पंजाब के राय साहब लालचंद एक नेक और ईमानदार समाज सुधारक थे। एक बार उन्हें पता चला कि देहरादून के प्रसिद्ध कन्या गुरुकुल में छात्राओं के बौद्धिक विकास के लिए अनेक तरह के आयोजन किए जाते हैं।
उन्होंने सोचा कि क्यों न वह पुस्तकों का अपना भंडार गुरुकुल को सौंप दें। इससे कन्याओं का भला होगा। उन्होंने गुरुकुल के प्रमुख को पुस्तकें ले जाने के संदर्भ में एक पत्र लिख दिया। पत्र पढ़कर गुरुकुल के प्रमुख ने स्वयं राय साहब के पास जाने का निश्चय किया। राय साहब के घर पहुंचकर उन्होंने दो-तीन बार दरवाजा खटखटाया, लेकिन हर ओर सन्नाटा छाया हुआ था।
उन्होंने दरवाजे को हाथ लगाया तो वह खुल गया। अंदर पहुंचकर उन्होंने देखा कि एक वृद्ध बीमार व्यक्ति पलंग पर लेटा हुआ है और दूसरा वृद्ध सेवक उनके पैर दबा रहा है। गुरुकुल प्रमुख वृद्ध सेवक से बोले, 'राय साहब सो रहे हैं क्या?' पैर दबाने वाला व्यक्ति बोला, 'कहिए क्या बात है?' गुरुकुल प्रमुख बोले, 'राय साहब ने अपनी पुस्तकें गुरुकुल में दान करने के लिए हमें पत्र लिखा है। मैं गुरुकुल का प्रमुख हूं।'
प्रमुख का परिचय जानकर वृद्ध व्यक्ति बोले, 'आइए-आइए। मैं ही लालचंद हूं।' वृद्ध सेवक से लगने वाले व्यक्ति का परिचय जानकर गुरुकुल प्रमुख दंग रह गए। वह हैरानी से बोले, 'जिनके आप पैर आप दबा रहे थे, वह कौन हैं?' राय साहब बोले, 'वह मेरा सेवक है। बेचारा दो दिन से बीमार है।' यह जानकर गुरुकुल प्रमुख बुरी तरह चौंक गए और बोले, 'अरे, तो आप अपने सेवक के पैर दबा रहे थे।' राय साहब बोले, 'तो क्या हुआ। वह पिछले 41 सालों से मेरे साथ है। आज वह अस्वस्थ है तो क्या एक दिन मैं उसकी सेवा नहीं कर सकता?
सेवक हो या मालिक, लेकिन हम हैं तो मनुष्य ही। एक मनुष्य होने के नाते मैं बुरे वक्त में दूसरे मनुष्य को कैसे छोड़ दूं?' यह सुनकर गुरुकुल प्रमुख उनके प्रति नतमस्तक हो गए।
उन्होंने सोचा कि क्यों न वह पुस्तकों का अपना भंडार गुरुकुल को सौंप दें। इससे कन्याओं का भला होगा। उन्होंने गुरुकुल के प्रमुख को पुस्तकें ले जाने के संदर्भ में एक पत्र लिख दिया। पत्र पढ़कर गुरुकुल के प्रमुख ने स्वयं राय साहब के पास जाने का निश्चय किया। राय साहब के घर पहुंचकर उन्होंने दो-तीन बार दरवाजा खटखटाया, लेकिन हर ओर सन्नाटा छाया हुआ था।
उन्होंने दरवाजे को हाथ लगाया तो वह खुल गया। अंदर पहुंचकर उन्होंने देखा कि एक वृद्ध बीमार व्यक्ति पलंग पर लेटा हुआ है और दूसरा वृद्ध सेवक उनके पैर दबा रहा है। गुरुकुल प्रमुख वृद्ध सेवक से बोले, 'राय साहब सो रहे हैं क्या?' पैर दबाने वाला व्यक्ति बोला, 'कहिए क्या बात है?' गुरुकुल प्रमुख बोले, 'राय साहब ने अपनी पुस्तकें गुरुकुल में दान करने के लिए हमें पत्र लिखा है। मैं गुरुकुल का प्रमुख हूं।'
प्रमुख का परिचय जानकर वृद्ध व्यक्ति बोले, 'आइए-आइए। मैं ही लालचंद हूं।' वृद्ध सेवक से लगने वाले व्यक्ति का परिचय जानकर गुरुकुल प्रमुख दंग रह गए। वह हैरानी से बोले, 'जिनके आप पैर आप दबा रहे थे, वह कौन हैं?' राय साहब बोले, 'वह मेरा सेवक है। बेचारा दो दिन से बीमार है।' यह जानकर गुरुकुल प्रमुख बुरी तरह चौंक गए और बोले, 'अरे, तो आप अपने सेवक के पैर दबा रहे थे।' राय साहब बोले, 'तो क्या हुआ। वह पिछले 41 सालों से मेरे साथ है। आज वह अस्वस्थ है तो क्या एक दिन मैं उसकी सेवा नहीं कर सकता?
सेवक हो या मालिक, लेकिन हम हैं तो मनुष्य ही। एक मनुष्य होने के नाते मैं बुरे वक्त में दूसरे मनुष्य को कैसे छोड़ दूं?' यह सुनकर गुरुकुल प्रमुख उनके प्रति नतमस्तक हो गए।
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