इस समय हर आदमी बहुत तेजी में है। प्रतीक्षा कोई नहीं करना चाहता। जल्दी के चक्कर में इंसानियत ने एक बात खो दी है और वह है धर्य। भौतिक मार्ग में जल्दबाजी भी योग्यता मानी जाती है।
अध्यात्म मार्ग में धर्य गहना है। परमात्मा उन्हें ही मिलता है, जिनके पास धीरज है। जिनकी जीवन यात्रा में धर्य होता है, वे थोड़ा अपने आसपास भी देख पाते हैं। जो जल्दी में हैं, उन्हें इतनी फुर्सत कहां कि वे अपने आसपास के लोगों को देख सकें।
पराए तो दूर, ये जल्दीबाजी वाले अपने सगे लोगों पर भी ध्यान नहीं दे पाते। यही जल्दी इन्हें अपने लोगों के लिए समय के मामले में कंगाल बना देती है। जीवन में धर्य हमें इस बात के लिए प्रेरित करता है कि हम अपनी सेवा और सहयोग से दूसरों को सुखी बनाएं।
जब दूसरे विपत्ति में हों तो उन्हें देख हमारा धीरजभरा स्वभाव हमें प्रेरित करता है कि हम उनकी मदद करें। धर्य का एक और गुण है कि दूसरों को सुखी देख वह हमारे भीतर प्रसन्नता भरता है। वरना आजकल लोग अपने दुख से कम, बल्कि दूसरों के सुख से ज्यादा दुखी रहते हैं।
अधीरता के कारण लोगों की प्रतीक्षा की क्षमता ही खत्म हो गई है। ऐसे में संसार तो मिल जाएगा, पर परमात्मा नहीं और बिना परमात्मा के शांति कैसे मिलेगी?
भगवान हर घड़ी हमारी ओर हाथ बढ़ाता है, लेकिन हम देख नहीं पाते, क्योंकि जल्दी में हैं। बाहर की गति तो रहे, पर भीतर का धर्य बना रहे तो दुनिया भी मिलेगी और दुनिया बनाने वाला भी नहीं छूटेगा।
अध्यात्म मार्ग में धर्य गहना है। परमात्मा उन्हें ही मिलता है, जिनके पास धीरज है। जिनकी जीवन यात्रा में धर्य होता है, वे थोड़ा अपने आसपास भी देख पाते हैं। जो जल्दी में हैं, उन्हें इतनी फुर्सत कहां कि वे अपने आसपास के लोगों को देख सकें।
पराए तो दूर, ये जल्दीबाजी वाले अपने सगे लोगों पर भी ध्यान नहीं दे पाते। यही जल्दी इन्हें अपने लोगों के लिए समय के मामले में कंगाल बना देती है। जीवन में धर्य हमें इस बात के लिए प्रेरित करता है कि हम अपनी सेवा और सहयोग से दूसरों को सुखी बनाएं।
जब दूसरे विपत्ति में हों तो उन्हें देख हमारा धीरजभरा स्वभाव हमें प्रेरित करता है कि हम उनकी मदद करें। धर्य का एक और गुण है कि दूसरों को सुखी देख वह हमारे भीतर प्रसन्नता भरता है। वरना आजकल लोग अपने दुख से कम, बल्कि दूसरों के सुख से ज्यादा दुखी रहते हैं।
अधीरता के कारण लोगों की प्रतीक्षा की क्षमता ही खत्म हो गई है। ऐसे में संसार तो मिल जाएगा, पर परमात्मा नहीं और बिना परमात्मा के शांति कैसे मिलेगी?
भगवान हर घड़ी हमारी ओर हाथ बढ़ाता है, लेकिन हम देख नहीं पाते, क्योंकि जल्दी में हैं। बाहर की गति तो रहे, पर भीतर का धर्य बना रहे तो दुनिया भी मिलेगी और दुनिया बनाने वाला भी नहीं छूटेगा।
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