एक कुशल चित्रकार ने एक चित्र प्रदर्शनी में रखा और उस के नीचे लिख दिया-'कृपया जहां गलती हो, वहां निशान लगा दीजिए।' चित्रकार को अपनी कला पर पूर्ण विश्वास था। उसने यह नोट इस उद्देश्य से लिखा था कि लोग चित्र को देखकर झूम उठेंगे और उसकी प्रशंसा में जरूर टिप्पणी लिखेंगे। जब अगले दिन चित्रकार प्रसन्न मन से चित्र को लेने पहुंचा तो वह यह देखकर हैरान रह गया कि उसका चित्र निशानों से भरा पड़ा था। चित्र वाकई बेहद खूबसूरत था। उसने यह सपने में भी नहीं सोचा था कि उसका चित्र लोगों के निकाले दोषों से इतना ढक जाएगा कि उसका मूल चित्र ही कहीं खो जाएगा।
वह घर आकर दु:खी मन से बैठ गया। चित्रकार की पत्नी भी बेहद गुणी व समझदार थी। वह चित्रकार को परेशान देखकर बोली, 'क्या बात है?' चित्रकार ने दु:खी मन से पत्नी को अपना चित्र दिखा दिया। चित्र देखकर वह मुस्कराकर बोली, 'तो आप इसलिए परेशान हैं। अरे इसका यह अर्थ कतई नहीं है कि आप कुशल चित्रकार नहीं हैं। लोगों की तो आदत होती है अच्छे से अच्छे कार्य में भी दोष ढूंढ निकालना। जिन्होंने आपके चित्र को निशानों से भर दिया है वे केवल दोष ढूंढना जानते हैं, उन्हें सुधारना नहीं।' अब आप दूसरे चित्र में यह लिख दीजिए कि कृपया इस चित्र के दोष दूर कर दीजिए।'
चित्रकार ने पत्नी की बात मानकर ऐसा ही किया। अगले दिन जब वह चित्र देखने पहुंचा तो यह देखकर दंग रह गया कि सचमुच चित्र में एक भी निशान नहीं था। न ही किसी ने दोष ढूंढकर उसे दूर करने की कोशिश की थी जबकि इस बार चित्रकार ने सचमुच चित्र में जानकर गलती की थी इसके बावजूद कोई उसे नहीं पकड़ नहीं पाया था। यह देखकर वह प्रसन्न मन से घर आया और पत्नी से बोला, 'तुम बिल्कुल ठीक कह रही थीं। लोग दोष ढूंढना तो जानते हैं किंतु उसमें सुधार करना नहीं।' उसकी पत्नी बोली, 'बिल्कुल सही कहा आपने। आपका यह चित्र पहले वाले चित्र के मुकाबले कुछ भी नहीं है। दुनिया दोष निकालना तो जानती है लेकिन सुधार करना नहीं। बुराई पर चर्चा सब करते हैं, पर बुराई को दूर करना कोई नहीं चाहता। तभी तो दुनिया में इतनी बुराई है।' चित्रकार पत्नी की बात से सहमत हो गया।
वह घर आकर दु:खी मन से बैठ गया। चित्रकार की पत्नी भी बेहद गुणी व समझदार थी। वह चित्रकार को परेशान देखकर बोली, 'क्या बात है?' चित्रकार ने दु:खी मन से पत्नी को अपना चित्र दिखा दिया। चित्र देखकर वह मुस्कराकर बोली, 'तो आप इसलिए परेशान हैं। अरे इसका यह अर्थ कतई नहीं है कि आप कुशल चित्रकार नहीं हैं। लोगों की तो आदत होती है अच्छे से अच्छे कार्य में भी दोष ढूंढ निकालना। जिन्होंने आपके चित्र को निशानों से भर दिया है वे केवल दोष ढूंढना जानते हैं, उन्हें सुधारना नहीं।' अब आप दूसरे चित्र में यह लिख दीजिए कि कृपया इस चित्र के दोष दूर कर दीजिए।'
चित्रकार ने पत्नी की बात मानकर ऐसा ही किया। अगले दिन जब वह चित्र देखने पहुंचा तो यह देखकर दंग रह गया कि सचमुच चित्र में एक भी निशान नहीं था। न ही किसी ने दोष ढूंढकर उसे दूर करने की कोशिश की थी जबकि इस बार चित्रकार ने सचमुच चित्र में जानकर गलती की थी इसके बावजूद कोई उसे नहीं पकड़ नहीं पाया था। यह देखकर वह प्रसन्न मन से घर आया और पत्नी से बोला, 'तुम बिल्कुल ठीक कह रही थीं। लोग दोष ढूंढना तो जानते हैं किंतु उसमें सुधार करना नहीं।' उसकी पत्नी बोली, 'बिल्कुल सही कहा आपने। आपका यह चित्र पहले वाले चित्र के मुकाबले कुछ भी नहीं है। दुनिया दोष निकालना तो जानती है लेकिन सुधार करना नहीं। बुराई पर चर्चा सब करते हैं, पर बुराई को दूर करना कोई नहीं चाहता। तभी तो दुनिया में इतनी बुराई है।' चित्रकार पत्नी की बात से सहमत हो गया।
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