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Kuch log ese hote hai jo itihash padhte hai,Kuch Ithihash Padhate hai, Kuch ese hote hai Jo NYDC mein aate hai Or Khud Itihash Banate Hai. Jai Hind Jai Bharat!...Khem Chand Rajora....A Great Leader's Courage to fulfill his Vision comes from Passion, not Position...Gajendra Kumar....National Youth Development Committee is a Platform which remove the hesitation and improve the motivation and talent of the Youth...Manu Kaushik..!!

About Manu

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मैं अपने प्यारे भारत को स्वर्ग से भी सुंदर बनाना चाहता हूँ जहाँ देवता भी आने को तरसें..इसे फ़िर से सोने की चिडि़या और विश्वगुरु बनाना चाहता हूँ ना सिर्फ़ धर्म के मामले में बल्कि हरेक क्षेत्र में..अपने देश को मैं फ़िर से इतना शक्तिशाली बना देना चाहता हूँ कि अगर ये जम्हाई भी ले ले तो पूरे विश्व में तूफ़ान आ जाय. मैं अपने भारतवर्ष ,अपने माता-पिता तथा सनातन वैदिक धर्म से अगाध प्रेम और सम्मान करता हूँ |
हमारे बारे में, हम बताएँगे, फिर भी, क्या आप समझ पाएंगे, नहीं न, फिर क्या, हम बताते आप उलझ जाते, आप समझते तो हम मुकर जाते, क्यूंकि अब किसी को किसी के बारे में जानने की, न तो चाहत है और न ही फुर्सत है |
वन्दे मातरम्... जय हिंद... जय भारत...
कोशिश तो कोई करके देखे,यहाँ सपने भी सच होते है ।
ये दुनिया इतनी बुरी नहीं, कुछ लोग अच्छे भी होते है ।।
~ मनु कौशिक

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Tuesday, 21 August 2012

" काले धन के भ्रामक आंकड़े "

विदेशी बैंकों में जमा भारत के काले धन पर पिछले दो दशकों से बहस हो रही है। वर्ष 1996 में स्विस बैंक के एक निदेशक ने भारत दौरे के दौरान यह जानकारी देकर सनसनी फैला दी थी कि भारतीयों के स्विट्जरलैंड के बैंक खातों में 2550 अरब डालर अर्थात 120 लाख करोड़ रुपये जमा हैं। 2008-09 में एक और निदेशक ने यही मुद्दा उठाया कि प्राइवेट स्विस बैंकों में भारतीयों की जमा राशि 1456 अरब डालर अर्थात 70 लाख करोड़ रुपये है। इन दोनों राशियों में कोई विरोधाभास नहीं, क्योंकि 2008-09 के आंकड़े केवल प्राइवेट बैंकों के हैं। कारपोरेट बैंक इनमें शामिल नहीं हैं। उस समय एलजीटी का मामला गरमा रहा था और चुनाव भी सिर पर थे। राजनीतिक दलों ने इस मुद्दे को तूल दिया तो जनता भी जागी कि यह भारी-भरकम राशि भारत में वापस आनी चाहिए।

इस बीच मंदी आने पर उन्नत देशों का ध्यान भी इस ओर आकर्षित हुआ और विभिन्न संस्थान इस बारे में गंभीर हुए। उन्होंने अपना धन वापस लाने के लिए प्रयत्न किए और टैक्स हैवेंस (कर चोरी के सुरक्षित ठिकाने) में पड़े धन के बारे में अनुमान लगाया। इन अनुमानों से यह निष्कर्ष भी निकाला कि दुनिया में जितना पैसा टैक्स हैवेंस में है उसका 50 प्रतिशत विकासशील देशों का है और इसमें से आधे से अधिक भारतीयों का है। यानी कुल जमा राशि में भारतीयों का लगभग हिस्सा 40 प्रतिशत है। ग्लोबल फाइनेंशियल इंटेग्रिटी (जीएफआइ), टैक्स जस्टिस नेटवर्थ (टीजेएन), अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष आदि अनेक संस्थान इस समस्या पर नजर रखे हैं, विस्तृत विश्लेषण कर रहे हैं और धन की वापसी के लिए जूझ रहे हैं।

इस बीच जीएफआइ ने यह कह कर सबको चौंका दिया कि भारत का विदेशी खातों में कुल पैसा 462 अरब डॉलर यानी 20 लाख करोड़ है। उन्होंने यह भी बताया कि वर्ष 1948-2008 के बीच भारत से बाहर केवल 213 अरब डॉलर गया था। बाकी इस पर ब्याज आदि की कमाई है, जबकि जीएफआई के अपने ही पुराने अनुमान कहीं ऊंचे हैं।

यह बदलाव क्यों?
जब यह जानने के लिए मैंने इस रिपोर्ट का गहन अध्ययन किया तो स्थिति स्पष्ट हुई कि यह रिपोर्ट अंतरराष्ट्रीय व्यापार के केवल एक पहलू पर आधारित है, जो केवल माल (वस्तुओं) का ही हिसाब लगाता है। यहां तक कि सेवाओं को भी इसमें शामिल नहीं किया जाता। यही नहीं, आगे इस अनुमान का दायरा और सिकुड़ जाता है जब यह रिपोर्ट कहती है कि यह अनुमान केवल माल के बिल की मिसप्राइसिंग पर आधारित है। रिपोर्ट में जीएफआई स्वयं यह मानती है कि इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि यह भारी-भरकम राशि भी कम करके दिखाई गई है। यह बात ठीक भी है, क्यांेंकि 1948-2008 तक के निर्यात व आयात के कुल आंकड़े 1422 अरब व 1834 अरब डॉलर के हैं। एक शोध के अनुसार भारत निर्यात पर कम से कम 40 प्रतिशत और आयात पर 20 प्रतिशत गंवाता है। इस तरह भारत को इस समय में कम से कम 932 अरब डॉलर का नुकसान हुआ है, जबकि जीएफआई केवल 213 अरब डॉलर बता रही है, वह भी बिना किसी तर्क के। रिपोर्ट स्वयं बताती है कि जीएफआई ने काला धन पैदा होने के कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रों का संज्ञान ही नहीं लिया। इनमें प्रमुख हैं-नशीले दवाओं की तस्करी, फर्जी बिलिंग से आयात-निर्यात, हवाला, यौन व्यापार, घोटाले, नकली मुद्रा, अंतरराष्ट्रीय संगठित अपराध, मानव तस्करी, भ्रष्टाचार और अन्य आपराधिक गतिविधियों से उत्पन्न धन। अनेक अध्ययनों के अनुसार फर्जी बिलों के माध्यम अगर अधिक नहीं, तो वास्तविक बिलों जितना घोटाला जरूर होता है। भारत में काले धन के बारे में यही सबसे बड़ा मुद्दा है। जीएफआइ ने स्वयं अपनी एक और रिपोर्ट में कहा है कि विकासशील देशों का, जिसमें भारत का विशेष जिक्र है, भ्रष्टाचार का पैसा केवल पांच प्रतिशत है। विभिन्न अपराधों से संचित राशि 30-35 प्रतिशत है व टैक्स चोरी से संचित काला धन 60-65 प्रतिशत है, परंतु फिर भी वर्तमान रिपोर्ट इस मुख्य मुद्दे की बात ही नहीं करती। यदि काले धन के इतने श्चोतों का संज्ञान नहीं लिया जाएगा तो इसकी सही राशि का आकलन नहीं किया जा सकता। वैसे भी यह रिपोर्ट दिग्भ्रमित करने वाली है। रिपोर्ट कहती है कि 2008-09 में भारत की सकल आय 1250 अरब डॉलर थी और काले धन की उत्पत्ति उसकी आधी यानी 640 अरब डॉलर थी। रिपोर्ट के अनुसार इस काले धन में से 462 अरब डॉलर तो विदेशों में है व 178 अरब डॉलर भारत में, जबकि सकल उत्पाद का आंकड़ा हर साल का है। काले धन की 640 अरब डालर की उत्पत्ति भी वर्ष विशेष के लिए है, फिर 60 साल में संचित काले धन का इससे कैसे मुकाबला किया जा सकता है। जब इतनी भारी मदें छोड़ दी गई हैं तो इस अनुमान का कोई मतलब ही नहीं रह जाता। न जाने यह रिपोर्ट किस मतलब से लिखी गई है, परंतु यह स्पष्ट है कि जैसे-तैसे यह रिपोर्ट सिद्ध करना चाहती है कि विदेशों में भारत का धन 60 वर्षो में केवल 213 अरब डॉलर गया जो कि प्रतिवर्ष औसत 3.5 अरब डॉलर है और यह बहुत छोटी राशि है व भारत की जनता नाहक ही इतना शोर मचा रही है।
ये अति भ्रामक आंकड़े हैं, जो विश्लेषण की कसौटी पर खरे नहीं उतरते। इसके विरुद्ध आइएमएफ के अनुसार इस समय सभी 77 टैक्स हैवेंस में कुल जमा राशि 18,000 अरब डॉलर है। 40 प्रतिशत के हिसाब से भारत का हिस्सा 7,200 अरब डॉलर यानी 350 लाख करोड़ रुपये बनता है। भारत के विदेशों में जमा काले धन को कमतर आंकने का जीएफआई का मकसद स्पष्ट नहीं है, परंतु हमें इस भ्रामक जाल में नहीं फंसना चाहिए। हमें इस इस विपुल राशि को वापस लाने व अब और धन बाहर जाने से रोकने में पूर्ण प्रयास जारी करने चाहिए।

(लेखक सीबीआइ के पूर्व संयुक्त निदेशक हैं)

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है।
ऐ वतन, करता नहीं क्यूँ दूसरी कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है
ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत, मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चरचा ग़ैर की महफ़िल में है
वक़्त आने पर बता देंगे तुझे, ए आसमान,
हम अभी से क्या बताएँ क्या हमारे दिल में है,
खेँच कर लाई है सब को क़त्ल होने की उमीद,
आशिकों का आज जमघट कूचा-ए-क़ातिल में है
है लिए हथियार दुश्मन ताक में बैठा उधर,
और हम तैयार हैं सीना लिए अपना इधर।
ख़ून से खेलेंगे होली अगर वतन मुश्क़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
हाथ, जिनमें है जूनून, कटते नही तलवार से,
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से।
और भड़केगा जो शोला सा हमारे दिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
हम तो निकले ही थे घर से बाँधकर सर पर कफ़न,
जाँ हथेली पर लिए लो बढ चले हैं ये कदम।
ज़िंदगी तो अपनी मॆहमाँ मौत की महफ़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
यूँ खड़ा मक़्तल में क़ातिल कह रहा है बार-बार,
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है?
दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब,
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको न आज।
दूर रह पाए जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
जिस्म वो क्या जिस्म है जिसमे न हो ख़ून-ए-जुनून
क्या लड़े तूफ़ान से जो कश्ती-ए-साहिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है।

इस देश के टुकड़े किसने किये ?


सन सैंतालिस में किसने धोखा दिया ?
जबकि देश ने इन पर भरोसा किया ॥

बेरोजगारी,महँगाई से जनता है त्रस्त ।
अन्न सड़ रहा गोदामों में नेता हो गए भ्रष्ट ॥

ये कैसी आजादी – कैसा कानून ?
क्या इसके लिए दिया था देशभक्तों ने खून ?

एक होंगे --- एक रहेंगे ।
न लुटेंगे न लूटने देंगे ॥

जब-जब जनता जागी है ,
भ्रष्टों-दुष्टों की जमात भागी है॥

इन दुष्टों को समझ में नहीं आता है ।
ये देश मात्र जमीन नहीं हमारी माता है ॥

इस देश के टुकड़े किसने किये ?
चाचा जी जब जिद्द पर अड़े ॥

कौन देश भक्त कौन गद्दार।
जान गयी जनता हो गयी समझदार॥

अपने देश में हैं-अपने बैंक,
क्यों बुलाये विदेशी बैंक ?

देशभक्त जनता का समर्थन ।
अब हो सम्पूर्ण व्यवस्था परिवर्तन॥

जो अब भी चेता नहीं ।
वो भारत माँ का बेटा नहीं ॥

जो नहीं देश और भगवान का ।
वो नेता नहीं हमारे काम का ॥

देश भक्तों का अभियान ।
भारत स्वाभिमान ॥

ऋषियों के वंशज समझ रहे हैं ।
असुरों के वंशज भड़क रहे हैं ॥

भ्रष्टाचार को संस्कार मत बनाओ।
पिछलग्गुओ होश में आओ होश में आओ॥

जागो सोने वालों जागो, अपनी जिम्मेदारियों से मत भागो ॥

गाँधी जी की नहीं सुनी 47 में कौन था वो बेईमान ?
बताओ खानदानी नेताओ पूछ रहा है हिंदुस्तान ॥

सन ४७ में किसने निभाई अपनी यारी ?
बापू को दिया धोखा देश से की गद्दारी॥

देशी शिक्षा देशी कानून ।
नहीं सहेंगे अब विदेशी जूनून ॥

कैसा होगा अपना देश ?
दुष्टों को फांसी होगी, भेड़िया नहीं बदलेगा भेष ॥

दुष्टो तुमको शर्म न आई ।
देशभक्तों पर तोहमत लगायी ॥

याद करो ध्रुव और प्रह्लाद को ।
सत्य के लिए छोड़ दिया था बाप को ॥

स्वामीजी तो भारत माँ के लाल हैं।
भ्रष्टों-दुष्टों हेतु बनकर आये काल हैं ॥

ये राजनीति नहीं अन्याय है।
भ्रष्टों गुंडों का व्यवसाय है॥

भ्रष्टो कुछ तो शर्म करो। शर्म करो शर्म करो ।
शर्म नहीं तो डूब मरो॥ डूब मरो डूब मरो

*साभार Shri Shankar Dutt Fulara
आभारी अनिल गायकवाड

"उभरती शक्ति का कड़वा सच"


संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की मानव विकास से जुड़ी 21वीं रिपोर्ट हाल ही में प्रकाशित हुई है।
इस रिपोर्ट में 187 देशों की सूची में भारत को 134वां स्थान मिला है। रिपोर्ट का इस वर्ष का विषय वैश्विक स्तर पर दीर्घकालीन विकास और न्यायसंगत प्रगति है। गौरतलब है कि विगत वर्ष की 20वीं रिपोर्ट में सामाजिक विषमता, लिंग असमानता और बहुआयामी गरीबी के प्रभावों का आकलन किया गया था। इस वर्ष रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र मानव विकास सूचकांक (यूएनएचडीआइ) के अंतर्गत स्वास्थ्य, शिक्षा एवं ज्ञान, लैंगिक विषमता, आय और जीवन स्तर के संकेतकों के साथ पर्यावरणीय खतरों तथा उनसे निपटने के लिए किए जाने वाले उपायों के माध्यम से दीर्घकालिक प्रगति का आकलन किया गया है।
इस रिपोर्ट की खास बात यह है कि संयुक्त राष्ट्र के इस मानव विकास के सूचकांकों में भारत 133 देशों से भी पीछे है। आश्चर्य की बात यह है कि इस सूचकांक में श्रीलंका और युद्ध की विभीषिका से गुजरने वाला इराक भी हमसे बेहतर स्थिति में है। मानव विकास लोगों की आजादी तथा उनकी क्षमताओं का विस्तार है। मानवीय विकास का अर्थ यह भी है कि कैसे मानव अपने जीवन को समाजोपयोगी व मूल्य प्रधान बनाकर अपनी क्षमताओं का भरपूर प्रयोग करते हुए स्वयं के व राष्ट्र के लिए उपयोगी बन सकता है।
रिपोर्ट में इस बहस को भी आगे बढ़ाया गया है कि कैसे पर्यावरण की विकृति सामाजिक विषमता को बढ़ाते हुए वंचित समूहों पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही है? साथ ही कैसे मानवीय विकास के क्षेत्र में बढ़ती असमानताएं पर्यावरण विकृति को विस्तार दे रही हैं? रिपोर्ट में इस बहस को भी बल मिला है कि क्या मानव निर्मित पूंजी प्राकृतिक संसाधनों का स्थानापन्न बन सकती है? क्या मानव का उचित विकास प्राकृतिक संसाधनों के रखरखाव में सहायक हो सकता है? कुल मिलाकर मानव विकास का प्रमुख उद्देश्य वैश्विक स्तर पर एक ऐसे वातावरण का निर्माण करना है जहां लोग स्वस्थ और शिक्षित होकर न्यायपूर्ण जीवन जीते हुए जीवन की रचनात्मकता को भी बनाए रख सकें।

यूएन की मानव विकास से जुड़ी इस रिपोर्ट को केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने खारिज कर झेंप मिटाने की कोशिश की है। क्या हम इंकार कर सकते हैं कि मानवीय विकास के सामाजिक पहलू मसलन साक्षरता, शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, पोषण और खाद्य सुरक्षा के लिहाज से हम दुनिया से पीछे चल रहे हैं। साथ ही हम निरंतर अपनी उस आबादी की भी उपेक्षा कर रहे हैं जो बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। देश में जो भी कल्याणकारी योजनाएं संचालित हैं उनमें व्याप्त भ्रष्टाचार इन योजनाओं के लाभ को अभावग्रस्त तबकों तक नहीं पहुंचने दे रहा।

यह कैसा विरोधाभास है कि एक ओर वैश्विक स्तर पर भारत को महाशक्ति बनाने की घोषणा की जा रही है तथा दूसरी ओर कुपोषण व भुखमरी के स्तर पर देश को नीचा देखना पड़ रहा है। देश में छह हजार टन से भी अधिक अनाज सड़कों व गोदामों में सड़ जाता है। इसी का परिणाम था कि पिछले साल उच्चतम न्यायालय तक को साफ कहना पड़ा कि जिस देश में करोड़ों लोग भूख से बेहाल हैं, वहां अन्न के एक दाने की बर्बादी भी अपराध की श्रेणी में आती है। देश में जन वितरण प्रणाली की स्थिति यह है कि केवल 57 फीसदी बीपीएल परिवारों को ही इसका लाभ मिल पा रहा है। आंकड़े बताते हैं कि भारत में 25 लाख शिशुओं की अकाल मृत्यु होती है तथा 42 फीसदी बच्चे गंभीर कुपोषण के शिकार हैं। इस संबंध में भारत की स्थिति दक्षिण एशिया और अफ्रीका के गरीब देशों से भी बदतर है। कड़वा सच यह है कि दुनिया के सर्वाधिक गरीब अपने देश में ही हैं। लैंगिक असमानता के सूचकांक के अंतर्गत रिपोर्ट में भारत को 129वां स्थान मिला है। इसलिए दक्षिण एशिया में भारत केवल अफगानिस्तान से ही आंशिक रूप से बेहतर स्थिति में है।

दक्षिण एशिया की महिलाएं संसदीय प्रतिनिधित्व एवं श्रमिक बल की भागीदारी में पुरुषों की तुलना में काफी पिछड़ी हुई हैं। इस रिपोर्ट में स्पष्ट चेतावनी दी गई है कि यदि हमने मानव विकास के हित में ग्लोबल पर्यावरण संतुलन बनाने का प्रयास नहीं किया तो हमें विनाशकारी परिणाम भुगतने होंगे। इस मानव विकास रिपोर्ट में भारत को मध्यम और मिश्रित अर्थव्यवस्था वाले देशों में रखा गया है, परंतु सच्चाई यह है कि यहां लागू नवीन उदारवादी अर्थव्यवस्था ने अमीरों का भला अधिक किया है। इन बाजारवादी और आर्थिक उदारवादी नीतियों का प्रभाव यह हुआ है कि देश में एक छोटे वर्ग के पास अपार धन संपदा एकत्रित होती रही, जबकि एक बड़ा वर्ग न्यूनतम रोजी-रोटी के लिए जूझता रहा। देश में भूखे, कुपोषित और बीमार बच्चों तथा बेरोजगार युवाओं की फौज तैयार हो रही है। हमारे अति उपभोग से पर्यावरण निरंतर विकृत हो रहा है। संपूर्ण विश्व में आर्थिक विकास के क्षेत्र में हमारी साख और धाक लगातार बढ़ रही है, परंतु मानव विकास के मुद्दों पर हम लगातार पिछड़ रहे हैं। सहश्चाब्दि विकास लक्ष्य-2015 से भी हम अभी दूर ही हैं। आर्थिक उदारीकरण से जुड़ी नीतियों का लाभ देश के प्रत्येक वर्ग को मिले, इसके लिए हमें मानवीय विकास के सामाजिक-आर्थिक मुद्दों को राष्ट्र की आवश्यकताओं के साथ जोड़ना होगा। ध्यान रहे मानवीय विकास के अनेक आयाम राष्ट्रीय विकास के उत्प्रेरक भी हैं। इसलिए हमें मानवीय विकास के लिए ऐसे वातावरण का निर्माण करना होगा जहां लोग भीड़ के रूप में नहीं सामाजिक-सांस्कृतिक संपदा के रूप में विकसित हों। तभी हम मानवीय विकास के वैश्विक मानकों पर खरे उतरेंगे।

डॉ. विशेष गुप्ता
(लेखक समाजशास्त्र के प्राध्यापक हैं)

Monday, 20 August 2012

देश की खातिर लड़ना होगा


जो भूल की है तुमने हमने, उसका जुर्माना तो भरना होगा !
नकाब पहने हुए नेताओं को, बेनकाब तो अब करना होगा !
उठकर खड़े हो देश की खातिर, अब देश तुमको पुकार रहा !
जागकर देश की खातिर तुमको, देश की खातिर लड़ना होगा !१!


म्रत्यु की परवाह ना करके, जीवन भी दाव पर लगा दो तुम !
देश में ही छुपे बैठे गद्दारों को, अब ठिकाने भी लगा दो तुम !
नेताओं के झूठे वादों को भी, अब सबको पहचानना होगा !
जागकर देश की खातिर तुमको, देश की खातिर लड़ना होगा !२!


पहचानो देश मे ही छुपे बैठे, देश के ही गद्दारों को !
खुद भी सचेत हो जाओ तुम, और सचेत करो अपने यारों को !
देश के दुश्मन जो सत्ता में, उनको भी सत्ता से उतरना होगा !
जागकर देश की खातिर तुमको, देश की खातिर लड़ना होगा !३!


सत्ता के मद में होकर लोभी, इठलाते और इतराते जो हैं !
नौकर होकर भी जनता के, खुद को मलिक बताते जो हैं !
अब बाहर करके ही सत्ता से, उनको भी सबक सिखाना होगा !
जागकर देश की खातिर तुमको, देश की खातिर लड़ना होगा !४!


साथ ना देना देश के गद्दारों का, वरना तुम भी गद्दार कहलाओगे !
गद्दारों की मीठी ज़ुबान मे फँस कर, एक दिन खुद ही पछताओगे !
देश की उज्ज्वल्ता की खातिर, गद्दार नेताओं को पहचानना होगा !
जागकर देश की खातिर तुमको, देश की खातिर लड़ना होगा !५!


भोली सी सूरत गद्दारों की, ये बात भी मीठी मीठी करते हैं !
देश की जनता के पैसे को, अपनी जेब में ही तो भरते हैं !
व्यवस्था परिवर्तन की खातिर, सत्ता परिवर्तन तो करना होगा !
जागकर देश की खातिर तुमको, देश की खातिर लड़ना होगा !६!


सत्ता में बैठे हुए जो नेता, देश हित की कभी बात ना करते !
जनता के नौकर होकर भी, जनता के हित की बात ना करते !
ऐसे गद्दार नेताओं को भी तो, सत्ता से अब उखाड़ना होगा !
जागकर देश की खातिर तुमको, देश की खातिर लड़ना होगा !७!


देश मे जो भ्रस्ट नेता हैं, वो तो देश के गद्दार के जैसे !
इस बार भी देश को लूट रहे, पिछले हर बार के जैसे !
अगर ये राज़ी से ना मानें तो, उनको चुनाव मे हराना होगा !
जागकर देश की खातिर तुमको, देश की खातिर लड़ना होगा !८!


निज स्वार्थ की ही खातिर जो, भोली जनता पर डंडे बरसवाते हैं !
जो रास्ट्र का अन्न खाकर भी, राष्ट्र गीत गाने में ही कतराते हैं !
ऐसे गद्दारों के समूल नाश का, एक अपराध तो करना होगा !
जागकर देश की खातिर तुमको, देश की खातिर लड़ना होगा !९!


स्वार्थ की खातिर तो ये नेता, अपने ईमान को भी बेच देंगें !
नही जागे हम अब भी तो, ये गद्दार देश को भी बेच देंगे !
देश के उपर मरने वाले लोगों को, अपना नेता अब बनाना होगा !
जागकर देश की खातिर तुमको, देश की खातिर लड़ना होगा !१०!


अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर, देश की जनता को भ्रमित करते !
देश के लिए लड़ने वालों को भी, डराने में भी ये नही डरते !
जनता का अहित करने वाले, सब नेताओं को अब जाना होगा !
जागकर देश की खातिर तुमको, देश की खातिर लड़ना होगा !११!


जनता की महनत की कमाई, लूटते और अवैध खनन जो करते !
खुद जो मज़े में रहते नेता, हमारी स्वतंत्रता का हनन वो करते !
स्वतंत्र होकर भी हम स्वतंत्र नही, अब पूर्ण स्वतंत्रता को पाना होगा !
जागकर देश की खातिर तुमको, देश की खातिर लड़ना होगा !१२!


देश की जनता के प्रतिनिधि होकर, गुलामी करते जो औरों की !
स्वार्थ की खातिर वो अपने, जनता से अन्याय करते जोरों की !
गद्दारों के पंजों मे फँसे हुए, अपने देश को अब बचाना होगा !
जागकर देश की खातिर तुमको, देश की खातिर लड़ना होगा !१३!


देश में अंधकार ना हो कोई, देश में अन्याय ना हो कोई !
जगा दो अब उस जनता को भी, देश की जनता है जो सोई !
घमंड मे बैठीं सरकारों को, तख्ता पलट कर उतरना होगा !
जागकर देश की खातिर तुमको, देश की खातिर लड़ना होगा !१४!


जो समझ बैठीं हैं अपनी बापौती, इस देश की ही सत्ता को !
जो लगा रहीं हैं दाव पर भी, अपनी ही धरती माता को !
ऐसी सरकारों को तो अब, जड़ से उखाडकर फेंकना होगा !
जागकर देश की खातिर तुमको, देश की खातिर लड़ना होगा !१५!


जनता के प्रतिनिधि होकर भी, गुलामी आलाकमान की करते हैं !
आलाकमान तो उनकी जनता, जिसको तो याद ही ना करते हैं !
ऐसे गद्दारों को अब तो बस, हर चुनाव में ही हराना होगा !
जागकर देश की खातिर तुमको, देश की खातिर लड़ना होगा !१६!


निजता को छोड़कर पीछे ही, आगे बढ़े जो बस देश की खातिर !
हर कोई समझे ईमान देश को, कोई ना हो उनमें शातिर !
जो शीश कटा दें देश की खातिर, ऐसे लोगों को चुनना होगा !
जागकर देश की खातिर तुमको, देश की खातिर लड़ना होगा !१७!


देश की जनता ना छली जाए, बने ऐसा एक साफ सा रास्ता !
देश के हितों की खातिर ही, बने ऐसी एक बहतर सी व्यवस्था !
व्यवस्था परिवर्तन की खातिर तो, एक आंदोलन अब करना होगा !
जागकर देश की खातिर तुमको, देश की खातिर लड़ना होगा !१८!


हटना मत तुम कभी पीछे को, गद्दारों से कभी मत डरना कोई !
जीवन भी दाव पर लगा करके, देश के लिए लड़ना हमेशा हर कोई !
खुद का सर कटा कर भी, अपने देश को बचाना होगा !
जागकर देश की खातिर तुमको, देश की खातिर लड़ना होगा !१९!


देश की जनता का गौरव तो, अपने देश का ही गौरव है !
देश का गौरव हो जब उँचा, अपना गौरव ही तो जब है !
अपना निज गौरव छोड़कर भी, देश का गौरव बढ़ाना होगा !
जागकर देश की खातिर तुमको, देश की खातिर लड़ना होगा !२०!

देश करे उन्नति हमारा, यही उद्देश्य भी हमारा हो !!


जीवन के रस कमंडल में, देश प्रेम की रासधारा हो !
वो मुझको भी प्यारा होता, जिसको मेरा देश प्यारा हो !
ना हो चाहे धन वैभव, ना हो चाहे कभी यश गान मेरा !
देश करे उन्नति हमारा, यही उद्देश्य भी हमारा हो !!

देश की शान भी तो, जनता की भी शान होती !
देश रहे सुरक्षित जब, तब जनता भी रक्षित होती !
अपने देश को आगे बढ़ाएँगे, ये भी संकल्प हमारा हो !
देश करे उन्नति हमारा, यही उद्देश्य भी हमारा हो !!

निजता के वैभव की खातिर, देश से ना गद्दारी करना !
देश के दुश्मन से मिलकर, कभी भी कोई ना यारी करना !
देश रहे सुरक्षित हमारा बस, यही भाव भी हमारा हो !
देश करे उन्नति हमारा, यही उद्देश्य भी हमारा हो !!

धर्म के नामपर कभी कोई, अपने देश को मत बाँटो !
जो बाँटने की बात करे, उसको पकड़कर सब डांटो !
अपने निज धर्म से पहले, रास्ट्र धर्म बस हमारा हो !
देश करे उन्नति हमारा, यही उद्देश्य भी हमारा हो !!

जिसमें ना हो हित देश का, उस काम पर मत जाओ !
संपन्न बनाओ अपने देश को, विदेशों के सामने मत गिडगिडाओ !
देश के सम्मान को उँचा करना, पहला काम हमारा हो !
देश करे उन्नति हमारा, यही उद्देश्य भी हमारा हो !!

धर्म जाति के नाम पर देश, बॅट रहा, मत उसको बंटने दो तुम !
देश के हितो की खातिर तो, एक सब हो जाओ तुम !
देश बाँटने वाला व्यक्ति तो, केवल दुश्मन भी हमारा हो !
देश करे उन्नति हमारा, यही उद्देश्य भी हमारा हो !!

जन जन में जागरण कर दो, देश की एकता का सब !
गद्दारों के भी पैर उखड़ेंगे, एक हो जाएँगे हम सब जब !
हम धर्म नही भारतवाशी हैं, बस यही नारा हमारा हो !
देश करे उन्नति हमारा, यही उद्देश्य भी हमारा हो !!

एक होकर तो देखो तुम, एकता का क्या रस होता !
एक हो जाते हैं जब सब तो, गद्दारों का क्या वश होता !
एकता भी हम सब में हो, और राष्ट्र धर्म हमारा हो !
देश करे उन्नति हमारा, यही उद्देश्य भी हमारा हो !!

मेरा देश शसक्त हो ऐसा, जो किसी से ना डरता हो !
जनता के हित की खातिर, जनता के मन का मंथन करता हो !
देश की जनता पर वैभव हो, और उन्नत देश हमारा हो !
देश करे उन्नति हमारा, यही उद्देश्य भी हमारा हो !!

वो तो देश का ही दुश्मन, जो तिरंगा फहराने से रोकता हो !
जो देश में तिरंगा फहराने बालों को, कभी भी टोकता हो !
ऐसे गद्दार के तो शीने पर भी, तिरंगा फहरा हमारा हो !
देश करे उन्नति हमारा, यही उद्देश्य भी हमारा हो !!

देश के सम्मान मे ही, हर जगह तिरंगा लहरा दो तुम !
तिरंगा रोकने वालो की ही, छाती पर तिरंगा लहरा दो तुम !
अपने देश का सम्मान ही, केवल सम्मान हमारा हो !
देश करे उन्नति हमारा, यही उद्देश्य भी हमारा हो !!

अपनी निज छमताओं को भी, देश हित मेंलागा दो तुम !
देश के सम्मान को भी, अपने जीवन से सज़ा दो तुम !
दुनिया के देशों की शूची में, पहला स्थान हमारा हो !
देश करे उन्नति हमारा, यही उद्देश्य भी हमारा हो !!

~~~~ जय हिन्द, जय भारत~~~~ 

===हेमन्त चौहान===

खुदीराम बोस- एक भारतीय क्रांतिवीर



खुदीराम बोस (3 दिसंबर 1889 – 11 अगस्त 1908) भारतीय स्वाधीनता के लिये मात्र 18 साल, 7 महीने 11 दिन की उम्र में हिन्दुस्तान की आजादी के लिये फाँसी पर चढ़ गये। कुछ इतिहासकारों की यह धारणा है कि वे अपने देश के लिये फाँसी पर चढ़ने वाले सबसे कम उम्र के ज्वलन्त तथा युवा क्रान्तिकारी देशभक्त थे। लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि खुदीराम से पूर्व 17 जनवरी 1872 को 68 कूकाओं के सार्वजनिक नरसंहार के समय 13 वर्ष का एक बालक भी शहीद हुआ था। उपलब्ध तथ्यानुसार उस बालक को, जिसका नम्बर 50वाँ था, जैसे ही तोप के सामने लाया गया, उसने लुधियाना के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर कावन की दाढी कसकर पकड ली और तब तक नहीं छोडी जब तक उसके दोनों हाथ तलवार से काट नहीं दिये गये बाद में उसे उसी तलवार से मौत के घाट उतार दिया गया था। (देखें सरफरोशी की तमन्ना भाग 4 पृष्ठ 13)



खुदीराम का जन्म 3 दिसंबर 1889 को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले के बहुवैनी नामक गाँव में बाबू त्रैलोक्यनाथ बोस के यहाँ हुआ था। उसकी माता का नाम लक्ष्मीप्रिया देवी था। बालक खुदीराम के मन में देश को आजाद कराने की ऐसी लगन लगी कि नौवीं कक्षा के बाद ही पढ़ाई छोड़ दी और स्वदेशी आन्दोलन में कूद पड़ा। छात्र जीवन से ही ऐसी लगन मन में लिये इस नौजवान ने हिन्दुस्तान पर अत्याचारी सत्ता चलाने वाले ब्रिटिश साम्राज्य को ध्वस्त करने के संकल्प में अलौकिक धैर्य का परिचय देते हुए पहला बम फेंका और मात्र 18 साल, 7 महीने 11 दिन की उम्र में हाथ में भगवद गीता लेकर हँसते - हँसते फाँसी के फन्दे पर चढकर इतिहास रच दिया।




क्रान्ति के क्षेत्र में:
स्कूल छोडने के बाद खुदीराम रिवोल्यूशनरी पार्टी के सदस्य बने और वन्दे मातरम् पैफलेट वितरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। 1905 में बंगाल के विभाजन (बंग - भंग) के विरोध में चलाये गये आन्दोलन में उन्होंने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया।
फरवरी 1906 में मिदनापुर में एक औद्योगिक तथा कृषि प्रदर्शनी लगी हुई थी। प्रदर्शनी देखने के लिये आसपास के प्रान्तों से सैंकडों लोग आने लगे। बंगाल के एक क्रांतिकारी सत्येंद्रनाथ द्वारा लिखे ‘सोनार बांगला’ नामक ज्वलंत पत्रक की प्रतियाँ खुदीराम ने इस प्रदर्शनी में बाँटी। एक पुलिस वाला उन्हें पकडने के लिये भागा। खुदीराम ने इस सिपाही के मुँह पर घूँसा मारा और शेष पत्रक बगल में दबाकर भाग गये। इस प्रकरण में राजद्रोह के आरोप में सरकार ने उन पर अभियोग चलाया परन्तु गवाही न मिलने से खुदीराम निर्दोष छूट गये।
इतिहासवेत्ता मालती मलिक के अनुसार 28 फरवरी 1906 को खुदीराम बोस गिरफ्तार कर लिये गये लेकिन वह कैद से भाग निकले। लगभग दो महीने बाद अप्रैल में वह फिर से पकड़े गये। 16 मई 1906 को उन्हें रिहा कर दिया गया।
6 दिसंबर 1907 को खुदीराम ने नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर बंगाल के गवर्नर की विशेष ट्रेन पर हमला किया परन्तु गवर्नर बच गया। सन 1908 में उन्होंने दो अंग्रेज अधिकारियों वाट्सन और पैम्फायल्ट फुलर पर बम से हमला किया लेकिन वे भी बच निकले।




न्यायाधीश किंग्जफोर्ड को मारने की योजना:
मिदनापुर में ‘युगांतर’ नाम की क्रांतिकारियों की गुप्त संस्था के माध्यम से खुदीराम क्रांतिकार्य पहले ही में जुट चुके थे। 1905 में लॉर्ड कर्जन ने जब बंगाल का विभाजन किया तो उसके विरोध में सडकों पर उतरे अनेकों भारतीयों को उस समय के कलकत्ता के मॅजिस्ट्रेट किंग्जफोर्ड ने क्रूर दण्ड दिया। अन्य मामलों में भी उसने क्रान्तिकारियों को बहुत कष्ट दिया था। इसके परिणामस्वरूप किंग्जफोर्ड को पदोन्नति देकर मुजफ्फरपुर में सत्र न्यायाधीश के पद पर भेजा। ‘युगान्तर’ समिति कि एक गुप्त बैठक में किंग्जफोर्ड को ही मारने का निश्चय हुआ। इस कार्य हेतु खुदीराम तथा प्रफुल्लकुमार चाकी का चयन किया गया। खुदीराम को एक बम और पिस्तौल दी गयी। प्रफुल्लकुमार को भी एक पिस्तौल दी गयी। मुजफ्फरपुर में आने पर इन दोनों ने सबसे पहले किंग्जफोर्ड के बँगले की निगरानी की। उन्होंने उसकी बग्घी तथा उसके घोडे का रंग देख लिया। खुदीराम तो किंग्जफोर्ड को उसके कार्यालय में जाकर ठीक से देख भी आया।



अंग्रेज अत्याचारियों पर पहला बम:

30 अप्रैल 1908 को ये दोनों नियोजित काम के लिये बाहर निकले और किंग्जफोर्ड के बँगले के बाहर घोडागाडी से उसके आने की राह देखने लगे। बँगले की निगरानी हेतु वहाँ मौजूद पुलिस के गुप्तचरों ने उन्हें हटाना भी चाहा परन्तु वे दोनॉं उन्हें योग्य उत्तर देकर वहीं रुके रहे। रात में साढे आठ बजे के आसपास क्लब से किंग्जफोर्ड की बग्घी के समान दिखने वाली गाडी आते हुए देखकर खुदीराम गाडी के पीछे भागने लगे। रास्ते में बहुत ही अँधेरा था। गाडी किंग्जफोर्ड के बँगले के सामने आते ही खुदीराम ने अँधेरे में ही आगे वाली बग्घी पर निशाना लगाकर जोर से बम फेंका। हिन्दुस्तान में इस पहले बम विस्फोट की आवाज उस रात तीन मील तक सुनाई दी और कुछ दिनों बाद तो उसकी आवाज इंग्लैंड तथा योरोप में भी सुनी गयी जब वहाँ इस घटना की खबर ने तहलका मचा दिया। यूँ तो खुदीराम ने किंग्जफोर्ड की गाडी समझकर बम फेंका था परन्तु उस दिन किंग्जफोर्ड थोडी देर से क्लब से बाहर आने के कारण बच गया। दैवयोग से गाडियाँ एक जैसी होने के कारण दो यूरोपियन स्त्रियों को अपने प्राण गँवाने पडे। खुदीराम तथा प्रफुल्लकुमार दोनों ही रातों - रात नंगे पैर भागते हुए गये और 24 मील दूर स्थित वैनी रेलवे स्टेशन पर जाकर ही विश्राम किया।





गिरफ्तारी:
अंग्रेज पुलिस उनके पीछे लग गयी और वैनी रेलवे स्टेशन पर उन्हें घेर लिया। अपने को पुलिस से घिरा देख प्रफुल्लकुमार चाकी ने खुद को गोली मारकर अपनी शहादत दे दी जबकि खुदीराम पकड़े गये। 11 अगस्त 1908 को उन्हें मुजफ्फरपुर जेल में फाँसी दे दी गयी। उस समय उनकी उम्र मात्र 18 साल, 7 महीने 11 दिन थी।





फाँसी का आलिंगन:

फाँसी के तख्ते पर खुदीराम

दूसरे दिन सन्देह होने पर प्रफुल्लकुमार चाकी को पुलिस पकडने गयी, तब उन्होंने स्वयं पर गोली चलाकर अपने प्राणार्पण कर दिये। खुदीराम को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। इस गिरफ्तारी का अन्त निश्चित ही था। 11 अगस्त 1908 को भगवद्गीता हाथ में लेकर खुदीराम धैर्य के साथ खुशी - खुशी फाँसी चढ गये। किंग्जफोर्ड ने घबराकर नौकरी छोड दी और जिन क्रांतिकारियों को उसने कष्ट दिया था उनके भय से उसकी शीघ्र ही मौत भी हो गयी। परन्तु खुदीराम मरकर भी अमर हो गये।
फाँसी के बाद खुदीराम इतने लोकप्रिय हो गये कि बंगाल के जुलाहे एक खास किस्म की धोती बुनने लगे। इतिहासवेत्ता शिरोल के अनुसार बंगाल के राष्ट्रवादियों के लिये वह वीर शहीद और अनुकरणीय हो गया। विद्यार्थियों तथा अन्य लोगों ने शोक मनाया। कई दिन तक स्कूल कालेज सभी बन्द रहे और नौजवान ऐसी धोती पहनने लगे, जिनकी किनारी पर खुदीराम लिखा होता था।



स्मारक का उद्घाटन:
क्रान्तिवीर खुदीराम बोस का स्मारक बनाने की योजना कानपुर के युवकों ने बनाई और प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू को उसके उद्घाटन के लिये आमन्त्रित किया। खुदीराम बोस का बलिदान अनेक युवकों के लिये स्फूर्तिदायी था। उनके पीछे असंख्य युवक इस स्वतन्त्रता-यज्ञ में आत्मार्पण करने के लिये आगे आये। इस प्रकार के अनेक क्रान्तिकारियों के त्याग की कोई सीमा नहीं थी। नेहरू जी का क्रोध यह देखकर निरंकुश हो गया कि खुदीराम बोस जैसे एक शस्त्राचारी युवक के स्मारक का उद्घाटन करने के लिये उनके जैसे गांधी जी के वारिस को बुलाने का साहस इन युवकों ने क्यों किया। उन्होंने उन युवकों को फटकारा और कहा- "अत्याचारी मार्ग का जिसने आधार लिया, उसके स्मारक के उद्घाटन को मैं नहीं आऊँगा।"



(देखें : लाल किलेकी यादें लेखक : गोपाल गोडसे दैनिक सनातन प्रभात 2.12.2007 )

जय हिन्द, जय भारत !!
वन्दे मातरम !!
--- ये है हिंदुस्तान मेरी जान