पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री सादगीपूर्ण जीवन के लिए प्रसिद्ध थे। उन्हें किसी भी तरह का दिखावा या आडम्बर पसंद नहीं था। वह मानकर चलते थे कि जनता के लिए काम करने वाले नेताओं को बिल्कुल उसी तरह रहना चाहिए जिस तरह आम आदमी रहता है। यही नहीं उन्हें यथासंभव अपनी सुविधाओं का त्याग कर देना चाहिए। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान जेल में भी शास्त्री जी बिल्कुल सादगी के साथ रहते थे।
राजनैतिक कैदी होने के कारण उनको जेल प्रशासन की ओर से कुछ विशेष सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती थीं, जिनमें से एक उनकी भोजन की थाली भी थी। मगर शास्त्री जी वह विशिष्ट थाली स्वयं न खाकर अपने अन्य कैदी साथियों में बांट दिया करते थे और स्वयं आम कैदियों को मिलने वाला साधारण भोजन ही उनके साथ बैठकर किया करते थे। इस दौरान वे उनका हालचाल भी पूछ लेते थे। जेलर को इस बात का पता चला तो वह उनके पास जांच के लिए आया और बोला, 'महाशय, यह जेल प्रशासन की ओर से आपके लिए बनाया गया भोजन होता है, मगर आप इसे औरों को बांट देते हैं।
आखिर आप ऐसा क्यों करते हैं?' इस पर शास्त्री जी बोले, 'मेरे भाई, मुझे यहां सदा के लिए तो रहना नहीं है। आज यहां मिलने वाला उम्दा भोजन मुझे बाहर तो मिलने वाला नहीं है, फिर क्यों इसे खाकर मैं अपना स्वाद और आदत खराब करूं। मेरे लिए यह सादा भोजन ही छप्पन भोग के समान है।' यह कहकर शास्त्री जी जेल का साधारण खाना खाने लगे। जेलर भी उनके प्रति नतमस्तक हो गया।
राजनैतिक कैदी होने के कारण उनको जेल प्रशासन की ओर से कुछ विशेष सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती थीं, जिनमें से एक उनकी भोजन की थाली भी थी। मगर शास्त्री जी वह विशिष्ट थाली स्वयं न खाकर अपने अन्य कैदी साथियों में बांट दिया करते थे और स्वयं आम कैदियों को मिलने वाला साधारण भोजन ही उनके साथ बैठकर किया करते थे। इस दौरान वे उनका हालचाल भी पूछ लेते थे। जेलर को इस बात का पता चला तो वह उनके पास जांच के लिए आया और बोला, 'महाशय, यह जेल प्रशासन की ओर से आपके लिए बनाया गया भोजन होता है, मगर आप इसे औरों को बांट देते हैं।
आखिर आप ऐसा क्यों करते हैं?' इस पर शास्त्री जी बोले, 'मेरे भाई, मुझे यहां सदा के लिए तो रहना नहीं है। आज यहां मिलने वाला उम्दा भोजन मुझे बाहर तो मिलने वाला नहीं है, फिर क्यों इसे खाकर मैं अपना स्वाद और आदत खराब करूं। मेरे लिए यह सादा भोजन ही छप्पन भोग के समान है।' यह कहकर शास्त्री जी जेल का साधारण खाना खाने लगे। जेलर भी उनके प्रति नतमस्तक हो गया।
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