कई शासकीय कार्य समय के साथ अंग्रेजी में ही होता है। शिक्षा में भी हिन्दी की महता घटी है और अंग्रेजी भाषा का क्रेज समय के साथ बढ़ा है। उच्च शिक्षा मेडिकल, इंजीनियरिंग सहित अन्य शिक्षा भी अब पूरी तरह से अंग्रेजी माध्यम से हो रही है। इन सबके चलते हिन्दी भाषा का विकास प्
रभावित हो रहा है। वर्तमान मे राष्ट्रीय भाषा को जो क्षति हो रही है उसके चलते हिन्दी भाषा से जुड़े शिक्षाविद, विद्यार्थी सहित जनमानस के लिए चिंता का विषय है।
शासकीय पीजी कॉलेज में पदस्थ हिन्दी साहित्य के सहायक प्राध्यापक एनआर साव ने कहा हिन्दी बोलचाल और लिखने में बहुत सरल भाषा है जिससे दैनिक जीवन में यह बहुत उपयोगी है। हिंदी भाषा को विश्व स्तरीय पहचान देने के लिए पूरे देश में दसे ईमानदारी से अपनाना होगा। हिन्दी साहित्य के सहायक प्राध्यापक डा एसआर बंजारे ने कहा कुछ देशों में लोग हिन्दी भाषा का उपयोग करना शुरू कर दिए है।
अगर अंग्रेजी की तरह हिन्दी भाषा को अंतर्राष्ट्रीय भाषा का दर्जा दिलवाना है तो हमारे देश में ही इस भाषा को पूरी तरह से उपयोग में लाना होगा। इसके अलावा विदेश में इस भाषा की महता बताते हुए व्यापक रूप से प्रचार प्रसार करने की आवश्यकता है। हिन्दी भाषा 1947 के पूर्व जनसंपर्क भाषा बनकर देश को आजादी दिलाने उपयोगी साबित हुई थी। अन्य भाषा की हिंदी भाषा से तुलना नही की जा सकती है। हिन्दी भाषा में कई कवि लेखक हुए हैं जिनके कारण विदेशों में भारतीय साहित्य का नाम रोशन हुआ है। कन्या कालेज की हिन्दी साहित्य की सहायक प्राध्यापक डा माहेनूर सैयदा ने कहा समय के साथ अंग्रेजी भाषा का वर्चस्व बढ़ते जा रहा हैं। छग, मप्र, झारखंड, बिहार, यूपी, दिल्ली में हिन्दी भाषा का बहुत ज्यादा उपयोग होता है लेकिन अन्य दूसरे कई राज्यों में क्षेत्रिय भाषा का उपयोग होता है।
हिन्दी भाषा का उपयोग कम होने से अशिक्षित और कम पढ़े लिखे लोगों के लिए बाहर जाने पर परेशानी का कारण बन जाता है। कन्या कालेज में हिन्दी साहित्य में एमए कर रही छात्रा रेखा मरकाम, नीलम यादव, त्रिवेणी देहारी, रंजीता यादव ने कहा उच्च शिक्षा में अंग्रेजी भाषा का ही उपयोग बढ़ा है। जिससे कई छात्र-छात्राओं के लिए परेशानी बढ़ गई है। अब बड़े शहरों में सभी अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम से ही शिक्षा देना चाहते है।
जिसके कारण हिन्दी भाषा उपेक्षित हुई है। छात्रा सहर बानो, शैलेन्दी नाग ने कहा अब शासकीय और निजी नौकरी प्राप्त करने अंग्रेजी का ज्ञान जरूरी माना जाता है और हिन्दी को उपेक्षित दृष्टि से देखा जाता है। अंग्रेजी स्वास्थ्य विभाग में पदस्थ अलबेला पारा के विश्वेश्वर सिंहसार ने कहा शासकीय और प्राइवेट स्तर पर बहुत सारे काम अंग्रेजी में ही होते है जिससे आम जनमानस परेशान है। हिन्दी में ही सारे काम होना चाहिए । जिससे सभी लोगो के लिए सुविधा हो। शिक्षिका अनुराग चौहान ने कहा अंग्रेजी भाषा भी शेष पेज १५ पर
उपयोग होना चाहिए। लेकिन अंग्रेजी भाषा के बढ़ते वर्चस्व के कारण राष्ट्रीय भाषा को हेय दृष्टि से नही देखना चाहिए। अंग्रेजी भाषा के व्याख्याता घनश्याम वैध ने कहा समय के साथ अंग्रेजी भाषा की व्यापक पहचान विश्व स्तर पर बनी है। दोनों ही भाषा का लोग सम्मान करते है। अंग्रेजी भाषा के बढ़ते विकास के कारण हिन्दी भाषा का विकास अवरुद्ध नहीं हुआ है। बल्कि इसके अन्य दूसरे कारण है !!!!!!!!!!!
शासकीय पीजी कॉलेज में पदस्थ हिन्दी साहित्य के सहायक प्राध्यापक एनआर साव ने कहा हिन्दी बोलचाल और लिखने में बहुत सरल भाषा है जिससे दैनिक जीवन में यह बहुत उपयोगी है। हिंदी भाषा को विश्व स्तरीय पहचान देने के लिए पूरे देश में दसे ईमानदारी से अपनाना होगा। हिन्दी साहित्य के सहायक प्राध्यापक डा एसआर बंजारे ने कहा कुछ देशों में लोग हिन्दी भाषा का उपयोग करना शुरू कर दिए है।
अगर अंग्रेजी की तरह हिन्दी भाषा को अंतर्राष्ट्रीय भाषा का दर्जा दिलवाना है तो हमारे देश में ही इस भाषा को पूरी तरह से उपयोग में लाना होगा। इसके अलावा विदेश में इस भाषा की महता बताते हुए व्यापक रूप से प्रचार प्रसार करने की आवश्यकता है। हिन्दी भाषा 1947 के पूर्व जनसंपर्क भाषा बनकर देश को आजादी दिलाने उपयोगी साबित हुई थी। अन्य भाषा की हिंदी भाषा से तुलना नही की जा सकती है। हिन्दी भाषा में कई कवि लेखक हुए हैं जिनके कारण विदेशों में भारतीय साहित्य का नाम रोशन हुआ है। कन्या कालेज की हिन्दी साहित्य की सहायक प्राध्यापक डा माहेनूर सैयदा ने कहा समय के साथ अंग्रेजी भाषा का वर्चस्व बढ़ते जा रहा हैं। छग, मप्र, झारखंड, बिहार, यूपी, दिल्ली में हिन्दी भाषा का बहुत ज्यादा उपयोग होता है लेकिन अन्य दूसरे कई राज्यों में क्षेत्रिय भाषा का उपयोग होता है।
हिन्दी भाषा का उपयोग कम होने से अशिक्षित और कम पढ़े लिखे लोगों के लिए बाहर जाने पर परेशानी का कारण बन जाता है। कन्या कालेज में हिन्दी साहित्य में एमए कर रही छात्रा रेखा मरकाम, नीलम यादव, त्रिवेणी देहारी, रंजीता यादव ने कहा उच्च शिक्षा में अंग्रेजी भाषा का ही उपयोग बढ़ा है। जिससे कई छात्र-छात्राओं के लिए परेशानी बढ़ गई है। अब बड़े शहरों में सभी अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम से ही शिक्षा देना चाहते है।
जिसके कारण हिन्दी भाषा उपेक्षित हुई है। छात्रा सहर बानो, शैलेन्दी नाग ने कहा अब शासकीय और निजी नौकरी प्राप्त करने अंग्रेजी का ज्ञान जरूरी माना जाता है और हिन्दी को उपेक्षित दृष्टि से देखा जाता है। अंग्रेजी स्वास्थ्य विभाग में पदस्थ अलबेला पारा के विश्वेश्वर सिंहसार ने कहा शासकीय और प्राइवेट स्तर पर बहुत सारे काम अंग्रेजी में ही होते है जिससे आम जनमानस परेशान है। हिन्दी में ही सारे काम होना चाहिए । जिससे सभी लोगो के लिए सुविधा हो। शिक्षिका अनुराग चौहान ने कहा अंग्रेजी भाषा भी शेष पेज १५ पर
उपयोग होना चाहिए। लेकिन अंग्रेजी भाषा के बढ़ते वर्चस्व के कारण राष्ट्रीय भाषा को हेय दृष्टि से नही देखना चाहिए। अंग्रेजी भाषा के व्याख्याता घनश्याम वैध ने कहा समय के साथ अंग्रेजी भाषा की व्यापक पहचान विश्व स्तर पर बनी है। दोनों ही भाषा का लोग सम्मान करते है। अंग्रेजी भाषा के बढ़ते विकास के कारण हिन्दी भाषा का विकास अवरुद्ध नहीं हुआ है। बल्कि इसके अन्य दूसरे कारण है !!!!!!!!!!!
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