार्य चाणक्य कहते हैं कि-

द्वारपाल, सेवक, पथिक, समय क्षुधातुर पाय।

भंडारी विद्यारथी, सोवत सात जगाय।।

द्वारपाल, नौकर, राहगीर, भूखा व्यक्ति, भंडारी, विद्यार्थी और डरे हुए व्यक्ति को नींद में से तुरंत उठा देना चाहिए।

आचार्य चाणक्य की यह नीति आज के समय में भी सटीक है। यदि कोई विद्यार्थी अधिकांश समय सोने में व्यतीत करता है तो उसे अच्छा परिणाम प्राप्त नहीं हो सकता। अत: सोते हुए विद्यार्थी को नींद से जगा देना चाहिए। इसी प्रकार यदि कोई मालिक काम के समय में नौकर सोता हुआ देख ले तो उसे नौकरी से निकाल देगा। अत: उसे भी उठा देना चाहिए। कोई राहगीर या यात्री कहीं रास्ते में सोता हुआ दिखाई दे तो उसे भी तुरंत उठा देना चाहिए। क्योंकि ऐसे में उसके सामान की चोरी का भय रहता है। इसी प्रकार यदि कोई भूखा व्यक्ति सोता हुआ दिखाई दे तो उसे भी उठा देना चाहिए और खाना खिला देना चाहिए।

चाणक्य कहते हैं कि अगर कोई भण्डार गृह का रक्षक, द्वारपाल या कोई डरा हुआ व्यक्ति सो रहा है तो इन्हें भी तुरंत उठा देना चाहिए क्योंकि इनके सोने से बहुत से लोगों को हानि का सामना करना पड़ सकता है।

शहीद उधम सिंह के घर की हालत देखकर आंसू आते है.

कोंग्रेस की सरकार नेहरू परिवार को याद करने के लिए लाखों रुपये बहाती है, लेकिन कभी भी देश के सच्चे सपूतों को याद नहीं करती, पिछले वर्ष आर टी आई से पता चला कि सैकड़ों  करोड़ रुपये इंदिरा व राजीव जयंती के नाम पर फूंके गये थे, जबकि सच्चे क्रन्तिकारी रानी लक्ष्मी बाई से लेकर सुभाष चन्द्र बोस तक किसी को भी आजतक याद नहीं किया गया, आइये हम शहीद उधम सिंह को भारत स्वाभिमान की और से नमन व स्मरण करते है.....
शहीद उधम सिंह के घर का यह चित्र हमारी भारत स्वाभिमान की सुनाम इकाई द्वारा भाई परमिंदर जोल्ली द्वारा भेजा गया है.

जहा आज वो लोग सत्ताओ का सुख भोग रहे है...जिन्होंने कोई कुबानी नहीं दी..........वही ऐसे वीर शहीद जिन्होंने भारत माता के अपमान का बदला लेने के लिए अपनी संकल्प की अग्नि को २० साल तक दबाये रखा और....जलियावाला कांड का बदला लिया....ऐसे  ही  पंजाब के वीर शहीद उधम सिंह को हम नमन करते है..............
तथाकथित देशभक्त जिनके वंशज आज सत्ताओ के शीर्ष पर  में है.......उनका द्वारा लूटा हुआ धन स्विस बांको में पड़ा है, देश के ८४ करोड़ लोग भूखे मर रहे है........
आइये आपको दिखाते है, शहीद उधम सिंह का संगरूर , सुनाम  स्थित घर , जिसको देखकर कोई यह नहीं कह सकता की यह किसी महान क्रिन्तिकारी का घर है...
आज तक सचे क्रन्तिकारी का इस देश के गदारो ने जिन्होंने ६५न सालो तक साशन किया कोई स्मारक नहीं बनाया,,,..लेकिन यहाँ पर एक परिवार की और से ४०० से अधिक योजनाये चल रही है,,,........
शहीद उधम सिंह का स्मारक देखकर  आंसू आते है..........


जी हाँ, यही टुटा फूटा स्मारक है, हमारे देश अपनी जान देने वाले का,इसके अतिरिक्त कहीं और कही कोई स्मारक नहीं यही पुश्तैनी स्थान उनके घर होता था.............


आज तक नेताजी का कोई स्मारक , पंडित बिस्मिल का, चंदेर्शेखर आजाद का, राजिंदर लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह का कोई भी स्मारक नहीं है, (अगर कोई है तो वह सरकार का नहीं बल्कि देशभक्त लोगो का बनवाया हुआ है).............
नई दिल्ली। भारत के महान क्रांतिकारियों में ऊधम सिंह का विशेष स्थान है। उन्होंने जलियांवाला बाग नरसंहार के दोषी माइकल ओडायर को गोली से उड़ा दिया था।


कुछ लोग अपने बलपर ही इस कार्य को कर रहे है.....उनकी यादो को जिन्दा रखे हुए


पंजाब में संगरूर जिले के सुनाम गांव में 26 दिसंबर 1899 में जन्मे ऊधम सिंह ने जलियांवाला बाग में अंग्रेजों द्वारा किए गए कत्लेआम का बदला लेने की प्रतिज्ञा की थी जिसे उन्होंने गोरों की मांद में घुसकर 21 साल बाद पूरा कर दिखाया। पंजाब के तत्कालीन गवर्नर माइकल ओडायर के आदेश पर ब्रिगेडियर जनरल रेजीनल्ड डायर ने अमृतसर के जलियांवाला बाग में शांति के साथ सभा कर रहे सैकड़ों भारतीयों को अंधाधुंध फायरिंग करा मौत के घाट उतार दिया था।
क्रांतिकारियों पर कई पुस्तकें लिख चुके जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर चमन लाल के अनुसार जलियांवाला बाग की इस घटना ने ऊधम सिंह के मन पर गहरा असर डाला था और इसीलिए उन्होंने इसका बदला लेने की ठान ली थी। ऊधम सिंह अनाथ थे और अनाथालय में रहते थे, लेकिन फिर भी जीवन की प्रतिकूलताएं उनके इरादों से उन्हें डिगा नहीं पाई। उन्होंने 1919 में अनाथालय छोड़ दिया और क्रांतिकारियों के साथ मिलकर जंग-ए-आजादी के मैदान में कूद पड़े।
जाने माने नेताओं डॉ. सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी के विरोध में लोगों ने जलियांवाला बाग में 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन एक सभा रखी थी, जिसमें ऊधम सिंह पानी पिलाने का काम कर रहे थे। पंजाब का तत्कालीन गवर्नर माइकल ओडायर किसी कीमत पर इस सभा को नहीं होने देना चाहता था और उसकी सहमति से ब्रिगेडियर जनरल रेजीनल्ड डायर ने जलियांवाला बाग को घेरकर अंधाधुंध फायरिंग करा दी। अचानक हुई गोलीबारी से बाग में भगदड़ मच गई। बहुत से लोग जहां गोलियों से मारे गए, वहीं बहुतों की जान भगदड़ ने ले ली। जान बचाने की कोशिश में बहुत से लोगों ने पार्क में मौजूद कुएं में छलांग लगा दी। बाग में लगी पट्टिका के अनुसार 120 शव तो कुएं से ही बरामद हुए।


जी हाँ, यही टुटा फूटा स्मारक है, हमारे देश अपनी जान देने वाले का,इसके अतिरिक्त कहीं और कही कोई स्मारक नहीं यही पुश्तैनी स्थान उनके घर होता था.............

सरकारी आंकड़ों में मरने वालों की संख्या 379 बताई गई, जबकि पंडित मदन मोहन मालवीय के अनुसार कम से कम 1300 लोगों की इस घटना में जान चली गई। स्वामी श्रद्धानंद के मुताबिक मृतकों की संख्या 1500 से अधिक थी। अमृतसर के तत्कालीन सिविल सर्जन डॉ. स्मिथ के अनुसार मरने वालों की संख्या 1800 से ज्यादा थी। ऊधम सिंह के मन पर इस घटना ने इतना गहरा प्रभाव डाला था कि उन्होंने बाग की मिट्टी हाथ में लेकर ओडायर को मारने की सौगंध खाई थी। अपनी इसी प्रतिज्ञा को पूरा करने के मकसद से वह 1934 में लंदन पहुंच गए और सही वक्त का इंतजार करने लगे।


जी हाँ, यही टुटा फूटा स्मारक है, हमारे देश अपनी जान देने वाले का,इसके अतिरिक्त कहीं और कही कोई स्मारक नही यही पुश्तैनी स्थान उनके घर होता था.............

ऊधम को जिस वक्त का इंतजार था वह उन्हें 13 मार्च 1940 को उस समय मिला जब माइकल ओडायर लंदन के कॉक्सटन हाल में एक सेमिनार में शामिल होने गया। भारत के इस सपूत ने एक मोटी किताब के पन्नों को रिवॉल्वर के आकार के रूप में काटा और उसमें अपनी रिवॉल्वर छिपाकर हाल के भीतर घुसने में कामयाब हो गए। चमन लाल के अनुसार मोर्चा संभालकर बैठे ऊधम सिंह ने सभा के अंत में ओडायर की ओर गोलियां दागनी शुरू कर दीं। सैकड़ों भारतीयों के कत्ल के गुनाहगार इस गोरे को दो गोलियां लगीं और वह वहीं ढेर हो गया।
अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने के बाद इस महान क्रांतिकारी ने समर्पण कर दिया। उन पर मुकदमा चला और उन्हें मौत की सजा सुनाई गई। 31 जुलाई 1940 को पेंटविले जेल में यह वीर हंसते हंसते फांसी के फंदे पर झूल गया।


कुछ लोग अपने बलपर ही इस कार्य को कर रहे है.....उनकी यादो को जिन्दा रखे हुए

शहीद उधम सिंह के माता पिता उनको अनाथ छोड़कर बचपन में चल बसे थे, जब वह ८ वर्ष के थे,,,,कुछ समय बाद २-३ साल बाद ही उनके बड़े भाई भी उनको छोड़कर चले गए (देहांत हो गया)

आपको ज्यादा सीधा-साधा नहीं होना चाहिए वरना हमेशा रहना पड़ेगा परेशान...

जीवन में कई बार हमें हमारे स्वभाव के कारण या तो सुख प्राप्त होता है या दुख। आजकल जैसा वातावरण है उसके अनुसार जो सीधे-साधे लोग हैं उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इस संबंध आचार्य चाणक्य कहते हैं कि-

अतिहि सरल नहिं होइये, देखहु जा बनमाहिं।

तरु सीधे छेदत तिनहिं, बांके तरु रहि जाहि।।

जिन लोगों का स्वभाव अधिक सीधा-साधा है, उन्हें ऐसे नहीं रहना चाहिए क्योंकि यह अच्छा नहीं है। वन में हम देख सकते हैं जो पेड़ सीधे होते हैं सबसे पहले काटने के लिए उन्हें ही चुना जाता है।

आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिन लोगों का स्वभाव जरूरत से ज्यादा सीधा, सरल और सहज होता हैं उन्हें अक्सर समाज में परेशानियों का ही सामना करना पड़ता है। चालक और चतुर लोग इनके सीधे स्वभाव का गलत फायदा उठाते हैं। ऐसे लोगों को दुर्बल ही समझा जाता है। अनावश्यक रूप से लोगों की प्रताडऩा झेलना पड़ती है। अत्यधिक सीधा स्वभाव भी मूर्खता की श्रेणी में ही आता है। अत: व्यक्ति को थोड़ा चतुर और चालक भी होना चाहिए। ताकि वह जीवन में कुछ उल्लेखनीय कार्य कर सके। इसका एक सटीक और प्रत्यक्ष उदाहरण है जंगल में लगे सीधे वृक्ष। सामान्यत: देखा जा सकता है कि जंगल में लगे सीधे वृक्ष ही सबसे काटने के लिए चुने जाते हैं। इसी प्रकार हमारे जीवन में भी जो लोग सीधे-साधे होते हैं उनसे चतुर लोग अनुचित लाभ अवश्य ही उठाते हैं।

बिरसा मुंडा : साहस का एक नाम

बिरसा मुंडा : जन्म 15 नवम्बर 1875 मृत्यु 9 जून 1900

हिन्दुस्तान की धरती पर समय-समय पर महान और साहसी लोगों ने जन्म लिया है. भारतभूमि पर ऐसे कई क्रांतिकारियों ने जन्म लिया है जिन्होंने अपने बल पर अंग्रेजी हुकूमत के दांत खट्टे कर दिए थे. ऐसे ही एक वीर थे बिरसा मुंडा. बिहार और झारखण्ड की धरती पर बिरसा मुंडा को भगवान का दर्जा अगर दिया जाता है तो उसके पीछे एक बहुत बड़ी वजह भी है. मात्र 25 साल की उम्र में उन्होंने लोगों को एकत्रित कर एक ऐसे आंदोलन का संचालन किया जिसने देश की स्वतंत्रता में अहम योगदान दिया. आदिवासी समाज में एकता लाकर उन्होंने देश में धर्मांतरण को रोका और दमन के खिलाफ आवाज उठाई.


Birsa Mundaबिरसा मुंडा का जीवन

बिरसा मुंडा(Birsa Munda) का जन्म  15 नवम्बर 1875 में लिहातु, जो रांची में पड़ता है, में हुआ था. यह कभी बिहार का हिस्सा हुआ करता था पर अब यह क्षेत्र झारखंड में आ गया है. साल्गा गांव में प्रारंभिक पढ़ाई के बाद वे चाईबासा इंग्लिश मिडिल स्कूल में पढने आए. सुगना मुंडा और करमी हातू के पुत्र बिरसा मुंडा के मन में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ बचपन से ही विद्रोह था.


बिरसा मुंडा को अपनी भूमि, संस्कृति से गहरा लगाव था. जब वह अपने स्कूल में पढ़ते थे तब मुण्डाओं/मुंडा सरदारों की छिनी गई भूमि पर उन्हें दु:ख था या कह सकते हैं कि बिरसा मुण्डा आदिवासियों के भूमि आंदोलन के समर्थक थे तथा वे वाद-विवाद में हमेशा प्रखरता के साथ आदिवासियों की जल, जंगल और जमीन पर हक की वकालत करते थे.


ज्वाला की शुरूआत

उन्हीं दिनों एक पादरी डॉ. नोट्रेट ने लोगों को लालच दिया कि अगर वह ईसाई बनें और उनके अनुदेशों का पालन करते रहें तो वे मुंडा सरदारों की छीनी हुई भूमि को वापस करा देंगे. लेकिन 1886-87 में मुंडा सरदारों ने जब भूमि वापसी का आंदोलन किया तो इस आंदोलन को न केवल दबा दिया गया बलिक ईसाई मिशनरियों द्वारा इसकी भर्त्सना की गई जिससे बिरसा मुंडा को गहरा आघात लगा. उनकी बगावत को देखते हुए उन्हें विद्यालय से निकाल दिया गया. फलत: 1890 में बिरसा तथा उसके पिता चाईबासा से वापस आ गए.


1886 से 1890 तक बिरसा का चाईबासा मिशन के साथ रहना उनके व्यक्तित्व का निर्माण काल था. यही वह दौर था जिसने बिरसा मुंडा के अंदर बदले और स्वाभिमान की ज्वाला पैदा कर दी. बिरसा मुंडा पर संथाल विद्रोह, चुआर आंदोलन, कोल विद्रोह का भी व्यापक प्रभाव पड़ा. अपनी जाति की दुर्दशा, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक अस्मिता को खतरे में देख उनके मन में क्रांति की भावना जाग उठी. उन्होंने मन ही मन यह संकल्प लिया कि मुंडाओं का शासन वापस लाएंगे तथा अपने लोगों में जागृति पैदा करेंगे.


BIRSA MUNDA-A GREAT HERO OF INDIAबिरसा मुंडा का संघर्ष

बिरसा मुंडा न केवल राजनीतिक जागृति के बारे में संकल्प लिया बल्कि अपने लोगों में सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक जागृति पैदा करने का भी संकल्प लिया. बिरसा ने गांव-गांव घूमकर लोगों को अपना संकल्प बताया. उन्होंने ‘अबुआ: दिशोम रे अबुआ: राज’ (हमार देश में हमार शासन) का बिगुल फूंका.


उनकी गतिविधियां अंग्रेज सरकार को रास नहीं आई और उन्हें 1895 में उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया और हजारीबाग केन्द्रीय कारागार में दो साल के कारावास की सजा दी गयी. लेकिन बिरसा और उनके शिष्यों ने क्षेत्र की अकाल पीड़ित जनता की सहायता करने की ठान रखी थी और यही कारण रहा कि अपने जीवन काल में ही उन्हें एक महापुरुष का दर्जा मिला. उन्हें उस इलाके के लोग “धरती बाबा” के नाम से पुकारा और पूजा करते थे. उनके प्रभाव की वृद्धि के बाद पूरे इलाके के मुंडाओं में संगठित होने की चेतना जागी.


1897 से 1900 के बीच मुंडाओं और अंग्रेज सिपाहियों के बीच युद्ध होते रहे और बिरसा और उसके चाहने वाले लोगों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया. अगस्त 1897 में बिरसा और उसके चार सौ सिपाहियों ने तीर कमानों से लैस होकर खूंटी थाने पर धावा बोला. 1898 में तांगा नदी के किनारे मुंडाओं की भिड़ंत अंग्रेज सेनाओं से हुई जिसमें पहले तो अंग्रेजी सेना हार गयी लेकिन बाद में इसके बदले उस इलाके के बहुत से आदिवासी नेताओं की गिरफ़्तारियां हुईं. जनवरी 1900 में जहां बिरसा अपनी जनसभा संबोधित कर रहे थे, डोमबाड़ी पहाड़ी पर एक और संघर्ष हुआ था, जिसमें बहुत सी औरतें और बच्चे मारे गये थे. बाद में बिरसा के कुछ शिष्यों की गिरफ़्तारी भी हुई थी. अंत में स्वयं बिरसा 3 फरवरी, 1900 को चक्रधरपुर में गिरफ़्तार हुए.


9 जून, 1900 को रांची कारागर में उनकी मौत हो गई. उनकी मौत से देश ने एक महान क्रांतिकारी को खो दिया जिसने अपने दम पर आदिवासी समाज को इकठ्ठा किया था.


बिरसा मुंडा की गणना महान देशभक्तों में की जाती है. उन्होंने वनवासियों और आदिवासियों को एकजुट कर उन्हें अंग्रेजी शासन के खिलाफ संघर्ष करने के लिए तैयार किया. इसके अतिरिक्त उन्होंने भारतीय संस्कृति की रक्षा करने के लिए धर्मान्तरण करने वाले ईसाई मिशनरियों का विरोध किया. ईसाई धर्म स्वीकार करने वाले हिन्दुओं को उन्होंने अपनी सभ्यता एवं संस्कृति की जानकारी दी और अंग्रेजों के षडयन्त्र के प्रति सचेत किया .


अपने पच्चीस साल के छोटे जीवन में ही उन्होंने जो क्रांति पैदा की वह अतुलनीय है. बिरसा मुंडा धर्मान्तरण, शोषण और अन्याय के विरुद्ध सशस्त्र क्रांति का संचालन करने वाले महान सेनानायक थे.

इंकलाब जिंदाबाद '' सिर्फ नारा नहीं है ''

इंकलाब जिंदाबाद '' सिर्फ नारा नहीं है ''

modern रिव्यू के संपादक भी रामानंद चटोपाध्याय ने अपनी एक संपादकीय टिपणी में भगत सिंह के नारे '' इंकलाब जिंदाबाद ''
को खून खराबे और अराजकता का प्रतिक बताया भगत सिंह ने 3 दिसंबर 1929  को अपनी और अपने साथी बटुकेश्वर दत्त की
तरह से श्री चटोपाध्याय को पात्र लिखा |

श्री संपादक जी ,

' 'modern  रिव्यू ' '

आपने अपने सम्पादित पात्र के दिसंबर 1929 क अंक में एक टिप्पणी ''इंकलाब जिंदाबाद '' के शीर्षक से लिखी है और एस नारे को निरर्थक ठेराने की चेष्टा की है आप सरीखे परिपक्व विचारक तथा अनुभवी और यशस्वी संपादक की रचना में दोष निकलना तथा उसका प्रतिवाद
करना , जिसे प्रतेयक भारतीय सम्मान की द्रिष्टी से देखता है , हमारे लिए एक बड़ी धर्ष्टता होगी | तो भी एस प्रशन का उत्तर देना और यह बताना हम अपना दायित्व समझते है की एस नारे से हमारा क्या अभिप्राय है

यह आवश्यक है , क्यूंकि में इस नारे को सब लोगो तक पहुँचाने का कार्य हमारे हिस्से में आया है ,इस नारे की रचना हमने नहीं की है यही नारा रूस के क्रांतिकारी आन्दोलन में प्रयोग किया गया है  प्रसिद्ध समाजवादी लेखक 'अप्टन सिक्लेयर 'ने अपने उपन्यासों ''वोस्टन'' और आइलमें यही नारा कुछ अराजकता वादी क्रांतिकारी पत्रों के मुख से प्रयोग कराया है ,इसका अर्थ जरी रहें और कोई भी व्यवस्था अल्प समय के लिए भी स्थाई न रह सके ,दुसरे शब्दों में देश और समाज में अराजकता फेली  रहें |

दीर्घकाल में प्रयोग में आने के कारन इस नारे को एक ऐसे विशेष भावना प्राप्त हो चुकी है ,जो संभव है की भाषा के नियमो एवं कोष के आधार पर इसके शब्दों से उचित तर्कसम्मत रूप में सिद्ध हो पाए ,परन्तु इसके साथ ही नारे से उन विचारों को प्रथक नहीं किया जा सकता ,जो उसके साथ जुड़े हुए है ऐसे समस्त नारे एक ऐसे स्वीक्रत अर्थ के घोतक है ,जो एक सीमा तक उनमे उत्पन्न हो गए है तथा एक सीमा तक उनमे निहित है

उदहारण  के लिए हम ''यतीन्द्र नाथ जिंदाबाद '' का नारा लगते है   इससे हमारा तात्पर्य यह होता ही की उनके जीवन के महँ कार्यों
आदर्शों तथा उस अथक उत्साह को सदा सदा के लिए बनाये रखें ,इस महानतम बलिदान को उस आदर्श  के लिए अकथनीय
कष्ट झेलने एवं असीम बलिदान करने की प्रेरणा दी यह नारा लगाने से हमारी यह लालसा प्रकट होती है की हम भी अपने
आदर्शो के लिए ऐसे ही अथक उत्साह को अपनाये यही वह भावना है ,जिसकी हम प्रशंसा करते हैं इसी प्रकार
हमे ''इन्कलाब ''शब्द का अर्थ भी कोरे शाब्दिक रूप में नहीं लगाना चाहिए |
इस शब्द का उचित एवं अनुचित प्रयोग करने वाले लोगो के हितो के अधर पर इसके साथ विभिन्न अर्थ एवं विभिन्न
विशेस्तायें जोड़ी जाती है , क्रांतिकारियों  की द्रष्टि में यह पवित्र वाक्य है ,हमने इस बात को ट्रिब्यूनल के सम्मुख
अपने वक्तव्य में स्पष्ट करने का
प्रयास किया था |

इस वक्तव्य में हमने कहा था की क्रांति (इन्कलाब) का अर्थ अनिवार्य रूप में सशस्त्र आन्दोलन नहीं होता |
बम और पिस्तौल कभी कभी क्रांति को सफल बनाने के साधन मात्र हो सकते है इसमे भी संदेह नहीं है की आन्दोलन में
कभी कभी बम एवं,पिस्तौल एक महत्पूर्ण साधन सिद्ध हो सकते है ,परन्तु केवल इसी कारण से बम और पिस्तौल क्रांति
के पर्यायवाची नहीं हो जाते ,विद्रोह को क्रांति नहीं कहा जा सकता ,यधपि यह हो सकता है की विद्रोह का अंतिम परिणाम क्रांति हो |

प्रगति की आकांशा
इस वाक्य में क्रांति शब्द का अर्थ '' प्रगति  के लिए परिवर्तन की भावना एवं आकांशा है लोग साधारणतया जीवन की परंपरागत दशाओं के साथ चिपक जाते है और परिवर्तन के विचार मात्र से ही कपने लगते है यही एक अकर्मण्यता की भावना है ,जिसके स्थान पर क्रांतिकारी भावना जाग्रत करने की आवश्यकता है दुसरे शब्दों में कहा जा सकता है की अकर्मण्यताका वातावरण निर्माण हो जाता है और रुढ़िवादी शक्तियां मानव -समाज को कुमार्ग पर ले जाती है ये परिस्तिथियाँ मानव समाज की उन्नत्ति में गति रोध का कारण बन जाती है

क्रांति की इस भावना से मनुष्य जाति की आत्मा की स्थायीं तोर पर ओतप्रोत रहनी चाहिए ,जिससे की रुढ़िवादी शक्तियां मानव समाज की प्रगति की दौड़ में बाधा डालने के लिए संघठित न हो सके यह आवशयक है की पुरानी व्यवस्था सदेव रहे और वह नै व्यवस्था के लिए स्थान रिक्त करती रहें,जिससे की एक आदर्श व्यवस्था संसार को बिगड़ने से रोक सके यह हमारा वह अभिप्राय जिसको ह्रदय में रखकर हम इन्कलाब जिंदाबाद का नारा बुलंद करते है

भवदीय ---
भगत सिंह , बटुकेश्वर दत्त

चाणक्य के 15 सूक्ति वाक्य


चाणक्य के 15 सूक्ति वाक्य ----

1) "दूसरो की गलतियों से सीखो अपने ही ऊपर प्रयोग करके सीखने को तुम्हारी आयु कम पड़ेगी."
2)"किसी भी व्यक्ति को बहुत ईमानदार नहीं होना चाहिए ---सीधे बृक्ष और व्यक्ति पहले काटे जाते हैं."
3)"अगर कोई सर्प जहरीला नहीं है तब भी उसे जहरीला दिखना चाहिए वैसे दंश भले ही न दो पर दंश दे सकने की क्षमता का दूसरों को अहसास करवाते रहना चाहिए. "
4)"हर मित्रता के पीछे कोई स्वार्थ जरूर होता है --यह कडुआ सच है."
5)"कोई भी काम शुरू करने के पहले तीन सवाल अपने आपसे पूछो ---मैं ऐसा क्यों करने जा रहा हूँ ? इसका क्या परिणाम होगा ? क्या मैं सफल रहूँगा ?"
6)"भय को नजदीक न आने दो अगर यह नजदीक आये इस पर हमला करदो यानी भय से भागो मत इसका सामना करो ."
7)"दुनिया की सबसे बड़ी ताकत पुरुष का विवेक और महिला की सुन्दरता है."
8)"काम का निष्पादन करो , परिणाम से मत डरो."
9)"सुगंध का प्रसार हवा के रुख का मोहताज़ होता है पर अच्छाई सभी दिशाओं में फैलती है."
10)"ईस्वर चित्र में नहीं चरित्र में बसता है अपनी आत्मा को मंदिर बनाओ."
11) "व्यक्ति अपने आचरण से महान होता है जन्म से नहीं."
12) "ऐसे व्यक्ति जो आपके स्तर से ऊपर या नीचे के हैं उन्हें दोस्त न बनाओ,वह तुम्हारे कष्ट का कारण बनेगे. सामान स्तर के मित्र ही सुखदाई होते हैं ."
13) "अपने बच्चों को पहले पांच साल तक खूब प्यार करो. छः साल से पंद्रह साल तक कठोर अनुशासन और संस्कार दो .सोलह साल से उनके साथ मित्रवत व्यवहार करो.आपकी संतति ही आपकी सबसे अच्छी मित्र है."
14) "अज्ञानी के लिए किताबें और अंधे के लिए दर्पण एक सामान उपयोगी है ."
15) "शिक्षा सबसे अच्छी मित्र है. शिक्षित व्यक्ति सदैव सम्मान पाता है. शिक्षा की शक्ति के आगे युवा शक्ति और सौंदर्य दोनों ही कमजोर हैं ."


बाघ की गुफा में मदन लाला धींगरा

मदन लाला धींगरा
बाघ की गुफा में मदन लाला धींगरा


मदनलाल ढींगरा (18सितम्बर 1883 - 17 अगस्त, 1909) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रान्तिकारी
सेनानी थे। वे इंग्लैण्ड में अध्ययन कर रहे थे जहाँ उन्होने कर्जन वायली नामक एक ब्रिटिश अधिकारी की
गोली मारकर हत्या कर दी। यह घटना बीसवीं शताब्दी में भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन की कुछेक प्रथम
घटनाओं में से एक है।
मदललाल ढींगरा का जन्म सन् 1883 में पंजाब में एक सम्पन्न हिन्दू परिवार में हुआ था। उनकी ठीक-ठीक
जन्मतिथि और जन्मस्थान का पता नहीं है। उनके पिता सिविल सर्जन थे और अंग्रेजी रंग में पूरी तरह रंगे हुए थे
किन्तु माताजी अत्यन्त धार्मिक एवं भारतीय संस्कारों से परिपूर्ण महिला थीं। उनका परिवार अंग्रेजों का
विश्वासपात्र था और जब मदनलाल को भारतीय स्वतंत्रता सम्बन्धी क्रान्ति के आरोप में लाहौर के एक कालेज से
निकाल दिया गया तो परिवार ने मदनलाल से नाता तोड़ लिया। मदनलाल को एक क्लर्क के रूप में,
एक तांगा-चालक के रूप में और एक कारखाने में श्रमिक के रूप में काम करना पड़ा। वहाँ उन्होने एक
यूनियन (संघ) बनाने की कोशिश की किन्तु वहाँ से भी उन्हें निकाल दिया गया। कुछ दिन उन्होने मुम्बई में भी
काम किया। अपनी बड़े भाई की सलाह पर वे सन् 1906 में उच्च शिक्षा के लिये इंग्लैण्ड गये जहाँ युनिवर्सिटी
कालेज लन्दन में यांत्रिक प्रौद्योगिकी (Mechanical Engineering) में प्रवेश लिया। इसके लिये उन्हें उनके बड़े
भाई एवं इंग्लैण्ड के कुछ राष्ट्रवादी कार्यकर्ताओं से आर्थिक मदद मिली।

सावरकर के साथ मदन लाला धींगरा

सावरकर के सानिध्य में
लन्दन में ढींगरा भारत के प्रख्यात राष्ट्रवादी विनायक दामोदर सावरकर एवं श्यामजी कृष्णवर्मा के सम्पर्क
में आये। वे लोग ढ़ींगरा के प्रचण्ड देशभक्ति से बहुत प्रभावित हुए। ऐसा विश्वास किया जाता है कि सावरकर
ने ही मदनलाल को अभिनव भारत मण्डल का सदस्य बनवाया और हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया।
मदनलाल, इण्डिया हाउस के भी सदस्य थे जो भारतीय विद्यार्थियों के राजनैतिक क्रियाकलापों का केन्द्र था।
ये लोग उस समय खुदीराम बोस, कन्नाई दत्त, सतिन्दर पाल और कांशी राम जैसे क्रान्तिकारियों को मृत्युदण्ड
दिये जाने से बहुत क्रोधित थे। कई इतिहासकार मानते हैं कि इन्ही घटनाओं ने सावरकर और ढींगरा को सीधे
बदला लेने के लिये विवश किया।



बाघ की गुफा में मदन लाला धींगरा

लन्दन 10 मई 1909 प्रवासी भारतियों का अपना क्लब इंडिया हॉउस ब्रिटश राज सत्ता का विरोध करके ,
भारत को स्वतंत्र बनाने का सपना देखने वाले अनेक  उत्साही yuvako श्यामजी कृष वर्मा ,विनायक दामोदर
सावरकर ,पांडुरंग महादेव बापट,आदि के संरक्षण में मनाया जा रहा ,10 मई 1857 की स्मृती में पचासवा
वार्षिकोत्सव हॉउस पूरी तरह भारतीय पद्दति से सजा हुआ था प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के अनेक खायात्नमा
वीर बादशाह 'जफ़र' नाना साहेब ,रानी लक्ष्मी बाई, तात्या टोपे ,मोलवी अहमद शाह ,रजा कुंवर सिंह के चित्र
और नाम पत्ता लगे हुए थे धुप दीप और फूलो से उन्हें सदर सज्जित किया गया था सुदूर छेत्रों से भी भारतीय
प्रवासी युवक अनेक श्रेणियों के लोग थे वकील ,डाक्टर,प्रोफ़ेसर ,व्यवसाई ,स्त्री ,पुरुष ,बच्चे ,सभी सब राष्ट्रिय
गौरव की भावना से उत्साहित हो रहें थे |


मदन लाला धींगरा


''वन्देमातरम गीत के बाद क्लब की प्रगति के लिए लोगो ने दिल खोल कर चंदा दिया कई लोगो के भाषण हुए
1857 कीक्रांति का बखान करते हुए उन्होंने भविष्य में भारत के स्वतंत्र होने की कामना व्यक्त की वातावरण
उल्लास और उत्साह से पूर्ण हो उठा |
इस क्लब ने लन्दन वासी भारतीयों को एकता की प्रबल प्रेरणा दी वे प्राय :आपस में मिलते और स्वाधीनता पर
विचार विमर्श करते थे लेकिन प्रवासियों में एक वर्ग ऐसा था ,जो इनस्वाधीनता के उपासको से सहमत नहीं था
वह देश से राजभक्ति को अधिक महत्व देता था --ब्रिटिश समर्थक था

कुछ दिन बाद श्याम जी कृष्ण वर्मा ,लन्दन छोड़कर पेरिस में रहने लगे ,ताकि ब्रिटिश शासन के विरुद्ध भारतीय
युवको की सहायता करते रहें लन्दन में उन पर संदेह किया जा सकता था ,क्यूंकि भारत में उनके कई समर्थको ने
कई कांड कर डाले थे और उनका समाचार पाकर में उनके कई समर्थको ने कई  कांड कर डाले थे और उनका
समाचार पाकर लन्दन वाले भारतीय युवक बहुत गरम हो उठे थे वीरेंद्र कुमार घोष का अलीपुर केस और विनायक
सावरकर के भाई गणेश सावरकर की जोशीली कविताओं पर अंग्रेजो की कोप दृष्टी का समाचार उन्हें उतेजित कर
रहा था विद्रोही कविताओं को भयंकर राज विद्रोह का सूत्रपात बताकर अँगरेज़ न्यायाधीश ने गणेश सावरकर को
आजीवन काले पानी की सजा दी यही नहीं उनकी साडी संपत्ति भी जब्त कर ली गई
रोष बढ़ता जा रहा था अंग्रेजों के विरुद्ध ,भारतीय युवक संघटित होकर कुछ करने को उतावले हो रहें थे विनायक
सावरकर ने तो 20 जून 1909 की एक सभा में घोषित भी कर दिया था की अब सरकार ने दमन और आतंक का
सहारा ले लिया है इसलिए हम भी उसको वेसे ही जवाब देंगे

एक दिन 'इण्डिया हाउस में कई छात्रों के बीच किसी ने यह रहस्य उदघाटित किया --"ब्रिटिश शासन की और से हम
भारतियों की सुख सुविधा का ध्यान रखने के लिए यहाँ नियुक्त कर्जन वायली नमक अधिकारी ,वास्तव में एक
जासूस है वह हमारे बीच घुल मिलकर असल में हमारे भेद लेता है उसका उद्देश्य हमारा हित नहो,बल्कि हमे किसी
षड्यंत्र में फंसना है और यही कारन है की वह अपने व्यवहार में एक सामान्यअँगरेज़ से कहीं अधिक सरल ,
म्रदुभाशी और भोला जान पड़ता है लेकिन सचाई यह है की वह एक भयंकर सांप है और किसी भी समय हम सब
को एक साथ डस सकता है '

छात्रों को रोमांच हो आया ''अच्छा...ऐसे योजना है उसकी ?ऐसा षड्यंत्र रच रहा है वह ? ठीक है देखेंगे उसे भी

कहते हुए एक युवक ने मुट्ठियाँ भींच कर छाती तन इ और होंठ चबाते हुए ,किसी द्रढ़ निश्चय के साथ उठ खड़ा
हुआ परिवार कट्टर ब्रिटिश भक्त था ,
इसयुवक का नाम था मदन लाल धींगरा रूप रेखा से बड़ा सुन्दर शोकिन .लेकिन ह्रदय फौलाद का कट्टर देश भक्त ?
उसका परिवा  पर वह आज़ादी का दीवाना था उसे अंग्रेजो की दासता में वैभव पसंद नहीं था मात्रभूमि की सेवा में
काँटों पर चलने का उत्साही था
उसने हवा में मुक्का तानते हुए साथियों से कहा
"निश्चित रहो हमे डसने से पहले ही वायली को कुचल दिया जायेगे "
दस दिन बाद सन 1909 की जुलाई की पहली तारीख थी इंडिया हाउस के बड़े सभागार ''जहाँगीर हॉल "में
भारतीय विद्यार्थियों की सभा हो रही थी मदन लाल धींगरा भी उसमे
समिलित थे सभा समाप्ति के बाद ,जब सर कर्ज़न वायली अभ्यागतो से मिल जुल रहें थे ,मदन लाला ने
उनकी और देखा सर वायली ने समझा ,यह युवक मुझे से मिलने को आतुर हो रहा है वे मदन लाल की
और मुस्कुराते हुए बढे किन्तु उस छदम मुस्कान को देखकर ,उसकी भयंकरता का अनुभव करके ,मदन
के बदन में आग लग गई तैयार वह पहले से ही थे ,वायली को सामने पाकर उन्होंने जेब से रिवोल्वर
निकला और निशाना साधकर गोली चला दी वायली महोदय ब्रिटिश भक्त और भारत द्रोह का पुरुस्कार सहे
जाते हुए, छण भर में ही सदा के लिए सो गए
अचानक इस तरह रंग में भंग हुआ देखकर सभा में खलबली मच गई वायली को गिरते देखकर
श्रीलाल काका नाम का एक ब्रिटिश भक्त भारतीय मदन लाल की और दौड़ा मदन लाल ने उस देश द्रोही के
सिने में भी एक गोली उतार दी

अब तक कितने ही अँगरेज़ अधिकारीयों और पुलिस के जवानों ने उन्हें घेर लिया था
मदन लाल का उद्देश्य पूरा हो चूका था उन्होंने रिवोल्वर फेंक दिया और सहज भाव से ,अविचित स्वर में
पुलिस वालो से कहा तहरो कोई जल्दी नहीं है में चस्मा पहन लूँ ,फिर मेरे हाथ बाँधो '
उनकी निर्भीकता ,उनकी साहसी मनोवृति और धीरज देखकर अंग्रेजो का दल स्तंभित रह गे
तलाशी में मदन लाल के पास एक पर्चा मिला ,जिसमे लिखा था की मेने जान बुझकर अंग्रेज़की हत्या की है
भारतियों को जिस प्रकार अन्याय पूर्वक फंसी और काले पानी का दंड दिया जा रहा है उसके प्रति विरोध
प्रदर्शन का यह भी एक ढंग है |

वायली हत्याकांड ने इंग्लेंड ही नहीं ,पुरे ब्रिटिश साम्राज्य में हल चल मचा दी
विश्व के अख़बारों ने इस घटना को प्रकाशित किया
मदनलाल पर लन्दन की अदालत में मुकदमा चलाया गया मुक़दमे के दौरान मदन लाल ने अपने बयां में
कहा था "अगर जर्मनी को इंग्लॅण्ड पर शाशन करने का अधिकार नहीं है ,तो इंग्लेंड को भी भारत पर राज्य
करने का अधिकार नहीं है




मदन लाला धींगरा की स्मृति में

मेरे देश का अपमान मेरे इश्वर का अपमान है मुझे जैसे धन और बुध्धि से हीन व्यक्ति अपनी मात्रभूमि को सिवा
रक्त के और क्या दे सकते है मेरी इश्वर से प्राथना है की जब तक मेरी मात्रभूमि को स्वतंत्रता न मिल जाये ,में
उसकी गोद में बार बार जन्म लेकर उसी की सेवा में मरता रहूँ में तुम्हारे (अंग्रेजी न्यायाधीश के )अधिकार को
नहीं मानता यूँ में तुम्हारे हाथ में हूँ ,जो चाहो ,कर सकते हो पर याद रखो एक दिन भारत सबल होगा ,और तब
हम वह सब कुछ कर सकेंगे जो आज करना चाहते है
न्यायाधीश ने उन्हें मृत्यु दण्ड दिया |
सजा सुनकर मदन लाल ने कहा मुझे गर्व और संतोष है की मेरा तुछ जीवन मात्रभूमि की सेवा में अर्पित हो रहा है
16 अगस्त 1909 को मदन लाल .लन्दन में फंसी के फंदे पर झूलकर विश्व के स्वाधीनता उपासको को श्रेणी में एक
प्रमुख स्थान के अधिकारी हो गए
मदन लाल की जेब से बरामद पर्चे को अदालत में पढने नही दिया गया था बाद में उसे अखबार में प्रकाशित कराया गया
मदन लाल के इस प्रयास और पर्चे के मजमून की ,अंग्रेजी अख़बारों ने बड़ी निंदा की थी ,उनकी द्रष्टि में मदन लाल के
स्वाधीनता की लड़ाई को बगावत के रूप में दिखाया गया था किन्तु आयरलैंड के अखबारों ने छापा  था
आयरलैंड उस भारतीय युवक मदनलाल धींगरा के प्रति सम्मान व्यक्त करता है क्यूँ की उन्होंने अपने देश के लिए सर्वस्व
त्याग दिया ,उन्होंने अपने प्राण भी इसी उद्देश्य में विसर्जित कर दिए
माँ भारती के ऐसे वीरों को शत शत नमन ..........जा माँ भारती 
ब्रिक्स्टन जेल जहां मदनलाल ढींगरा तथा ,वीर सावरकर जी को रखा गया था.ब्रिक्स्टन जेल का अनधुरूनी हिस्सा ...!
ब्रिक्स्टन जेल जहां मदनलाल ढींगरा तथा ,वीर सावरकर जी को रखा गया था. 

नेताजी सुभाष चन्द्र बोसे एक क्रांति का नाम है -भाग 2




शत शत नमन नेताजी सुभाष चन्द्र बोसे  (23 जनवरी 1897  - मृत्यु विवादित)
जो नेताजी नाम से भी जाने जाते हैं, भारत के स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेता थे।
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लिये, उन्होंने जापान के सहयोग से आज़ाद
हिन्द फौज का गठन किया था। “जय हिन्द” के नारे की शुरूआत जिनसे होती है उन क्रांतिकारी का
नाम है चेम्बाकरमण पिल्लई गुलामी के के आदी हो चुके देशवासियोंa1987: नेताजी सुभाषचंद्र बोस
का जन्‍म 23 जनवरी, 1897 को जानकी नाथ बोस और श्रीमती प्रभावती देवी के घर में हुआ था।


collage ke samay

1913: उन्‍होंने 1913 में अपनी कॉलेज शिक्षा की शुरुआत की और कलकत्‍ता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया।

1915: सन् 1915 में उन्‍होंने इंटरमीडिएट की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्‍तीर्ण की।

1916: ब्रिटिश प्रोफेसर के साथ दुर्व्‍यवहार के आरोप में निलंबित कर दिया गया।

1917: सुभाषचंद्र ने 1917 में स्‍कॉटिश चर्च कॉलेज में फिलॉसफी ऑनर्स में प्रवेश लिया।

1919: फिलॉसफी ऑनर्स में प्रथम स्‍थान अर्जित करने के साथ आईसीएस परीक्षा देने के लिए इंग्‍लैण्‍ड रवाना हो गए।

1920: सुभाषचंद्र बोस ने अँग्रेजी में सबसे अधिक अंक के साथ आईसीएस की परीक्षा न केवल उत्‍तीर्ण की,
            बल्‍कि चौथा स्‍थान भी प्राप्‍त किया।

1920: उन्‍हें कैंब्रिज विश्‍वविद्यालय की प्रतिष्‍ठित डिग्री प्राप्‍त हुई।


1920_subhash_chandra_bose_after graduation

1921: अँग्रेजों ने उन्‍हें गिरफ्तार कर लिया। 1922: 1 अगस्‍त, 1922 को जेल से बाहर आए और देशबंधु
           चितरंजनदास की अगुवाई में गया काँग्रेस अधिवेशन में स्‍वराज दल में शामिल हो गए।

1923: सन 1923 में वह भारतीय युवक काँग्रेस के अध्‍यक्ष चुने गए। इसके साथ ही बंगाल काँग्रेस के सचिव भी
           चुने गए। उन्‍होंने देशबंध की स्‍थापित पत्रिका ‘फॉरवर्ड’ का संपादन करना शुरू किया।

1924: स्‍वराज दल को कलकत्‍ता म्‍युनिपल चुनाव में भारी सफलता मिली। देशबंधु मेयर बने और सुभाषचंद्र बोस
           को मुख्‍य कार्यकारी अधिकारी मनोनीत किया गया। सुभाष के बढ़ते प्रभाव को अँग्रेजी सरकार बरदाश्‍त नहीं
           कर सकी और अक्‍टूबर में ब्रिटिश सरकार ने एक बार फिर उन्‍हें गिरफ्तार कर लिया।

1925: देशबंधु का निधन हो गया।

1927: नेताजी, जवाहरलाल नेहरू के साथ अखिल भारतीय काँग्रेस कमेटी के साधारण सचिव चुने गए।



1928: स्‍वतंत्रता आंदोलन को धार देने के लिए उन्‍होंने भारतीय काँग्रेस के कलकत्‍ता अधिवेशन के दौरान
           स्‍वैच्‍छिक संगठन गठित किया। नेताजी इस संगठन के जनरल ऑफिसर इन कमांड चुने गए।

1930: उन्‍हें जेल भेज दिया गया। जेल में रहने के दौरान ही उन्‍होंने कलकत्‍ता के मेयर का चुनाव जीता।

1931: 23 मार्च, 1931 को भगतसिंह को फाँसी दे दी गई, जो कि नेताजी और महात्‍मा गाँधी में मतभेद का
           कारण बनी।

1932-1936: नेताजी ने भारत की आजादी के लिए विदेशी नेताओं से दबाव डलवाने के लिए इटली में मुसोलनी,
                       जर्मनी में फेल्‍डर, आयरलैंड में वालेरा और फ्रांस में रोमा रोनांड से मुलाकात की।
1936: 13 अप्रैल, 1936 को भारत आने पर उन्‍हें बंबई में गिरफ्तार कर लिया गया।

1936-37: रिहा होने के बाद उन्‍होंने यूरोप में ‘इंडियन स्‍ट्रगल’ प्रकाशित करना शुरू किया।

1938: हरिपुर अधिवेशन में काँग्रेस अध्‍यक्ष चुने गए। इस बीच शांति निकेतन में रवींद्रनाथ टैगोर ने उन्‍हें
            सम्‍मानित किया।

1939: महात्‍मा गाँधी के उम्‍मीदवार सीतारमैया को हराकर एक बार फिर काँग्रेस के अध्‍यक्ष बने। बाद में उन्‍होंने
           फॉरवर्ड ब्‍लॉक की स्‍थापना की।


congres ki sabha ke dauran

1940: उन्‍हें नजरबंद कर दिया गया। इस बीच उपवास के कारण उनकी सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।

1941: एक नाटकीय घटनाक्रम में वह 7 जनवरी, 1941 को गायब हो गए और अफगानिस्‍तान और रूस
           होते हुए जर्मनी पहुँचे।

1941: 9 अप्रैल, 1941 को उन्‍होंने जर्मन सरकार को एक मेमोरेंडम सौंपा, जिसमें एक्‍सिस पॉवर और भारत
           के बीच परस्‍पर सहयोग को संदर्भित किया गया था। सुभाषचंद्र बोस ने इसी साल नवंबर में स्‍वतंत्र भारत
           केंद्र और स्‍वतंत्र भारत रेडियो की स्‍थापना की।

1943: वह नौसेना की मदद से जापान पहुँचे और वहाँ पहुँचकर उन्‍होंने टोक्‍यो रेडियो से भारतवासियों को संबोधित
           किया। 21 अक्‍टूबर, 1943 को आजाद हिन्‍द सरकार की स्‍थापना की और इसकी स्‍थापना अंडमान और निकोबार
           में की गई, जहाँ इसका शहीद और स्‍वराज नाम रखा गया।

1944: आजाद हिन्‍द फौज अराकान पहुँची और इंफाल के पास जंग छिड़ी। फौज ने कोहिमा (इंफाल) को अपने कब्‍जे में
           ले लिया।


subhash chandr bose family

उत्तराखण्ड का वीर सपूत-अमर शहीद केसरी चन्द



भारतवर्ष के स्वतन्त्रता संग्राम में हजारों लाखों की संख्या में देशभक्तों ने अपने त्याग और
बलिदान से इतिहास में अपना स्थान बनाया है। उत्तराखण्ड राज्य का भी स्वतन्त्रता संग्राम में
स्वर्णिम इतिहास रहा है, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जी द्वारा जब आजाद हिन्द फौज की स्थापना
की गई तो उत्तराखण्ड के अधिसंख्य रणबांकुरों ने इस सेना की सदस्यता लेकर देश रक्षा करने की
ठानी। इसी क्रम में नाम आता है उत्तराखण्ड के जौनसार बावर के वीर सपूत शहीद केसरी चन्द का।
जिन्होंने स्वतन्त्रता संग्राम में अपने प्राणो की आहूति देकर अपने साथ-साथ जौनसार और उत्तराखण्ड
का नाम राष्ट्रीय स्वाधीनता आन्दोलन के इतिहास में स्वर्णिम शब्दों में अंकित करा दिया।

अमर शहीद वीर केसरी चन्द जी का जन्म 1 नवम्बर, 1920 को जौनसार बावर के क्यावा गांव में
पं० शिवदत्त के घर पर हुआ था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा विकासनगर में हुई, 1938 में डी०ए०वी० कालेज,
देहरादून से हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण कर इसी कालेज मे इण्टरमीडियेट की भी पढ़ाई जारी रखी।
केसरी चन्द जी बचपन से ही निर्भीक और साहसी थे, खेलकूद में भी इनकी विशेष रुचि थी,
इस कारण वे टोलीनायक रहा करते थे। नेतृत्व के गुण और देशप्रेम की भावना इनमें कूट-कूट
कर भरी हुई थी। देश में स्वतन्त्रता आन्दोलन की सुगबुगाहट के चलते केसरी चन्द पढ़ाई के साथ-साथ
कांग्रेस की सभाओं और कार्यक्रमों में भी भाग लेते रहते थे।

इण्टर की परीक्षा पूर्ण किये बिना ही केसरी चन्द जी 10 अप्रैल, 1941 को रायल इन्डिया आर्मी
सर्विस कोर में नायब सूबेदार के पद पर भर्ती हो गये। उन दिनों द्वितीय विश्व युद्ध जोरों पर चल रहा था,
केसरी चन्द को 29 अक्टूबर, 1941 को मलाया के युद्ध के मोर्चे पर तैनात किया गया। जहां पर
जापानी फौज द्वारा उन्हें बन्दी बना लिया गया, केसरी चन्द जी ऐसे वीर सिपाही थे, जिनके हृदय में
देशप्रेम कूट-कूटकर भरा हुआ था।

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जी ने नारे “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” के नारे से
प्रभावित होकर यह आजाद हिन्द फौज में शामिल हो गये। इनके भीतर अदम्य साहस,
अद्भुत पराक्रम, जोखिम उठाने की क्षमता, दृढ संकल्प शक्ति का ज्वार देखकर इन्हें
आजाद हिन्द फौज में  जोखिम भरे कार्य सौंपे गये, जिनका इन्होंने कुशलता से सम्पादन किया।

इम्फाल के मोर्चे पर एक पुल उड़ाने के प्रयास में ब्रिटिश फौज ने इन्हें पकड़ लिया और बन्दी बनाकर
दिल्ली की जिला जेल भेज दिया। वहां पर ब्रिटिश राज्य और सम्राट के विरुद्ध षडयंत्र के अपराध में इन
पर मुकदमा चलाया गया और मृत्यु दण्ड की सजा दी गई।

मात्र 24 वर्ष 6 माह की अल्पायु में यह अमर बलिदानी 3 मई, 1945 को आततायी ब्रिटिश
सरकार के आगे घूटने न टेककर हंसते-हंसते ’भारतमाता की जय’ और ’जयहिन्द’ का उदघोष
करते हुये फांसी के फन्दे पर झूल गया।

वीर केसरी चन्द की शहादत ने न केवल भारत वर्ष का मान बढ़ाया, वरन उत्तराखण्ड और जौनसार बावर
का सीना गर्व से चौड़ा कर दिया। भले ही उनकी शहादत को सरकारों ने भुला दिया हो, लेकिन उत्तराखण्ड के
लोगों ने उन्हें और उनकी शहादत को नहीं भुलाया। उनकी पुण्य स्मृति में आज भी चकराता के पास रामताल
गार्डन (चौलीथात) में प्रतिवर्ष एक मेला लगता है, जिसमें हजारों-लाखों लोग अपने वीर सपूत को नमन
करने आते हैं। जौनसारी लोक गीत ’हारुल’ में भी इनकी शहादत को सम्मान दिया जाता है-

गौरा देवी चिपको आन्दोलन की जननी

गौरा देवी विश्व प्रसिद्ध चिपको आन्दोलन के बारे में सभी जानते हैं लेकिन इस आन्दोलन की जननी गौरा देवी को कम ही लोग जानते हैं। इस आन्दोलन को विश्व पटल पर स्थापित करने वाली महिला गौरा देवी ने पेड़ों के महत्व को समझा इसीलिए उन्होंने आज से 38 साल पहले जिला चमोली के रैंणी गांव में जंगलों के प्रति अपने साथ की महिलाओं को जागरूक किया। तब पहाड़ों में वन निगम के माध्यम से ठेकेदारों को पेड़ काटने का ठेका दिया जाता था। गौरा देवी को जब पता चला कि पहाड़ों में पेड़ काटने के ठेके दिये जा रहे हैं तो उन्होंने अपने गांव में महिला मंगलदल का गठन किया तथा गांव की औरतों को समझाया कि हमें अपने जंगलों को बचाना है। आज दूसरे इलाके में पेड़ काटे जा रहे हैं हो सकता है कल हमारे जंगलों को भी काटा जायेगा।

इसलिए हमें अभी से इन वनों को बचाना होगा। गौरा देवी ने कहा कि हमारे वन हमारे भगवान हैं इन पर हमारे परिवार और हमारे मवेशी पूर्ण रूप से निर्भर हैं। 25 मार्च सन् 1927 की बात है। उस दिन रैणी गांव के अधिकांश मर्द चमोली गये हुए थे।


उत्तराखंड राज्य प्राप्ति आन्दोलन , अपने हक-हकूकों के लिये उत्तराखण्ड की जनता और खास तौर पर मातृ शक्ति ने आन्दोलन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आज हम बात करने जा रहे हैं, 1974 में शुरु हुये विश्व विख्यात चिपको आन्दोलन की जननी, प्रणेता श्रीमती गौरा देवी जी की, जो चिपको वूमन के नाम से मशहूर हैं। 1925 में चमोली जिले के लाता गांव के एक मरछिया परिवार में श्री नारायण सिंह के घर में इनका जन्म हुआ था। गौरा देवी ने कक्षा पांच तक की शिक्षा भी ग्रहण की थी, जो बाद में उनके अदम्य साहस और उच्च विचारों का सम्बल बनी। मात्र ११ साल की उम्र में इनका विवाह रैंणी गांव के मेहरबान सिंह से हुआ, रैंणी भोटिया (तोलछा) का स्थायी आवासीय गांव था, ये लोग अपनी गुजर-बसर के लिये पशुपालन, ऊनी कारोबार और खेती-बाड़ी किया करते थे। २२ वर्षीय गौरा देवी पर वैधव्य का कटु प्रहार हुआ, तब उनका एकमात्र पुत्र चन्द्र सिंह मात्र ढाई साल का ही था। गौरा देवी ने ससुराल में रह्कर छोटे बच्चे की परवरिश, वृद्ध सास-ससुर की सेवा और खेती-बाड़ी, कारोबार के लिये अत्यन्त कष्टों का सामना करना पड़ा। उन्होंने अपने पुत्र को स्वालम्बी बनाया, उन दिनों भारत-तिब्बत व्यापार हुआ करता था, गौरा देवी ने उसके जरिये भी अपनी आजीविका का निर्वाह किया। १९६२ के भारत-चीन युद्ध के बाद यह व्यापार बन्द हो गया तो चन्द्र सिंह ने ठेकेदारी, ऊनी कारोबार और मजदूरी द्वारा आजीविका चलाई, इससे गौरा देवी आश्वस्त हुई और खाली समय में वह गांव के लोगों के सुख-दुःख में सहभागी होने लगीं।


इसी बीच अलकनन्दा में १९७० में प्रलंयकारी बाढ़ आई, जिससे यहां के लोगों में बाढ़ के कारण और उसके उपाय के प्रति जागरुकता बनी और इस कार्य के लिये प्रख्यात पर्यावरणविद श्री चण्डी प्रसा भट्ट ने पहल की। भारत-चीन युद्ध के बाद भारत सरकार को चमोली की सुध आई और यहां पर सैनिकों के लिये सुगम मार्ग बनाने के लिये पेड़ों का कटान शुरु हुआ। जिससे बाढ़ से प्रभावित लोगों में संवेदनशील पहाड़ों के प्रति चेतना जागी।

इसी चेतना का प्रतिफल था, हर गांव में महिला मंगल दलों की स्थापना, १९७२ में गौरा देवी जी को रैंणी गांव की महिला मंगल दल का अध्यक्ष चुना गया। इसी दौरान वह चण्डी प्रसा भट्ट, गोबिन्द सिंह रावत, वासवानन्द नौटियाल और हयात सिंह जैसे समाजिक कार्यकर्ताओं के सम्पर्क में आईं। जनवरी १९७४ में रैंणी गांव के २४५१ पेड़ों का छपान हुआ। २३ मार्च को रैंणी गांव में पेड़ों का कटान किये जाने के विरोध में गोपेश्वर में एक रैली का आयोजन हुआ, जिसमें गौरा देवी ने महिलाओं का नेतृत्व किया।

प्रशासन ने सड़क निर्माण के दौरान हुई क्षति का मुआवजा देने की तिथि २६ मार्च तय की गई, जिसे लेने के लिये सभी को चमोली आना था। इसी बीच वन विभाग ने सुनियोजित चाल के तहत जंगल काटने के लिये ठेकेदारों को निर्देशित कर दिया कि २६ मार्च को चूंकि गांव के सभी मर्द चमोली में रहेंगे और समाजिक कायकर्ताओं को वार्ता के बहाने गोपेश्वर बुला लिया जायेगा और आप मजदूरों को लेकर चुपचाप रैंणी चले जाओ और पेड़ों को काट डालो।

श्रमिक रैंणी की ओर चल पड़े और रैंणी से पहले ही उतर कर ऋषिगंगा के किनारे रागा होते हुये रैंणी के देवदार के जंगलों को काटने के लिये चल पड़े। इस हलचल को एक लड़की द्वारा देख लिया गया और उसने तुरंत इससे गौरा देवी को अवगत कराया। पारिवारिक संकट झेलने वाली गौरा देवी पर आज एक सामूहिक उत्तरदायित्व आ पड़ा।

गांव में उपस्थित २१ महिलाओं और कुछ बच्चों को लेकर वह जंगल की ओर चल पड़ी। इनमें बती देवी, महादेवी, भूसी देवी, नृत्यी देवी, लीलामती, उमा देवी, हरकी देवी, बाली देवी, पासा देवी, रुक्का देवी, रुपसा देवी, तिलाड़ी देवी, इन्द्रा देवी शामिल थीं। इनका नेतृत्व कर रही थी, गौरा देवी, इन्होंने खाना बना रहे मजदूरो से कहा”भाइयो, यह जंगल हमारा मायका है, इससे हमें जड़ी-बूटी, सब्जी-फल, और लकड़ी मिलती है, जंगल काटोगे तो बाढ़ आयेगी, हमारे बगड़ बह जायेंगे, आप लोग खाना खा लो और फिर हमारे साथ चलो, जब हमारे मर्द आ जायेंगे तो फैसला होगा।”

ठेकेदार और जंगलात के आदमी उन्हें डराने-धमकाने लगे, उन्हें बाधा डालने में गिरफ्तार करने की भी धमकी दी, लेकिन यह महिलायें नहीं डरी। ठेकेदार ने बन्दूक निकालकर इन्हें धमकाना चाहा तो गौरा देवी ने अपनी छाती तानकर गरजते हुये कहा “मारो गोली और काट लो हमारा मायका” इस पर मजदूर सहम गये। गौरा देवी के अदम्य साहस से इन महिलाओं में भी शक्ति का संचार हुआ और महिलायें पेड़ों के चिपक गई और कहा कि हमारे साथ इन पेड़ों को भी काट लो।

ऋषिगंगा के तट पर नाले पर बना सीमेण्ट का एक पुल भी महिलाओं ने तोड़ डाला, जंगल के सभी मार्गों पर महिलायें तैतात हो गई। ठेकेदार के आदमियों ने गौरा देवी को डराने-धमकाने का प्रयास किया, यहां तक कि उनके ऊपर थूक तक दिया गया। लेकिन गौरा देवी ने नियंत्रण नहीं खोया और पूरी इच्छा शक्ति के साथ अपना विरोध जारी रखा। इससे मजदूर और ठेकेदार वापस चले गये, इन महिलाओं का मायका बच गया। इस आन्दोलन ने सरकार के साथ-साथ वन प्रेमियों और वैज्ञानिकों का ध्यान अपनी ओर खींचा। सरकार को इस हेतु डा० वीरेन्द्र कुमार की अध्यक्षता में एक जांच समिति का गठन किया।

जांच के बाद पाया गया कि रैंणी के जंगल के साथ ही अलकनन्दा में बांई ओर मिलने वाली समस्त नदियों ऋषि गंगा, पाताल गंगा, गरुड़ गंगा, विरही और नन्दाकिनी के जल ग्रहण क्षेत्रों और कुवारी पर्वत के जंगलों की सुरक्षा पर्यावरणीय दृष्टि से बहुत आवश्यक है। इस प्रकार से पर्यावरण के प्रति अतुलित प्रेम का प्रदर्शन करने और उसकी रक्षा के लिये अपनी जान को भी ताक पर रखकर गौरा देवी ने जो अनुकरणीय कार्य किया, उसने उन्हें रैंणी गांव की गौरा देवी से चिपको वूमेन फ्राम इण्डिया बना दिया।श्रीमती गौरा देवी पेड़ों के कटान को रोकने के साथ ही वृक्षारोपण के कार्यों में भी संलग्न रहीं, उन्होंने ऐसे कई कार्यक्रमों का नेतृत्व किया। आकाशवाणी नजीबाबाद के ग्रामीण कार्यक्रमों की सलाहकार समिति की भी वह सदस्य थी। सीमित ग्रामीण दायरे में जीवन यापन करने के बावजूद भी वह दूर की समझ रखती थीं।

उनके विचार जनहितकारी हैं, जिसमें पर्यावरण की रक्षा का भाव निहित था, नारी उत्थान और सामाजिक जागरण के प्रति उनकी विशेष रुचि थी। श्रीमती गौरा देवी जंगलों से अपना रिश्ता बताते हुये कहतीं थीं कि “जंगल हमारे मैत (मायका) हैं” उन्हें दशौली ग्राम स्वराज्य मण्डल की तीस महिला मंगल दल की अध्यक्षाओं के साथ भारत सरकार ने वृक्षों की रक्षा के लिये 1986 में प्रथम वृक्ष मित्र पुरस्कार प्रदान किया गया। जिसे तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी द्वारा प्रदान किया गया था !

जोशीमठ के समीप स्थित है चिपको आंदोलन की नेत्री गौरा देवी का गांव रैणी -वर्ष 1974 में यहीं से शुरू किया था वृक्षों के संरक्षण का अभियान -गौरा के निधन के बाद सरकारी मशीनरी ने नहीं ली गांव की सुध , गोपेश्वर(चमोली): रैणी गांव का नाम आते ही जेहन में उभर आती है उस महिला की तस्वीर, जिसने गंवई होते हुए भी एक ऐसे आंदोलन का सूत्रपात किया, जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उसकी पहचान बन गया। बात हो रही है चिपको आंदोलन की नेत्री गौरा देवी की।

प्रथम महिला वृक्षमित्र के पुरस्कार से नवाजी गई गौरा देवी ने न सिर्फ जंगलों को कटने से बचाया, बल्कि वन माफियाओं को भी वापस लौटने पर मजबूर कर दिया। जीवनपर्यंत गौरा लोगों में पेड़ों के संरक्षण की अलख जगाती रहीं, लेकिन उन्होंने कभी सोचा भी नहीं होगा कि उनके निधन के बाद खुद उनके ही गांव में सरकारी मशीनरी व चंद निजी स्वार्थों के लोभी लोग उनके सपनों का गला घोंट देंगे। आलम यह है कि गांव के नजदीक ही जलविद्युत परियोजना के लिए सुरंगों का ताबड़तोड़ निर्माण किया जा रहा है।

इससे गांव के लोग पलायन को मजबूर हो गए हैं। जोशीमठ से करीब 27 किमी दूर स्थित है रैणी गांव। 26 मार्च 1974 का दिन इस गांव को इतिहास में अमर कर गया। सरकारी अधिकारियों की नजर लंबे समय से गांव के नजदीक स्थित जंगलों पर थी। यहां पेड़ों के कटान के लिए साइमन कंपनी को ठेका दिया गया था, जिसके तहत सैकड़ों मजदूर व ठेकेदार गांव पहुंच गए थे। गांव वालों के विरोध को देखते हुए अधिकारियों ने साजिश के तहत उन्हें चमोली तहसील में वार्ता के लिए बुलाया और पीछे से ठेकेदारों को पेड़ कटान के लिए गांव भेज दिया गया, लेकिन उनका यह कदम आत्मघाती साबित हुआ। गांव में मौजूद गौरा देवी को जैसे ही खबर मिली वह ठेकेदारों के सामने आ गई और पेड़ पर चिपक गई।

देखादेखी अन्य महिलाओं ने भी ऐसा ही किया। ठेकेदारों, मजदूरों ने उन्हें हटाने की बहुत कोशिश की, लेकिन एक नहीं चली। इस तरह चिपको आंदोलन का सूत्रपात हुआ और गौरा ने 2451 पेड़ों को कटने से बचा दिया। चिपको जननी के नाम से विख्यात गौरा का कहना था कि 'जंगल हमारा मायका है हम इसे उजाडऩे नहीं देंगे।' जीवन भर वृक्षों के संरक्षण को संघर्ष करते हुए चार जुलाई 1991 को तपोवन में उनका निधन हो गया।


इससे पूर्व भारत सरकार ने वर्ष 1986 में गौरा देवी को प्रथम महिला वृक्ष मित्र पुरस्कार से नवाजा था। मृत्यु से पूर्व गौरा ने कहा 'मैंने तो शुरुआत की है, नौजवान साथी इसे और आगे बढाएंगे', लेकिन वक्त बदलने के साथ लोग गौरा के सपनों से दूर होते गए। सरकार ने गौरा के गांव में उनके नाम से एक 'स्मृति द्वार' बनाकर खानापूर्ति तो की, लेकिन पिछले 17 साल में शायद ही कभी कोई मौका आया हो, जब इस पर्यावरण हितैषी की याद में कभी सरकारी मशीनरी ने दो पौधे भी रोपे हों। हद तो तब हो गई, जब गौरा के गांव के जनप्रतिनिधियों ने ही उनके अभियान से मुंह मोड़ लिया। स्थिति यह है कि गांव में गौरा के नाम पर बनाए गए मिलन स्थल को गांव के नजदीक बनाए जा रहे बांध की कार्यदायी संस्था 'ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट' को किराए पर दे दिया गया है। इतना ही नहीं, गांव के नजदीक इन दिनों सुरंगों का निर्माण कार्य जोरों पर है, जिसके लिए पेड़ भी काटे जा रहे हैं। परियोजना निर्माण के लिए हो रहे धमाकों से कई घरों में दरारें पड़ गई हैं। ऐसे में लोग यहां से पलायन करने को मजबूर हो गए हैं।

पूर्व ग्राम प्रधान मोहन सिंह राणा व्यथित स्वर में कहते हैं कि सरकार ने गांव को हमेशा ही नजर अंदाज किया। उन्होंने यह भी कहा कि गौरा के सपनों को पूरा करने के लिए दोबारा चिपको जैसे आंदोलन शुरू करने की जरूरत है। गौरा देवी के पुत्र चंद्र सिंह व ग्रामीण गबर सिंह का कहना है कि सुरंग निर्माण को रोकने व गांव की अन्य समसयओं के बाबत कई बार शासन-प्रशासन से गुहार कर चुके हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही।

गौरा देवी मूर्ति का किया विसर्जन

चम्पावत जिले के कई हिस्सों में गौरा महोत्सव की धूम मची। चंपावत में महिलाओं ने भगवती मंदिर में देवी गौरा की मूर्ति का विसर्जन किया। इस मौके पर प्रेमा जोशी, चंद्रकला जोशी, भावना बिष्ट, बसंती बिष्ट, पार्वती देवी, नीलम देवी, कमला पंत आदि महिलाएं मौजूद थीं।

नेपाल सीमा से लगे सुनकुरी गांव में गौरा देवी मंदिर में महिलाओं ने महाभारतकालीन गीतों का गायन किया, जबकि झोड़ा, झुम्टा, पूजा-पाठ का क्रम अनवरत रूप से जारी है। बृहस्पतिवार की रात को यहां कुमाऊं लोक सांस्कृतिक कला दर्पण के कलाकारों ने अनेक रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत कर दर्शकों को देर रात तक बांधे रखा। रंग कर्मी प्रकाश राय के निर्देशन में कलाकारों द्वारा जै जग जननी ज्वाला, दुर्गा रे भवानी वंदना से कार्यक्रम की शुरुआत की गई।

गौरा-महेश्वर पर आधारित लोक नृत्य हरियाली खेत, गंवारा छ भादो में भादो ने समां बांध दिया। वहीं हास्य कलाकार तेज सिंह एवं रश्मि द्वारा इज बाज्यू ले बडो लाड़ प्यार ले पालो, ऐसी सैंणी का हाथ पड़ियूं हल लगा हाल्यूं लोक गीत पर दर्शकों की हंसी का फव्वारा फूट गया। कार्यक्रम में बेबी प्रियंका, मोनिका, खुशाल मेहता, दीपक राय, सुुरेश राजन, पवनदीप राजन, दीपक कुमार, प्रियंका राजन, विरेंद्र मेहता ने अपने दिलकश कार्यक्रम प्रस्तुत किए। बाद में यहां गौरा महोत्सव की धूम शुरू हो गई।

सामाजिक कार्यकर्ता मदन कलौनी, पुष्कर सिंह सामंत, बद्री सिंह, नर सिंह सौन, विक्रम सिंह, उमेद सिंह, खीम सिंह, राजपाल सिंह, हयात सिंह, इंद्र सिंह, शेर सिंह आदि लोगों द्वारा गौरा महोत्सव में उल्लेखनीय सहयोग कर रहे हैं। रविवार को दर्जा राज्यमंत्री हयात सिंह माहरा गौरा महोत्सव का समापन करेंगे।

नेतृत्व क्षमता और विवेक शील बुद्धिमता सिर्फ शिक्षित लोगों में ही नहीं पनपती है, यह तो ह्रदय से अनुकंपित, स्नेह, और लगाव तथा मस्तिष्क की वैचारिक चपल अनुगूँज से प्रस्फुटित होती है, व्यक्ति की वैचारिक क्षमता, कार्यशीलता और अनुभूति की गति पर सदा निर्भर करता है, जितनी अधिक कार्यशीलता होती है उतनी अधिक वैचारिक क्षमता और अनुभूति की व्यग्रता बढती चली जाती है.

यही कार्यशीलता उसे कार्य की दक्षता से नेतृत्व की ओर अग्रसर करती है. इसी का परिणाम क्रांति में स्पंदित हो उठता है. प्रायः क्रांतियाँ शांति और उपकारी दृष्टिकोणों से ही कार्यशील होती है. तब इस कार्य का नेतृत्व कौन कर रहा है इसके निर्धारण का कोई मानदंड शिक्षा में ही निहित नहीं होता है, बल्कि अनपढ़ और अशिक्षित व्यक्ति भी इतना संवेदन शील होता है किउनकी अभिव्यंजना पर पूरी सफल क्रांति आ जाती है.

इसी तरह कि अभिब्यंजना से अनुकंपित, और अभिभूत थी शैल पुत्री गौरा देवी . पूर्णतया अशिक्षित, व् अनपढ़ एक निर्धन एवं हिमालयी जनजातीय परिवार में, चमोली जिले कि नीती घाटी के लातागाँव में १९२५ जन्म हुआ था इस हिम पुत्री का. गौरा के जीवन की गाथा भी बड़ी संघर्ष पूर्ण है .१२ वर्ष की आयु में विवाह, १९ वर्ष में एक पुत्र को जन्म देकर मातृत्व कि सुखानुभूति के बाद, २२ वर्ष की ही आयु में पति का आकस्मिक स्वर्गवास .विधवा का जीवन यों तो आज भी विकटहै किन्तु ५० के दशक में स्थिति कितनी भयावह रही होगी कल्पनातीत है, और तब सयम, और विवेक के साथ जीवटता से जीना आसान काम नहीं . अपने अटल विश्वास, और संघर्ष शील रहकर कभी हार नहीं मानी इस वीरांगना नें, जिसने देश नहीं पूरे विश्व में एक पर्यावरण कि क्रांति ला दी१९६२ के चीनी आक्रमण के बाद जब भारत सरकार ने अपने सरहदों की सुध ली और वहाँ सड़कों का निर्माण किया तो धड़ाधड़ पेड काटे जाने लगे। इसे देखते हुए सन्‌ १९७२ में रैंणी गाँव के लोगों में चर्चा हुई और एक महिला मंगलदल का गठन हुआ जिसकी अध्यक्षा गौरा देवी को बनाया गया। गाँवों के जल, जंगल और ज़मीन को बचाने के लिए लोगों में जागरण पैदा किया गया।

न्‌ १९७४ की है जब रैंणी गाँव के जंगल के लगभग ढाई हज़ार पेड़ों को काटने की नीलामी हुई। गौरा देवी ने महिला मंगलदल के माध्यम से उक्त नीलामी का विरोध किया। इसके बावजूद सरकार और ठेकेदार के निर्णय में बदलाव नही आया। जब ठेकेदार के आदमी पेड़ काटने पहुँचे तो गौरा देवी और उनके २१ साथियों ने उन लोगों को समझाने का प्रयास किया।गौरा देवी ने कहा कि ये जंगल हमारे देवता हैं और यदि हमारे रहते किसी ने हमारे देवता पर हथियार उठाया तो तुम्हारी खैर नहीं। जब ठेकेदार के लोगों ने पेड़ काटने की ज़िद की तो महिलाओं ने पेड़ों से चिपक कर उन्हें ललकारा कि पहले हमें काटो फिर इन पेड़ों को हाथ लगाना। काफी जद्दोजहद के बाद ठेकेदार के लोग चले गए।

क्या है जंगल के उपकार, मिटटी पानी और वयार,मिटटी पानी और वयार, जिन्दा रहने के आधार पुनः जनवरी १९७४ में सरकार ने चमोली जिले के नीती घाटी के जंगलों में कटान की योजना बनायीं और तब मंडल फाटा की मुहिम पैन्खाडा ब्लाक के नीती घाटी के रैणी गाँव के जंगलों में फ़ैल गयी. यहाँ इसकी सूत्रधार थी गौर देवी. २६ मार्च १९७४ को जंगलों में कटान का कार्य शरू होना था. गांववासियों को पता चलने पर उन्होंने भारी विरोध दर्ज किया. ठेकेदारों ने विरोध में कार्य स्थगित कर रात में कटान की योजना बनायीं. किन्तु शाम को गावं की एक लड़की को इसकी भनक लग गयी. और तब उसने यह सूचना गौरादेवी को दी. गौरा देवी रैणी गावं की महिला समिति की अध्यक्षा भी थी. इस समय गावं में पुरुष वर्ग भी मौजूद न था

गौरा ने गाँव की महिलाओं को एकत्रित कर जंगल की ओर कूच किया. और पेड़ों को आलिंगन बध कर एक चेतावनी दे डाली ठेकेदारों को . कुल्हाड़ी पहले हम पर चलेगी फिर इन पेड़ों पर. अपने आंचल की छाया से इन वृक्षों को बचाया आततायियों के चंगुल से और पूरी रात निर्भय और बेखोफ होकर जग्वाली की अपने शिशुवत पेड़ों की. यही से आन्दोलन की भूमिका तेज हो गयी और आग की तरह पूरे उत्तराखंड में फ़ैल गयी .

तब इसी चिपको आन्दोलन को पुनः दिशा दी श्री चंडी प्रसाद भट्ट ने .तदुपरांत भट्ट जी को श्री सुंदर लाल बहुगुणा का सानिध्य प्राप्त हुआ और इन दोनों के नेतृत्व में चिपको आन्दोलन सिर्फ उत्तराखंड तक ही नहीं सीमित रहा बल्कि पूरे विश्व पटल पर पर्यावरण को नयी दिशा मिली . यदि गौरा देवी अपनी जीवटता और अदम्य सहस का परिचय न देती तो शायद आज ग्लोवल वार्मिंग की स्थिति और भी भयावह होती. उत्तराखंड में औषधीय गुणों की वनस्पतिया आज देखने को भी न मिलती. इसी के प्रतिफल में इन दोनों नेताओं को मैग्सेसे पुरुष्कार से भी सम्मानित किया गया .

चिपको का अलख जगाने वाली गौरा देवी के साथ-साथ चमोली में इस आंदोलन की कमान संभालने वाली दूसरी महिला थीं बाली देवी.

उन्हें इस बार संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम में अतिथि के तौर पर बुलाया गया था. बाली देवी 45 देशों की उन महिलाओं में थीं जिन्हें पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने के लिए ये गौरव हासिल हुआ. शांति के लिए नोबल पुरस्कार पाने वाली केन्या की वंगारी मथाई ने इस बैठक की अध्यक्षता की.गौरा देवी अब नहीं हैं लेकिन बाली देवी कहती हैं, "मैं गौरा का संदेश लेकर वहाँ गई कि पेड़ हैं तो जीवन हैं."

पाखी और अंगडू की परंपरागत पोशाक पहने बाली ने जब अपना भाषण दिया तो देर तक तालियाँ बजती रहीं. उन्होंने कहा "पहाड़ हमारे लिए भगवान हैं और पेड़ हमारे लिए पूजा. भारत में हो या फिर दुनिया में कहीं भी पेड़ पौधे, नदी- झरने,पहाड़ सभी जगह एक जैसे हैं. चांदनी की जो किरणें धरती पर गिरती हैं वो भी सभी जगह एक जैसी ही हैं. पर्यावरण को बचाने के लिये हमारी लड़ाई एक ही है. हम सब बहनें एक हैं."

बाली देवी को इस बात पर बहुत अचरज हुआ कि चिपको के बारे में वहाँ काफी लोग जानते थे,”लोगों ने बड़ी दिलचस्पी से इसके बारे में और जानना चाहा कि कैसे हमने पेड़ों से चिपक-चिपक कर उन्हें बचाया.”








पैन की नोंक पर -Kumar Vishwas


 पैन की नोंक पर
आतुर उमड़ पड़ते शब्द
आज सहमे संकोच में
ठिठके हैं प्रहरों से
मुझ में बंद कथन से असम्पृक्त
अगम,अकथ,असह्य
जानते हैं ये अराजक
जैसे शैतान बच्चों के
अकारण पिट जाने पर
माँ के विवश हाथों
ऐसे गुमसुम चौकन्ने
चाहते हैं बीत जाए
कुछ कठिन वक़्त
यूँ ही बेसबब छितराए
पैन की नोंक पर
कल शायद या फिर कभी
रौ में लहराएँ ये गीतवंशी
फिर अनहद उमग
भूल कर कि  यूँ ठिठके थे 
चोटिल.गतिबाधित,निरुपाय
एक दिन कुछ प्रहर
पैन की नोंक पर

Government Schemes and Projects that have been named after the Nehru-Gandhi family.


The following are some of the Government Schemes and Projects that have been named after the Nehru-Gandhi family.

Central Government Schemes

1. Rajiv Gandhi Grameen Vidyutikaran Yojana, Ministry of Power
2. Rajiv Gandhi National Drinking Water Mission (RGNDWM)
3. Rajiv Gandhi National Crèche Scheme
4. Rajiv Gandhi Udyami Mitra Yojana
5. Indira Awas Yojana, Ministry of Rural Areas and Environment
6. Indira Gandhi National Old Age Pension Scheme
7. Jawaharlal Nehru Urban Renewal Mission, Ministry of Urban
8. Jawaharlal Nehru Rojgar Yojna
9. Rajiv Gandhi Shramik Kalyan Yojna
10. Indira Gandhi Canal Project, Funded by World Bank
11. Rajiv Gandhi Shilpi Swasthya Bima Yojana,
12. Indira Vikas Patra



State Government Schemes

1. Rajiv Gandhi Rehabilitation Package
2. Rajiv Gandhi Social Security Scheme for poor people
3. Rajiv Ratna Awas Yojna
4. Rajiv Gandhi Prathamik Shiksha Mission , Raigarh
5. Rajiv Gandhi Shiksha Mission, Madhya Pradesh
6. Rajiv Gandhi Mission on Food Security , Madhya Pradesh
7. Rajiv Gandhi Mission on Community Health, Madhya Pradesh
8. Rajiv Gandhi Rural Housing Corporation Limited (a Govt Company)
9. Rajiv Gandhi Tourism Development Mission, Rajasthan
10. Rajiv Gandhi Computer Literacy Programme, Assam
11. Rajiv Gandhi Swavlamban Rojgar Yojana, Govt. of NCT of Delhi
12. Rajiv Gandhi Mobile Aids Counseling and Testing Services
13. Rajiv Gandhi Vidyarthi Suraksha Yojana, Maharashtra
14. Rajiv Gandhi Mission for Water Shed Management, M.P.
15. Rajiv Gandhi Food Security Mission for Tribal Areas, MP
16. Rajiv Gandhi Home for Handicapped, Pondicherry
17. Rajiv Gandhi Breakfast Scheme, Pondicherry
18. Rajiv Gandhi Akshay Urja Divas, Punjab
19. Rajiv Gandhi Artisans Health and Life Insurance Scheme, Tamil Nadu
20. Rajiv Gandhi Zopadpatti and Nivara Prakalpa, Mumbai
21. Rajiv Arogya Sri programme , Gujrat State Govt. Scheme
22. Rajiv Gandhi Abhyudaya Yojana, AP
23. Rajiv Gandhi Computer Saksharta Mission, Jabalpur
24. Rajiv Gandhi Bridges and Roads Infrastructure Development Haryana
25. Rajiv Gandhi Gramin Niwara Prakalp, Maharashtra Govt.
26. Indira Gandhi Utkrishtha Chhattervritti Yojna Himachal Pradesh
27. Indira Gandhi Women Protection Scheme, Maharashtra Govt.
28. Indira Gandhi Prathisthan, Housing and Urban Planning, UP Govt
29. Indira Kranthi Patham Scheme, Andhra Pradesh
30. Indira Gandhi Nahar Pariyojana, State Govt. Scheme
31. Indira Gandhi Vruddha Bhumiheen Shetmajoor Anudan Yojana, Maharashtra
32. Indira Gandhi Nahar Project (IGNP), Jaisalmer, Govt. of Rajasthan
33. Indira Gandhi Niradhar Yojna, Govt. of Maharashtra
34. Indira Gandhi kuppam, State Govt. Welfare Scheme for Tsunami
35. Indira Gandhi Drinking Water Scheme-2006, Haryana Govt.
36. Indira Gandhi Niradhar Old, Landless, Destitute women Maharashtra Govt.
37. Indira Gandhi Women Protection Scheme , Maharashtra Govt.
38. Indira Gaon Ganga Yojana, Chattisgarh
39. Indira Sahara Yojana , Chattisgarh
40. Indira Soochna Shakti Yojana, Chattisgarh
41. Indira Gandhi Balika Suraksha Yojana , HP
42. Indira Gandhi Garibi Hatao Yojana (DPIP), MP
43. Indira Gandhi super thermal power project , Haryana Govt.
44. Indira Gandhi Water Project, Haryana Govt.
45. Indira Gandhi Sagar Project, Bhandara District Gosikhurd Maharashtra
46. Indira Jeevitha Bima Pathakam, AP Govt
47. Indira Gandhi Priyadarshani Vivah Shagun Yojana, Haryana Govt.
48. Indira Mahila Yojana Scheme, Meghalaya Govt
49. Indira Gandhi Calf Rearing Scheme, Chhattisgarh Govt.
50. Indira Gandhi Priyadarshini Vivah Shagun Yojana, Haryana Govt.
51. Indira Gandhi Calf Rearing Scheme, The government of Andhra
52. Indira Gandhi Landless Agriculture Labour scheme, Maharashtra Govt.



Sports/Tournaments/Trophies

1. Rajiv Gandhi Gold Cup Kabaddi Tournament
2. Rajiv Gandhi Sadbhavana Run
3. Rajiv Gandhi Federation Cup boxing championship
4. Rajiv Gandhi International tournament (football)
5. NSCI – Rajiv Gandhi road races, New Delhi
6. Rajiv Gandhi Boat Race, Kerala
7. Rajiv Gandhi International Artistic Gymnastic Tournament
8. Rajiv Gandhi Kabbadi Meet
9. Rajiv Gandhi Memorial Roller Skating Championship
10. Rajiv Gandhi memorial marathon race, New Delhi
11. Rajiv Gandhi International Judo Championship, Chandigarh
12. Rajeev Gandhi Memorial Trophy for the Best College, Calicut
13. Rajiv Gandhi Rural Cricket Tournament, by Rahul Gandhi in Amethi
14. Rajiv Gandhi Gold Cup (U-21), football
15. Rajiv Gandhi Trophy (football)
16. Rajiv Gandhi Award for Outstanding Sportspersons
17. All Indira Rajiv Gandhi Basketball (Girls) Tournament, Delhi
18. All India Rajiv Gandhi Wrestling Gold Cup, organized by Delhi State
19. Rajiv Gandhi Memorial Jhopadpatti Football Tournament, Rajura
20. Rajiv Gandhi International Invitation Gold Cup Football, Jamshedpur
21. Rajiv Gandhi Mini Olympics, Mumbai
22. Rajiv Gandhi Beachball Kabaddi Federation
23. Rajiv Gandhi Memorial Trophy Prerana Foundation
24. International Indira Gandhi Gold Cup Tournament
25. Indira Gandhi International Hockey Tournament
26. Indira Gandhi Boat Race
27. Jawaharlal Nehru International Gold Cup Football Tournament.
28. Jawaharlal Nehru Hockey Tournament.



Stadium

1. Indira Gandhi Sports Complex, Delhi
2. Indira Gandhi Indoor Stadium, New Delhi
3. Jawaharlal Nehru Stadium, New Delhi
4. Rajiv Gandhi Sports Stadium, Bawana
5. Rajiv Gandhi National Football Academy, Haryana
6. Rajiv Gandhi AC Stadium, Vishakhapatnam
7. Rajiv Gandhi Indoor Stadium, Pondicherry
8. Rajiv Gandhi Stadium, Nahariagun, Itanagar
9. Rajiv Gandhi Badminton Indoor Stadium, Cochin
10. Rajiv Gandhi Indoor Stadium, Kadavanthra,Ernakulam
11. Rajiv Gandhi Sports Complex , Singhu
12. Rajib Gandhi Memorial Sports Complex, Guwahati
13. Rajiv Gandhi International Stadium, Hyderabad
14. Rajiv Gandhi Indoor Stadium, Cochin
15. Indira Gandhi Stadium, Vijayawada, Andhra Pradesh
16. Indira Gandhi Stadium, Una, Himachal Pradesh
17. Indira Priyadarshini Stadium, Vishakhapatnam
18. Indira Gandhi Stadium, Deogarh, Rajasthan
19. Gandhi Stadium, Bolangir, Orissa



Airports/ Ports

1. Rajiv Gandhi International Airport, New Hyderabad, A.P.
2. Rajiv Gandhi Container Terminal, Cochin
3. Indira Gandhi International Airport, New Delhi
4. Indira Gandhi Dock, Mumbai
5. Jawaharlal Nehru Nava Sheva Port Trust, Mumbai



Universities/Education Institutes

1. Rajiv Gandhi Indian Institute of Management, Shilong
2. Rajiv Gandhi Institute of Aeronautics, Ranchi, Jharkhand
3. Rajiv Gandhi Technical University, Gandhi Nagar, Bhopal, M.P.
4. Rajiv Gandhi School of Intellectual Property Law, Kharagpur, Kolkata
5. Rajiv Gandhi Aviation Academy, Secundrabad
6. Rajiv Gandhi National University of Law, Patiala, Punjab
7. Rajiv Gandhi National Institute of Youth Development, Tamil Nadu
8. Rajiv Gandhi Aviation Academy, Begumpet, Hyderabad, A.P
9. Rajiv Gandhi Institute of Technology, Kottayam, Kerala
10. Rajiv Gandhi College of Engineering Research & Technology, Maharashtra
11. Rajiv Gandhi College of Engineering, Airoli, Navi Mumbai, Maharashtra
12. Rajiv Gandhi University, Itanagar, Arunachal Pradesh
13. Rajiv Gandhi Institute of Technology, Chola Nagar, Bangalore, Karnataka
14. Rajiv Gandhi Proudyogiki Vishwavidyalaya, Gandhi Nagar, Bhopal, M.P.
15. Rajiv Gandhi D.e.d. College, Latur, Maharashtra
16. Rajiv Gandhi College, Shahpura, Bhopal
17. Rajiv Gandhi Foundation, Rajiv Gandhi Institute, New Delhi
18. Rajiv Gandhi Institute of Petroleum Technology, Raebareli, U.P.
19. Rajiv Gandhi Homeopathic Medical College, Bhopal, M.P.
20. Rajiv Gandhi Institute of Post Graduate Studies, East Godavari District, A.P.
21. Rajiv Gandhi College of Education, Thumkur, Karnataka
22. Rajiv Gandhi College of Veterinary & Animal Sciences, Tamil Nadu
23. Rajiv Gandhi Institute of IT and Biotechnology, Bhartiya Vidhyapeeth
24. Rajiv Gandhi High School, Mumbai, Maharashtra
25. Rajiv Gandhi Group of Institutions, Satna, M.P.
26. Rajiv Gandhi College of Engineering, Sriperumbudur, Tamil Nadu
27. Rajiv Gandhi Biotechnology Centre, R.T.M., Nagpur University
28. Rajiv Gandhi Centre for Biotechnology, Thiruvananthapuram, Kerala
29. Rajiv Gandhi Mahavidyalaya, Madhya Pradesh
30. Rajiv Gandhi Post Graduate College, Allahabad, U.P.
31. Rajiv Gandhi Institute of Technology, Bangalore, Karnataka
32. Rajiv Gandhi Govt. PG Ayurvedic College, Poprola, Himachal Pradesh
33. Rajiv Gandhi College, Satna, M.P.
34. Rajiv Gandhi Academy for Aviation Technology, Thiruvananthapuram, Kerala
35. Rajiv Gandhi Madhyamic Vidyalaya, Maharashtra
36. Rajiv Gandhi Institute of Contemporary Studies, Islamabad, Pakistan
37. Rajiv Gandhi Centre for Innovation and Entrepreneurship
38. Rajiv Gandhi Industrial Training Centre, Gandhinagar
39. Rajiv Gandhi University of Knowledge Technologies, Andhra Pradesh
40. Rajiv Gandhi Institute Of Distance Education, Coimbatore, Tamil Nadu
41. Rajiv Gandhi Centre for Aquaculture , Tamil Nadu
42. Rajiv Gandhi University (Arunachal University), A.P.
43. Rajiv Gandhi Sports Medicine Centre (RGSMC), Kerela
44. Rajiv Gandhi Science Centre, Mauritus
45. Rajiv Gandhi Kala Mandir, Ponda, Goa
46. Rajiv Gandhi Vidyalaya, Mulund, Mumbai
47. Rajiv Gandhi Memorial Polytechnic, Bangalore, Karnataka
48. Rajiv Gandhi Memorial Circle Telecom Training Centre (India), Chennai
49. Rajiv Gandhi Institute of Pharmacy, Kasagod, Kerala
50. Rajiv Gandhi Memorial College Of Aeronautics, Jaipur
51. Rajiv Gandhi Memorial First Grade College, Shimoga
52. Rajiv Gandhi Memorial College of Education, Jammu & Kashmir
53. Rajiv Gandhi South Campus, Barkacha, Varanasi
54. Rajiv Gandhi Memorial Teacher’s Training College, Jharkhand
55. Rajiv Gandhi Degree College, Rajahmundry, A.P.
56. Indira Gandhi National Open University (IGNOU), New Delhi
57. Indira Gandhi Institute of Development & Research, Mumbai, Maharashtra
58. Indira Gandhi National Forest Academy, Dehradun
59. Indira Gandhi RashtriyaUran Akademi, Rae Bareli, Uttar Pradesh
60. Indira Gandhi Institute of Development Research, Mumbai
61. Indira Gandhi National Tribal University, Orissa
62. Indira Gandhi B.Ed. College, Mangalore
63. Smt. Indira Gandhi College of Education, Nanded, Maharashtra
64. Indira Gandhi Balika Niketan B.ED. College, Jhunjhunu, Rajasthan
65. Indira Gandhi Krishi Vishwavidyalaya, Raipur, Madhya Pradesh
66. Smt. Indira Gandhi College of Engineering, Navi Mumbai, Maharashtra
67. Smt. Indira Gandhi Colelge, Tiruchirappalli
68. Indira Gandhi Engineering College, Sagar, Madhya Pradesh
69. Indira Gandhi Institute of Technology, Kashmere Gate, Delhi
70. Indira Gandhi Institute of Technology, Sarang, Dist. Dhenkanal, Orissa
71. Indira Gandhi Institute of Aeronautics, Pune, Maharashtra
72. Indira Gandhi Integral Education Centre, New Delhi
73. Indira Gandhi Institute of Physical Education & Sports Sciences, Delhi
74. Indira Gandhi High School, Himachal
75. Indira Kala Sangit Vishwavidyalaya, Chhattisgarh
76. Indira Gandhi Medical College, Shimla
77. Jawaharlal Nehru Technological University, Kukatpally, Andhra Pradesh
78. Nehru Institute of Mountaineering, Uttarakashi
79. Pandit Jawaharlal Nehru Institute of Business Management, Vikram University
80. Jawaharlal Nehru University, New Delhi
81. Jawaharlal Nehru Centre for Advanced Scientific Research, Bangalore
82. Jawaharlal Nehru Technological University, Kukatpally, AP
83. Jawaharlal Nehru Engineering College in Aurangabad, Maharashtra
84. Jawaharlal Nehru Centre for advanced Scientific Research, Bangalore
85. Jawaharlal Nehru Institute of Social Studies, affiliated(Pune, Maharashtra)
86. Jawaharlal Nehru College of Aeronautics & Applied Sciences, Coimbatore
87. Jawaharlal Nehru Institute of Tech, Katraj, Dhankwdi, Pune, Maharashtra
88. Kamal Kishore Kadam’s Jawaharlal Nehru Engineering CollegeMaharashtra
89. Jawaharlal Nehru Institute of Education & Technological Research, Nanded, Maharashra
90. Jawaharlal Nehru College, Aligarh
91. Jawaharlal Nehru Technological University, Hyderabad
92. Jawaharlal Nehru Krishi Vishwavidyalaya, Jabalpur
93. Jawaharlal Nehru B.Ed. College, Kota, Rajasthan
94. Jawaharlal Nehru P.G. College, Bhopal
95. Jawaharlal Nehru Government Engineering College, Sundernagar, H.P.
96. Jawaharlal Nehru PublicSchool, Kolar Road, Bhopal
97. Jawaharlal Nehru Technological University, Kakinada, A.P.
98. Jawaharlal Nehru Institute of Technology, Ibrahimpatti, Andhra Pradesh



Awards

1. Rajiv Gandhi Award for Outstanding Achievement
2. Rajiv Gandhi Shiromani Award
3. Rajiv Gandhi Shramik Awards, Delhi Labour Welfare Board
4. Rajiv Gandhi National Sadbhavana Award
5. Rajiv Gandhi Manav Seva Award
6. Rajiv Gandhi Wildlife Conservation Award
7. Rajiv Gandhi National Award Scheme for Original Book Writing on Gyan Vigyan
8. Rajiv Gandhi Khel Ratna Award
9. Rajiv Gandhi National Quality Award
10. Rajiv Gandhi Environment Award for Clean Technology, Govt. of India
11. RajivGandhi Travelling Scholarship
12. Rajiv Gandhi(UK) Foundation Scholarship
13. Rajiv Gandhi Film Awards (Mumbai)
14. Rajiv Gandhi Khelratna Puraskar
15. Rajiv Gandhi Parisara Prashasti, Karnataka
16. RajivGandhi Vocational Excellence Awards
17. Rajiv Gandhi Excellence award
18. Indira Gandhi Peace Prize
19. Indira Gandhi Prize for National Integration
20. Indira Gandhi Priyadarshini Award
21. Indira Priyadarshini Vrikshamitra Awards, Ministry of Environment and Forests
22. Indira Gandhi Memorial National Award forBest Environmental & Ecological
23. Indira Gandhi Paryavaran Purashkar
24. Indira Gandhi NSS Award
25. Indira Gandhi Award for National Integration
26. Indira Gandhi Official Language Award Scheme
27. Indira Gandhi Award for Best First Film
28. Indira Gandhi Rajbhasha Awards for The Town Official Language
29. Indira Gandhi Prize” for Peace, Disarmament and Development
30. Indira Gandhi Prize for Popularization of Science
31. Implementation
32. Indira Gandhi Shiromani Award
33. Indira Gandhi NSS Award/National Youth
34. Indira Gandhi Paryavaran Pushar award – search n correct
35. Indira Gandhi N.S.S Awards
36. Indira Gandhi award for social service, MP Govt.
37. Post Graduate Indira Gandhi Scholarship Scheme
38. Indira Gandhi Rajbhasha Award Scheme
39. Indira Gandhi Rajbhasha Shield Scheme
40. Indira Gandhi Vision of Wildlife Conservation Zoo
41. Jawaharlal Nehru award for International peace
42. Soviet Land Nehru Award, a cash prize of Rs. 20,000 given to Shyam Benegal in Dec 89, in recognition of the above film
43. Jawaharlal Nehru Balkalyan awards of Rs.10,000 each to 10 couples by Govt. of Maharashtra (ToI-28-4-89).
44. Jawaharlal Nehru Memorial Fund, New Delhi, for Academic Achievement
45. Jawaharlal Nehru birth centenary research award for energy
46. Jawaharlal Nehru Award for International Understanding
47. Nehru Bal Samiti Bravery Awards
48. Jawaharlal Nehru Memorial Medal
49. Jawaharlal Nehru Prize” from 1998-99, to be given to organizations (preferably NGOs) for Popularization of Science.
50. Jawaharlal Nehru National Science Competition
51. Jawarharlal Nehru Student Award for research project of evolution of DNA



Scholarship / Fellowship

1. Rajiv Gandhi Scholarship Scheme for Students with Disabilities
2. Rajiv Gandhi National Fellowship Scheme for SC/ST Candidates, Ministry of Social Justice and Empowerment
3. Rajiv Gandhi National Fellowship Scheme for ST Candidates
4. Rajiv Gandhi Fellowship, IGNOU
5. Rajiv Gandhi Science Talent Research Fellows
6. Rajiv Gandhi Fellowship, Ministry of Tribal Affairs
7. Rajiv Gandhi National Fellowship Scheme
8. Rajiv Gandhi Fellowship sponsored
9. Rajiv Gandhi science talent research fellowship
10. Rajiv Gandhi HUDCO Fellowships in the Habitat Sector
11. Indira Gandhi Memorial Fellowships check
12. Fullbright scholarship now renamed Fullbright- Jawaharlal Nehru Scholarship
13. Cambridge Nehru Scholarships, for research at Cambridge Univ, London
14. Scheme of Jawaharlal Nehru Fellowships for Post-graduate Studies
15. Nehru Centenary (British) Fellowships/Awards



National Parks/ Sanctuaries/ Museums

1. Rajiv Gandhi (Nagarhole) Wildlife Sanctury, Karnataka
2. Rajiv Gandhi Wildlife Sanctury, Andhra Pradesh
3. Indira Gandhi National Park, Tamil Nadu
4. Indira Gandhi Zoological Park , New Delhi
5. Indira Gandhi National Park, Anamalai Hills on Western Ghats
6. Indira Gandhi Zoological Park, Vishakhapatnam
7. Indira Gandhi Rashtriya Manav Sangrahalaya (IGRMS)
8. Indira Gandhi Wildlife Sanctuary, Pollachi
9. Rajiv Gandhi Health Museum
10. The Rajiv Gandhi Museum of Natural History
11. Indira Gandhi Memorial museum, New Delhi
12. Jawaharlal Nehru museum in Aurangabad, Maharashtra opened by state govt.
13. Jawaharlal Nehru memorial Gallery, London
14. Jawaharlal Nehru planetarium, Worli, Mumbai.
15. Jawaharlal Nehru National Science Exhibition for Children



Hospitals/Medical Institutions

1. Rajiv Gandhi University of Health Science, Bangalore, Karnataka
2. Rajiv Gandhi Cancer Institute & Research Centre, Delhi
3. Rajiv Gandhi Home for Handicapped, Pondicherry
4. Shri Rajiv Gandhi college of Dental Science & Hospital, Bangalore, Karnataka
5. Rajiv Gandhi Centre for Bio Technology, Thiruvanthapuram, Kerala
6. Rajiv Gandhi College of Nursing, Bangalore, Karnataka
7. Rajiv Gandhi Super Specialty Hospital, Raichur
8. Rajiv Gandhi Institute of Chest Diseases, Bangalore, Karnataka
9. Rajiv Gandhi Paramedical College, Jodhpur
10. Rajiv Gandhi Medical College, Thane, Mumbai
11. Rajiv Gandhi Institute of Pharmacy, Karnataka
12. Rajiv Gandhi Hospital, Goa
13. Rajiv Gandhi Mission on Community Health, Madhya Pradesh
14. Rajiv Gandhi Super Specialty Hospital, Delhi
15. Rajiv Gandhi Homoeaopathic Medical College, Chinar Park, Bhopal, M.P
16. North Eastern Indira Gandhi of Health & Medical Sciences, Meghalaya
17. Indira Gandhi Medical College, Shimla
18. Indira Gandhi Institute of Child Health, Bangalore
19. Indira Gandhi Institute of Medical Sciences, Sheikhpura, Patna
20. The Indira Gandhi Paediatric Hospital, Afghanistan
21. Indira Gandhi Institute of Child Health Hospital, Bangalore
22. Indira Gandhi Institute of Child Heath, Bangalore
23. Indira Gandhi Medical College, Shimla
24. Indira Gandhi Institute of Dental Science, Kerala
25. Indira Gandhi Memorial Ayurvedic Medical College & Hospital, Bhubaneshwar
26. Indira Gandhi Government Medical College and Hospital, Nagpur
27. Indira Gandhi Eye Hospital And Research Centre, Kolkata
28. Indira Gandhi Hospital, Shimla
29. Indira Gandhi Women and Children Hospital , Bhopla
30. Indira Gandhi Gas Relief hospital, Bhopal
31. Kamla Nehru Hospital, Shimla
32. Chacha Nehru Bal Chikitsalaya
33. Jawaharlal Institute of Postgraduate Medical Education
34. Jawaharlal Nehru Cancer Hospital and Research Centre, Bhopal
35. Jawaharlal Nehru Medical College in Raipur.
36. Nehru Homoeopathic Medical College & Hospital, New Delhi
37. Nehru, Science Centre, Worli, Mumbai
38. Jawaharlal Nehru Cancer Hospital & Research Centre, Bhopal
39. Pandit Jawaharlal Nehru Institute of Homoeopathic Medical, Maharashtra


Institutions / Chairs / Festivals

1. Rajiv Gandhi National Institute of Youth Development. (RGNIYD)
2. Rajiv Gandhi National Ground Water Training & Research Inst, Haryana
3. Rajiv Gandhi Food Security Mission in Tribal Areas
4. Rajiv Gandhi National Institute of Youth Development
5. Rajiv Gandhi Shiksha Mission, Chhattisgarh
6. Rajiv Gandhi Chair Endowment established in 1998
7. Rajiv Gandhi Project – A pilot to provide Education thru Massive Satellite Connectivity up grassroot Level
8. Rajiv Gandhi Rural Housing Corporation Limited (Government of Karnataka Enterprise)
9. Rajiv Gandhi Information and Technology Commission
10. Rajiv Gandhi Chair for Peace and Disarmament
11. Rajiv Gandhi Music Festival
12. Rajiv Gandhi Memorial Lecture
13. Rajiv Gandhi Akshay Urja Diwas
14. Rajiv Gandhi Education Foundation, Kerala
15. Rajiv Gandhi Panchayati Raj Convention
16. The Rajiv Gandhi Memorial Educational and Charitable Society, Kasagod,Kerala
17. Rajiv Gandhi Memorial trophy ekankika spardha,Kari Road
18. Indira Gandhi National Centre for the Arts, Janpath, New Delhi
19. Indira Gandhi Panchayati Raj & Gramin Vikas Sansthan, Jaipur, Rajasthan
20. Indira Gandhi Centre for Atomic Research (IGCAR), Kalpakkam
21. Indira Gandhi Institute for Development and Research , Mumbai
22. Indira Gandhi Institute of Cardiology (IGIC), Patna
23. Indira Gandhi National Center for the Arts, New Delhi
24. Indira Gandhi National Foundation, Thiruvananthapuram, Kerala
25. Indira Gandhi Mahila Sahakari Soot Girani Ltd, Maharashtra
26. Indira Gandhi Conservation Monitoring Centre , Ministry of Envir & Forest
27. Post-Graduate Indira Gandhi Scholarship for Single Girl Child
28. Jawahar Shetkari Sahakari Sakhar Karkhana Ltd.
29. Nehru Yuva Kendra Sangathan
30. Jawaharlal Nehru Centenary celebrations
31. Postal stamps of different denominations and one Rupee coins in memory of Jawaharlal Nehru.
32. Jawaharlal Nehru Memorial Trust (U.K.) Scholarships
33. Jawaharlal Nehru Custom House Nhava Sheva, Maharashtra
34. Jawaharlal Nehru Centre for. Advanced Scientific Research, Bangalore
35. Jawaharlal Nehru Cultural Centre, Embassy of India, Moscow
36. Pandit Jawaharlal Nehru Udyog Kendra for Juveniles, Pune, Maharastra
37. Pandit Jawaharlal Nehru college of agriculture and research, Pondicherry



Roads/Buildings/places

1. Rajiv Chowk, Delhi
2. Rajiv Gandhi Bhawan, Safdarjung, New Delhi
3. Rajiv Gandhi Handicrafts Bhawan, New Delhi
4. Rajiv Gandhi Park, Kalkaji, Delhi
5. Indira Chowk, New Delhi
6. Nehru Planetarium, New Delhi
7. Nehru Yuvak Kendra, Chanakyapuri, New Delhi
8. Nehru Nagar, New Delhi
9. Nehru Place, New Delhi
10. Nehru Park, New Delhi Nehru House, BSZ Marg, New Delhi
11. Jawaharlal Nehru Government House New Delhi
12. Rajiv Gandhi Renewable Energy Park, Gurgaon, Haryana
13. Rajiv Gandhi Chowk, Andheri, Mumbai
14. Indira Gandhi Road, Mumbai
15. Indira Gandhi Nagar, Wadala, Mumbai
16. Indira Gandhi Sports Complex, Mulund, Mumbai
17. Nehru Nagar, Kurla, Mumbai
18. Jawaharlal Nehru gardens at Thane, Mumbai
19. Rajiv Gandhi Memorial Hall, Chennai
20. Jawaharlal Nehru Road, Vadapalani, Chennai, Tamilnadu
21. Rajiv Gandhi Salai (Old Mahabalipuram road named after Rajiv Gandhi)
22. Rajiv Gandhi Education City, Haryana
23. Mount Rajiv, a peak in Himalaya
24. Rajiv Gandhi IT Habitat, Goa
25. Rajiv Gandhi Nagar, Chennai
26. Rajiv Gandhi Park, Vijayawada
27. Rajiv Gandhi Nagar in Coimbatore, Tamil Nadu
28. Rajiv Gandhi Nagar, Trichy, Tamil Nadu
29. Rajiv Gandhi IT Park, Hinjewadi, Pune
30. Rajiv Gandhi Panchayat Bhav , Palanpur Banaskantha
31. Rajiv Gandhi Chandigarh Technology Park, Chandigarh
32. Rajiv Gandhi Smriti Van, Jharkhand
33. Rajiv Gandhi statue, Panaji, Goa
34. Rajiv Gandhi Road, Chittoor
35. Rajiv Gandhi Memorial at Sriperumbudur
36. Indira Gandhi Memorial Library, University of Hyderabad
37. Indira Gandhi Musical Fountains, Bangalore
38. Indira Gandhi Planetarium , Lucknow
39. Indira Gandhi Centre for Indian Culture (IGCIC), High Commission of India, Mauritus
40. Indira Gandhi Zoological Park , Eastern Ghats of India
41. Indira Gandhi Canal, Ramnagar, Jaisalmer
42. Indira Gandhi Industrial Complex, Ranipet, Vellore District
43. Indira Gandhi Park, Itanagar
44. Indira Gandhi Squiare , Pondicherry
45. Indira Gandhi Road, Willingdon Island, Cochin
46. Indira Gandhi Memorial Tulip Garden, Kashmir
47. Indira Gandhi Sagar Dam, Nagpur
48. Indira Gandhi bridge, Rameshvar, Tamil Nadu
49. Indira Gandhi Hospital, Bhiwandi Nizampur Municipal Corporation
50. Indira Gandhi memorial cultural Complex, UP Govt.
51. Indira Gandhi Sports Stadium , Rohru District, Shimla
52. Indira Gandhi Panchayati Raj Sansthan , Bhopal
53. Indira Gandhi Nagar, Rajasthan
54. Indira Nagar, Lucknow
55. Roads are named after Jawaharlal Nehru in many cities e.g. in Jaipur, Nagpur, Vile Parle, Ghatkopar, Mulund etc.
56. Nehru Nagar, Ghaziabad
57. Jawaharlal Nehru Gardens, Ambarnath
58. Jawarharlal Nehru Gardens, Panhala
59. Jawaharlal Nehru market, Jammu.
60. Jawaharlal Nehru Tunnel on the Jammu Srinagar Highway
61. Nehru Chowk, Ulhas Nagar, Maharashtra.
62. Nehru Bridge on the river Mandvi, Panaji, Goa
63. Nehru Nagar Ghaziabad
64. Jawaharlal Nehru Road, Dharmatala, Kolkata
65. Nehru Road, Guwahati
66. Jawahar Nagar, Jaipur
67. Nehru Vihar Colony, Kalyanpur, Lucknow
68. Nehru Nagar, Patna
69. Jawaharlal Nehru Street, Pondicherry
70. Nehru Bazaar, Madanapalli, Tirupathi
71. Nehru Chowk, Bilaspur. M.P
72. Nehru Street, Ponmalaipatti, Tiruchirapalli
73. Nehru Nagar, S.M. Road, Ahmedabad
74. Nehru Nagar,. Nashik Pune Road