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Kuch log ese hote hai jo itihash padhte hai,Kuch Ithihash Padhate hai, Kuch ese hote hai Jo NYDC mein aate hai Or Khud Itihash Banate Hai. Jai Hind Jai Bharat!...Khem Chand Rajora....A Great Leader's Courage to fulfill his Vision comes from Passion, not Position...Gajendra Kumar....National Youth Development Committee is a Platform which remove the hesitation and improve the motivation and talent of the Youth...Manu Kaushik..!!

About Manu

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मैं अपने प्यारे भारत को स्वर्ग से भी सुंदर बनाना चाहता हूँ जहाँ देवता भी आने को तरसें..इसे फ़िर से सोने की चिडि़या और विश्वगुरु बनाना चाहता हूँ ना सिर्फ़ धर्म के मामले में बल्कि हरेक क्षेत्र में..अपने देश को मैं फ़िर से इतना शक्तिशाली बना देना चाहता हूँ कि अगर ये जम्हाई भी ले ले तो पूरे विश्व में तूफ़ान आ जाय. मैं अपने भारतवर्ष ,अपने माता-पिता तथा सनातन वैदिक धर्म से अगाध प्रेम और सम्मान करता हूँ |
हमारे बारे में, हम बताएँगे, फिर भी, क्या आप समझ पाएंगे, नहीं न, फिर क्या, हम बताते आप उलझ जाते, आप समझते तो हम मुकर जाते, क्यूंकि अब किसी को किसी के बारे में जानने की, न तो चाहत है और न ही फुर्सत है |
वन्दे मातरम्... जय हिंद... जय भारत...
कोशिश तो कोई करके देखे,यहाँ सपने भी सच होते है ।
ये दुनिया इतनी बुरी नहीं, कुछ लोग अच्छे भी होते है ।।
~ मनु कौशिक

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Tuesday 21 August 2012

बाघ की गुफा में मदन लाला धींगरा

मदन लाला धींगरा
बाघ की गुफा में मदन लाला धींगरा


मदनलाल ढींगरा (18सितम्बर 1883 - 17 अगस्त, 1909) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रान्तिकारी
सेनानी थे। वे इंग्लैण्ड में अध्ययन कर रहे थे जहाँ उन्होने कर्जन वायली नामक एक ब्रिटिश अधिकारी की
गोली मारकर हत्या कर दी। यह घटना बीसवीं शताब्दी में भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन की कुछेक प्रथम
घटनाओं में से एक है।
मदललाल ढींगरा का जन्म सन् 1883 में पंजाब में एक सम्पन्न हिन्दू परिवार में हुआ था। उनकी ठीक-ठीक
जन्मतिथि और जन्मस्थान का पता नहीं है। उनके पिता सिविल सर्जन थे और अंग्रेजी रंग में पूरी तरह रंगे हुए थे
किन्तु माताजी अत्यन्त धार्मिक एवं भारतीय संस्कारों से परिपूर्ण महिला थीं। उनका परिवार अंग्रेजों का
विश्वासपात्र था और जब मदनलाल को भारतीय स्वतंत्रता सम्बन्धी क्रान्ति के आरोप में लाहौर के एक कालेज से
निकाल दिया गया तो परिवार ने मदनलाल से नाता तोड़ लिया। मदनलाल को एक क्लर्क के रूप में,
एक तांगा-चालक के रूप में और एक कारखाने में श्रमिक के रूप में काम करना पड़ा। वहाँ उन्होने एक
यूनियन (संघ) बनाने की कोशिश की किन्तु वहाँ से भी उन्हें निकाल दिया गया। कुछ दिन उन्होने मुम्बई में भी
काम किया। अपनी बड़े भाई की सलाह पर वे सन् 1906 में उच्च शिक्षा के लिये इंग्लैण्ड गये जहाँ युनिवर्सिटी
कालेज लन्दन में यांत्रिक प्रौद्योगिकी (Mechanical Engineering) में प्रवेश लिया। इसके लिये उन्हें उनके बड़े
भाई एवं इंग्लैण्ड के कुछ राष्ट्रवादी कार्यकर्ताओं से आर्थिक मदद मिली।

सावरकर के साथ मदन लाला धींगरा

सावरकर के सानिध्य में
लन्दन में ढींगरा भारत के प्रख्यात राष्ट्रवादी विनायक दामोदर सावरकर एवं श्यामजी कृष्णवर्मा के सम्पर्क
में आये। वे लोग ढ़ींगरा के प्रचण्ड देशभक्ति से बहुत प्रभावित हुए। ऐसा विश्वास किया जाता है कि सावरकर
ने ही मदनलाल को अभिनव भारत मण्डल का सदस्य बनवाया और हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया।
मदनलाल, इण्डिया हाउस के भी सदस्य थे जो भारतीय विद्यार्थियों के राजनैतिक क्रियाकलापों का केन्द्र था।
ये लोग उस समय खुदीराम बोस, कन्नाई दत्त, सतिन्दर पाल और कांशी राम जैसे क्रान्तिकारियों को मृत्युदण्ड
दिये जाने से बहुत क्रोधित थे। कई इतिहासकार मानते हैं कि इन्ही घटनाओं ने सावरकर और ढींगरा को सीधे
बदला लेने के लिये विवश किया।



बाघ की गुफा में मदन लाला धींगरा

लन्दन 10 मई 1909 प्रवासी भारतियों का अपना क्लब इंडिया हॉउस ब्रिटश राज सत्ता का विरोध करके ,
भारत को स्वतंत्र बनाने का सपना देखने वाले अनेक  उत्साही yuvako श्यामजी कृष वर्मा ,विनायक दामोदर
सावरकर ,पांडुरंग महादेव बापट,आदि के संरक्षण में मनाया जा रहा ,10 मई 1857 की स्मृती में पचासवा
वार्षिकोत्सव हॉउस पूरी तरह भारतीय पद्दति से सजा हुआ था प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के अनेक खायात्नमा
वीर बादशाह 'जफ़र' नाना साहेब ,रानी लक्ष्मी बाई, तात्या टोपे ,मोलवी अहमद शाह ,रजा कुंवर सिंह के चित्र
और नाम पत्ता लगे हुए थे धुप दीप और फूलो से उन्हें सदर सज्जित किया गया था सुदूर छेत्रों से भी भारतीय
प्रवासी युवक अनेक श्रेणियों के लोग थे वकील ,डाक्टर,प्रोफ़ेसर ,व्यवसाई ,स्त्री ,पुरुष ,बच्चे ,सभी सब राष्ट्रिय
गौरव की भावना से उत्साहित हो रहें थे |


मदन लाला धींगरा


''वन्देमातरम गीत के बाद क्लब की प्रगति के लिए लोगो ने दिल खोल कर चंदा दिया कई लोगो के भाषण हुए
1857 कीक्रांति का बखान करते हुए उन्होंने भविष्य में भारत के स्वतंत्र होने की कामना व्यक्त की वातावरण
उल्लास और उत्साह से पूर्ण हो उठा |
इस क्लब ने लन्दन वासी भारतीयों को एकता की प्रबल प्रेरणा दी वे प्राय :आपस में मिलते और स्वाधीनता पर
विचार विमर्श करते थे लेकिन प्रवासियों में एक वर्ग ऐसा था ,जो इनस्वाधीनता के उपासको से सहमत नहीं था
वह देश से राजभक्ति को अधिक महत्व देता था --ब्रिटिश समर्थक था

कुछ दिन बाद श्याम जी कृष्ण वर्मा ,लन्दन छोड़कर पेरिस में रहने लगे ,ताकि ब्रिटिश शासन के विरुद्ध भारतीय
युवको की सहायता करते रहें लन्दन में उन पर संदेह किया जा सकता था ,क्यूंकि भारत में उनके कई समर्थको ने
कई कांड कर डाले थे और उनका समाचार पाकर में उनके कई समर्थको ने कई  कांड कर डाले थे और उनका
समाचार पाकर लन्दन वाले भारतीय युवक बहुत गरम हो उठे थे वीरेंद्र कुमार घोष का अलीपुर केस और विनायक
सावरकर के भाई गणेश सावरकर की जोशीली कविताओं पर अंग्रेजो की कोप दृष्टी का समाचार उन्हें उतेजित कर
रहा था विद्रोही कविताओं को भयंकर राज विद्रोह का सूत्रपात बताकर अँगरेज़ न्यायाधीश ने गणेश सावरकर को
आजीवन काले पानी की सजा दी यही नहीं उनकी साडी संपत्ति भी जब्त कर ली गई
रोष बढ़ता जा रहा था अंग्रेजों के विरुद्ध ,भारतीय युवक संघटित होकर कुछ करने को उतावले हो रहें थे विनायक
सावरकर ने तो 20 जून 1909 की एक सभा में घोषित भी कर दिया था की अब सरकार ने दमन और आतंक का
सहारा ले लिया है इसलिए हम भी उसको वेसे ही जवाब देंगे

एक दिन 'इण्डिया हाउस में कई छात्रों के बीच किसी ने यह रहस्य उदघाटित किया --"ब्रिटिश शासन की और से हम
भारतियों की सुख सुविधा का ध्यान रखने के लिए यहाँ नियुक्त कर्जन वायली नमक अधिकारी ,वास्तव में एक
जासूस है वह हमारे बीच घुल मिलकर असल में हमारे भेद लेता है उसका उद्देश्य हमारा हित नहो,बल्कि हमे किसी
षड्यंत्र में फंसना है और यही कारन है की वह अपने व्यवहार में एक सामान्यअँगरेज़ से कहीं अधिक सरल ,
म्रदुभाशी और भोला जान पड़ता है लेकिन सचाई यह है की वह एक भयंकर सांप है और किसी भी समय हम सब
को एक साथ डस सकता है '

छात्रों को रोमांच हो आया ''अच्छा...ऐसे योजना है उसकी ?ऐसा षड्यंत्र रच रहा है वह ? ठीक है देखेंगे उसे भी

कहते हुए एक युवक ने मुट्ठियाँ भींच कर छाती तन इ और होंठ चबाते हुए ,किसी द्रढ़ निश्चय के साथ उठ खड़ा
हुआ परिवार कट्टर ब्रिटिश भक्त था ,
इसयुवक का नाम था मदन लाल धींगरा रूप रेखा से बड़ा सुन्दर शोकिन .लेकिन ह्रदय फौलाद का कट्टर देश भक्त ?
उसका परिवा  पर वह आज़ादी का दीवाना था उसे अंग्रेजो की दासता में वैभव पसंद नहीं था मात्रभूमि की सेवा में
काँटों पर चलने का उत्साही था
उसने हवा में मुक्का तानते हुए साथियों से कहा
"निश्चित रहो हमे डसने से पहले ही वायली को कुचल दिया जायेगे "
दस दिन बाद सन 1909 की जुलाई की पहली तारीख थी इंडिया हाउस के बड़े सभागार ''जहाँगीर हॉल "में
भारतीय विद्यार्थियों की सभा हो रही थी मदन लाल धींगरा भी उसमे
समिलित थे सभा समाप्ति के बाद ,जब सर कर्ज़न वायली अभ्यागतो से मिल जुल रहें थे ,मदन लाला ने
उनकी और देखा सर वायली ने समझा ,यह युवक मुझे से मिलने को आतुर हो रहा है वे मदन लाल की
और मुस्कुराते हुए बढे किन्तु उस छदम मुस्कान को देखकर ,उसकी भयंकरता का अनुभव करके ,मदन
के बदन में आग लग गई तैयार वह पहले से ही थे ,वायली को सामने पाकर उन्होंने जेब से रिवोल्वर
निकला और निशाना साधकर गोली चला दी वायली महोदय ब्रिटिश भक्त और भारत द्रोह का पुरुस्कार सहे
जाते हुए, छण भर में ही सदा के लिए सो गए
अचानक इस तरह रंग में भंग हुआ देखकर सभा में खलबली मच गई वायली को गिरते देखकर
श्रीलाल काका नाम का एक ब्रिटिश भक्त भारतीय मदन लाल की और दौड़ा मदन लाल ने उस देश द्रोही के
सिने में भी एक गोली उतार दी

अब तक कितने ही अँगरेज़ अधिकारीयों और पुलिस के जवानों ने उन्हें घेर लिया था
मदन लाल का उद्देश्य पूरा हो चूका था उन्होंने रिवोल्वर फेंक दिया और सहज भाव से ,अविचित स्वर में
पुलिस वालो से कहा तहरो कोई जल्दी नहीं है में चस्मा पहन लूँ ,फिर मेरे हाथ बाँधो '
उनकी निर्भीकता ,उनकी साहसी मनोवृति और धीरज देखकर अंग्रेजो का दल स्तंभित रह गे
तलाशी में मदन लाल के पास एक पर्चा मिला ,जिसमे लिखा था की मेने जान बुझकर अंग्रेज़की हत्या की है
भारतियों को जिस प्रकार अन्याय पूर्वक फंसी और काले पानी का दंड दिया जा रहा है उसके प्रति विरोध
प्रदर्शन का यह भी एक ढंग है |

वायली हत्याकांड ने इंग्लेंड ही नहीं ,पुरे ब्रिटिश साम्राज्य में हल चल मचा दी
विश्व के अख़बारों ने इस घटना को प्रकाशित किया
मदनलाल पर लन्दन की अदालत में मुकदमा चलाया गया मुक़दमे के दौरान मदन लाल ने अपने बयां में
कहा था "अगर जर्मनी को इंग्लॅण्ड पर शाशन करने का अधिकार नहीं है ,तो इंग्लेंड को भी भारत पर राज्य
करने का अधिकार नहीं है




मदन लाला धींगरा की स्मृति में

मेरे देश का अपमान मेरे इश्वर का अपमान है मुझे जैसे धन और बुध्धि से हीन व्यक्ति अपनी मात्रभूमि को सिवा
रक्त के और क्या दे सकते है मेरी इश्वर से प्राथना है की जब तक मेरी मात्रभूमि को स्वतंत्रता न मिल जाये ,में
उसकी गोद में बार बार जन्म लेकर उसी की सेवा में मरता रहूँ में तुम्हारे (अंग्रेजी न्यायाधीश के )अधिकार को
नहीं मानता यूँ में तुम्हारे हाथ में हूँ ,जो चाहो ,कर सकते हो पर याद रखो एक दिन भारत सबल होगा ,और तब
हम वह सब कुछ कर सकेंगे जो आज करना चाहते है
न्यायाधीश ने उन्हें मृत्यु दण्ड दिया |
सजा सुनकर मदन लाल ने कहा मुझे गर्व और संतोष है की मेरा तुछ जीवन मात्रभूमि की सेवा में अर्पित हो रहा है
16 अगस्त 1909 को मदन लाल .लन्दन में फंसी के फंदे पर झूलकर विश्व के स्वाधीनता उपासको को श्रेणी में एक
प्रमुख स्थान के अधिकारी हो गए
मदन लाल की जेब से बरामद पर्चे को अदालत में पढने नही दिया गया था बाद में उसे अखबार में प्रकाशित कराया गया
मदन लाल के इस प्रयास और पर्चे के मजमून की ,अंग्रेजी अख़बारों ने बड़ी निंदा की थी ,उनकी द्रष्टि में मदन लाल के
स्वाधीनता की लड़ाई को बगावत के रूप में दिखाया गया था किन्तु आयरलैंड के अखबारों ने छापा  था
आयरलैंड उस भारतीय युवक मदनलाल धींगरा के प्रति सम्मान व्यक्त करता है क्यूँ की उन्होंने अपने देश के लिए सर्वस्व
त्याग दिया ,उन्होंने अपने प्राण भी इसी उद्देश्य में विसर्जित कर दिए
माँ भारती के ऐसे वीरों को शत शत नमन ..........जा माँ भारती 
ब्रिक्स्टन जेल जहां मदनलाल ढींगरा तथा ,वीर सावरकर जी को रखा गया था.ब्रिक्स्टन जेल का अनधुरूनी हिस्सा ...!
ब्रिक्स्टन जेल जहां मदनलाल ढींगरा तथा ,वीर सावरकर जी को रखा गया था. 

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