विदेशी बैंकों में जमा भारत के काले धन पर पिछले दो दशकों से बहस हो रही है। वर्ष 1996 में स्विस बैंक के एक निदेशक ने भारत दौरे के दौरान यह जानकारी देकर सनसनी फैला दी थी कि भारतीयों के स्विट्जरलैंड के बैंक खातों में 2550 अरब डालर अर्थात 120 लाख करोड़ रुपये जमा हैं। 2008-09 में एक और निदेशक ने यही मुद्दा उठाया कि प्राइवेट स्विस बैंकों में भारतीयों की जमा राशि 1456 अरब डालर अर्थात 70 लाख करोड़ रुपये है। इन दोनों राशियों में कोई विरोधाभास नहीं, क्योंकि 2008-09 के आंकड़े केवल प्राइवेट बैंकों के हैं। कारपोरेट बैंक इनमें शामिल नहीं हैं। उस समय एलजीटी का मामला गरमा रहा था और चुनाव भी सिर पर थे। राजनीतिक दलों ने इस मुद्दे को तूल दिया तो जनता भी जागी कि यह भारी-भरकम राशि भारत में वापस आनी चाहिए।
इस बीच मंदी आने पर उन्नत देशों का ध्यान भी इस ओर आकर्षित हुआ और विभिन्न संस्थान इस बारे में गंभीर हुए। उन्होंने अपना धन वापस लाने के लिए प्रयत्न किए और टैक्स हैवेंस (कर चोरी के सुरक्षित ठिकाने) में पड़े धन के बारे में अनुमान लगाया। इन अनुमानों से यह निष्कर्ष भी निकाला कि दुनिया में जितना पैसा टैक्स हैवेंस में है उसका 50 प्रतिशत विकासशील देशों का है और इसमें से आधे से अधिक भारतीयों का है। यानी कुल जमा राशि में भारतीयों का लगभग हिस्सा 40 प्रतिशत है। ग्लोबल फाइनेंशियल इंटेग्रिटी (जीएफआइ), टैक्स जस्टिस नेटवर्थ (टीजेएन), अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष आदि अनेक संस्थान इस समस्या पर नजर रखे हैं, विस्तृत विश्लेषण कर रहे हैं और धन की वापसी के लिए जूझ रहे हैं।
इस बीच जीएफआइ ने यह कह कर सबको चौंका दिया कि भारत का विदेशी खातों में कुल पैसा 462 अरब डॉलर यानी 20 लाख करोड़ है। उन्होंने यह भी बताया कि वर्ष 1948-2008 के बीच भारत से बाहर केवल 213 अरब डॉलर गया था। बाकी इस पर ब्याज आदि की कमाई है, जबकि जीएफआई के अपने ही पुराने अनुमान कहीं ऊंचे हैं।
यह बदलाव क्यों?
जब यह जानने के लिए मैंने इस रिपोर्ट का गहन अध्ययन किया तो स्थिति स्पष्ट हुई कि यह रिपोर्ट अंतरराष्ट्रीय व्यापार के केवल एक पहलू पर आधारित है, जो केवल माल (वस्तुओं) का ही हिसाब लगाता है। यहां तक कि सेवाओं को भी इसमें शामिल नहीं किया जाता। यही नहीं, आगे इस अनुमान का दायरा और सिकुड़ जाता है जब यह रिपोर्ट कहती है कि यह अनुमान केवल माल के बिल की मिसप्राइसिंग पर आधारित है। रिपोर्ट में जीएफआई स्वयं यह मानती है कि इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि यह भारी-भरकम राशि भी कम करके दिखाई गई है। यह बात ठीक भी है, क्यांेंकि 1948-2008 तक के निर्यात व आयात के कुल आंकड़े 1422 अरब व 1834 अरब डॉलर के हैं। एक शोध के अनुसार भारत निर्यात पर कम से कम 40 प्रतिशत और आयात पर 20 प्रतिशत गंवाता है। इस तरह भारत को इस समय में कम से कम 932 अरब डॉलर का नुकसान हुआ है, जबकि जीएफआई केवल 213 अरब डॉलर बता रही है, वह भी बिना किसी तर्क के। रिपोर्ट स्वयं बताती है कि जीएफआई ने काला धन पैदा होने के कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रों का संज्ञान ही नहीं लिया। इनमें प्रमुख हैं-नशीले दवाओं की तस्करी, फर्जी बिलिंग से आयात-निर्यात, हवाला, यौन व्यापार, घोटाले, नकली मुद्रा, अंतरराष्ट्रीय संगठित अपराध, मानव तस्करी, भ्रष्टाचार और अन्य आपराधिक गतिविधियों से उत्पन्न धन। अनेक अध्ययनों के अनुसार फर्जी बिलों के माध्यम अगर अधिक नहीं, तो वास्तविक बिलों जितना घोटाला जरूर होता है। भारत में काले धन के बारे में यही सबसे बड़ा मुद्दा है। जीएफआइ ने स्वयं अपनी एक और रिपोर्ट में कहा है कि विकासशील देशों का, जिसमें भारत का विशेष जिक्र है, भ्रष्टाचार का पैसा केवल पांच प्रतिशत है। विभिन्न अपराधों से संचित राशि 30-35 प्रतिशत है व टैक्स चोरी से संचित काला धन 60-65 प्रतिशत है, परंतु फिर भी वर्तमान रिपोर्ट इस मुख्य मुद्दे की बात ही नहीं करती। यदि काले धन के इतने श्चोतों का संज्ञान नहीं लिया जाएगा तो इसकी सही राशि का आकलन नहीं किया जा सकता। वैसे भी यह रिपोर्ट दिग्भ्रमित करने वाली है। रिपोर्ट कहती है कि 2008-09 में भारत की सकल आय 1250 अरब डॉलर थी और काले धन की उत्पत्ति उसकी आधी यानी 640 अरब डॉलर थी। रिपोर्ट के अनुसार इस काले धन में से 462 अरब डॉलर तो विदेशों में है व 178 अरब डॉलर भारत में, जबकि सकल उत्पाद का आंकड़ा हर साल का है। काले धन की 640 अरब डालर की उत्पत्ति भी वर्ष विशेष के लिए है, फिर 60 साल में संचित काले धन का इससे कैसे मुकाबला किया जा सकता है। जब इतनी भारी मदें छोड़ दी गई हैं तो इस अनुमान का कोई मतलब ही नहीं रह जाता। न जाने यह रिपोर्ट किस मतलब से लिखी गई है, परंतु यह स्पष्ट है कि जैसे-तैसे यह रिपोर्ट सिद्ध करना चाहती है कि विदेशों में भारत का धन 60 वर्षो में केवल 213 अरब डॉलर गया जो कि प्रतिवर्ष औसत 3.5 अरब डॉलर है और यह बहुत छोटी राशि है व भारत की जनता नाहक ही इतना शोर मचा रही है।
ये अति भ्रामक आंकड़े हैं, जो विश्लेषण की कसौटी पर खरे नहीं उतरते। इसके विरुद्ध आइएमएफ के अनुसार इस समय सभी 77 टैक्स हैवेंस में कुल जमा राशि 18,000 अरब डॉलर है। 40 प्रतिशत के हिसाब से भारत का हिस्सा 7,200 अरब डॉलर यानी 350 लाख करोड़ रुपये बनता है। भारत के विदेशों में जमा काले धन को कमतर आंकने का जीएफआई का मकसद स्पष्ट नहीं है, परंतु हमें इस भ्रामक जाल में नहीं फंसना चाहिए। हमें इस इस विपुल राशि को वापस लाने व अब और धन बाहर जाने से रोकने में पूर्ण प्रयास जारी करने चाहिए।
(लेखक सीबीआइ के पूर्व संयुक्त निदेशक हैं)
इस बीच मंदी आने पर उन्नत देशों का ध्यान भी इस ओर आकर्षित हुआ और विभिन्न संस्थान इस बारे में गंभीर हुए। उन्होंने अपना धन वापस लाने के लिए प्रयत्न किए और टैक्स हैवेंस (कर चोरी के सुरक्षित ठिकाने) में पड़े धन के बारे में अनुमान लगाया। इन अनुमानों से यह निष्कर्ष भी निकाला कि दुनिया में जितना पैसा टैक्स हैवेंस में है उसका 50 प्रतिशत विकासशील देशों का है और इसमें से आधे से अधिक भारतीयों का है। यानी कुल जमा राशि में भारतीयों का लगभग हिस्सा 40 प्रतिशत है। ग्लोबल फाइनेंशियल इंटेग्रिटी (जीएफआइ), टैक्स जस्टिस नेटवर्थ (टीजेएन), अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष आदि अनेक संस्थान इस समस्या पर नजर रखे हैं, विस्तृत विश्लेषण कर रहे हैं और धन की वापसी के लिए जूझ रहे हैं।
इस बीच जीएफआइ ने यह कह कर सबको चौंका दिया कि भारत का विदेशी खातों में कुल पैसा 462 अरब डॉलर यानी 20 लाख करोड़ है। उन्होंने यह भी बताया कि वर्ष 1948-2008 के बीच भारत से बाहर केवल 213 अरब डॉलर गया था। बाकी इस पर ब्याज आदि की कमाई है, जबकि जीएफआई के अपने ही पुराने अनुमान कहीं ऊंचे हैं।
यह बदलाव क्यों?
जब यह जानने के लिए मैंने इस रिपोर्ट का गहन अध्ययन किया तो स्थिति स्पष्ट हुई कि यह रिपोर्ट अंतरराष्ट्रीय व्यापार के केवल एक पहलू पर आधारित है, जो केवल माल (वस्तुओं) का ही हिसाब लगाता है। यहां तक कि सेवाओं को भी इसमें शामिल नहीं किया जाता। यही नहीं, आगे इस अनुमान का दायरा और सिकुड़ जाता है जब यह रिपोर्ट कहती है कि यह अनुमान केवल माल के बिल की मिसप्राइसिंग पर आधारित है। रिपोर्ट में जीएफआई स्वयं यह मानती है कि इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि यह भारी-भरकम राशि भी कम करके दिखाई गई है। यह बात ठीक भी है, क्यांेंकि 1948-2008 तक के निर्यात व आयात के कुल आंकड़े 1422 अरब व 1834 अरब डॉलर के हैं। एक शोध के अनुसार भारत निर्यात पर कम से कम 40 प्रतिशत और आयात पर 20 प्रतिशत गंवाता है। इस तरह भारत को इस समय में कम से कम 932 अरब डॉलर का नुकसान हुआ है, जबकि जीएफआई केवल 213 अरब डॉलर बता रही है, वह भी बिना किसी तर्क के। रिपोर्ट स्वयं बताती है कि जीएफआई ने काला धन पैदा होने के कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रों का संज्ञान ही नहीं लिया। इनमें प्रमुख हैं-नशीले दवाओं की तस्करी, फर्जी बिलिंग से आयात-निर्यात, हवाला, यौन व्यापार, घोटाले, नकली मुद्रा, अंतरराष्ट्रीय संगठित अपराध, मानव तस्करी, भ्रष्टाचार और अन्य आपराधिक गतिविधियों से उत्पन्न धन। अनेक अध्ययनों के अनुसार फर्जी बिलों के माध्यम अगर अधिक नहीं, तो वास्तविक बिलों जितना घोटाला जरूर होता है। भारत में काले धन के बारे में यही सबसे बड़ा मुद्दा है। जीएफआइ ने स्वयं अपनी एक और रिपोर्ट में कहा है कि विकासशील देशों का, जिसमें भारत का विशेष जिक्र है, भ्रष्टाचार का पैसा केवल पांच प्रतिशत है। विभिन्न अपराधों से संचित राशि 30-35 प्रतिशत है व टैक्स चोरी से संचित काला धन 60-65 प्रतिशत है, परंतु फिर भी वर्तमान रिपोर्ट इस मुख्य मुद्दे की बात ही नहीं करती। यदि काले धन के इतने श्चोतों का संज्ञान नहीं लिया जाएगा तो इसकी सही राशि का आकलन नहीं किया जा सकता। वैसे भी यह रिपोर्ट दिग्भ्रमित करने वाली है। रिपोर्ट कहती है कि 2008-09 में भारत की सकल आय 1250 अरब डॉलर थी और काले धन की उत्पत्ति उसकी आधी यानी 640 अरब डॉलर थी। रिपोर्ट के अनुसार इस काले धन में से 462 अरब डॉलर तो विदेशों में है व 178 अरब डॉलर भारत में, जबकि सकल उत्पाद का आंकड़ा हर साल का है। काले धन की 640 अरब डालर की उत्पत्ति भी वर्ष विशेष के लिए है, फिर 60 साल में संचित काले धन का इससे कैसे मुकाबला किया जा सकता है। जब इतनी भारी मदें छोड़ दी गई हैं तो इस अनुमान का कोई मतलब ही नहीं रह जाता। न जाने यह रिपोर्ट किस मतलब से लिखी गई है, परंतु यह स्पष्ट है कि जैसे-तैसे यह रिपोर्ट सिद्ध करना चाहती है कि विदेशों में भारत का धन 60 वर्षो में केवल 213 अरब डॉलर गया जो कि प्रतिवर्ष औसत 3.5 अरब डॉलर है और यह बहुत छोटी राशि है व भारत की जनता नाहक ही इतना शोर मचा रही है।
ये अति भ्रामक आंकड़े हैं, जो विश्लेषण की कसौटी पर खरे नहीं उतरते। इसके विरुद्ध आइएमएफ के अनुसार इस समय सभी 77 टैक्स हैवेंस में कुल जमा राशि 18,000 अरब डॉलर है। 40 प्रतिशत के हिसाब से भारत का हिस्सा 7,200 अरब डॉलर यानी 350 लाख करोड़ रुपये बनता है। भारत के विदेशों में जमा काले धन को कमतर आंकने का जीएफआई का मकसद स्पष्ट नहीं है, परंतु हमें इस भ्रामक जाल में नहीं फंसना चाहिए। हमें इस इस विपुल राशि को वापस लाने व अब और धन बाहर जाने से रोकने में पूर्ण प्रयास जारी करने चाहिए।
(लेखक सीबीआइ के पूर्व संयुक्त निदेशक हैं)
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