यह उन दिनों की बात है जब प्रख्यात शिक्षाविद और समाज सुधारक अश्विनी कुमार दत्त हाईस्कूल में पढ़ते थे। उस समय नियम था कि सोलह वर्ष से कम उम्र के विद्यार्थी मैट्रिक की परीक्षा में नहीं बैठ सकते। अश्विनी कुमार 14 वर्ष में ही मैट्रिक में पहुंच गए थे। वह दुविधा में पड़ गए कि आखिर कैसे परीक्षा दें। किंतु जब उन्होंने देखा कि कई कम उम्र के विद्यार्थी अपनी उम्र सोलह वर्ष लिखवाकर परीक्षा में बैठ रहे हैं तो उन्होंने भी ऐसा ही करने का निश्चय किया।
उन्होंने अपने आवेदन में अपनी उम्र सोलह वर्ष लिखवाई और परीक्षा में बैठ गए। इस प्रकार वह मैट्रिक पास हो गए। इसके ठीक एक वर्ष बाद जब वह कॉलेज की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए, तब उन्हें अपने आचरण पर बहुत खेद हुआ और वह ग्लानि से भर उठे। उन्होंने अपने कॉलेज के प्राचार्य से बात की और इस गलती को सुधारने की प्रार्थना की। प्राचार्य ने उनकी सत्यनिष्ठा की बड़ी प्रशंसा की, किंतु इसे सुधारने में असमर्थता जाहिर की। अश्विनी कुमार का मन न माना, तो वह कलकत्ता विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार से मिले, मगर वहां से भी उन्हें यही जवाब मिला। अब कुछ नहीं किया जा सकता था। किंतु अश्विनी कुमार को तो प्रायश्चित करना था।
उन्होंने एक उपाय सोचा। उन्होंने दो वर्ष झूठी उम्र बढ़ाकर जो लाभ उठाया था, उसके लिए दो वर्ष पढ़ाई बंद रखी और स्वयं द्वारा की गई उस गलती का प्रायश्चित किया। बाद में उन्होंने इस बात को दोहराया कि सत्य का आचरण कर व्यक्ति नैतिक रूप से मजबूत होता है।
उन्होंने अपने आवेदन में अपनी उम्र सोलह वर्ष लिखवाई और परीक्षा में बैठ गए। इस प्रकार वह मैट्रिक पास हो गए। इसके ठीक एक वर्ष बाद जब वह कॉलेज की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए, तब उन्हें अपने आचरण पर बहुत खेद हुआ और वह ग्लानि से भर उठे। उन्होंने अपने कॉलेज के प्राचार्य से बात की और इस गलती को सुधारने की प्रार्थना की। प्राचार्य ने उनकी सत्यनिष्ठा की बड़ी प्रशंसा की, किंतु इसे सुधारने में असमर्थता जाहिर की। अश्विनी कुमार का मन न माना, तो वह कलकत्ता विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार से मिले, मगर वहां से भी उन्हें यही जवाब मिला। अब कुछ नहीं किया जा सकता था। किंतु अश्विनी कुमार को तो प्रायश्चित करना था।
उन्होंने एक उपाय सोचा। उन्होंने दो वर्ष झूठी उम्र बढ़ाकर जो लाभ उठाया था, उसके लिए दो वर्ष पढ़ाई बंद रखी और स्वयं द्वारा की गई उस गलती का प्रायश्चित किया। बाद में उन्होंने इस बात को दोहराया कि सत्य का आचरण कर व्यक्ति नैतिक रूप से मजबूत होता है।
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