पैन की नोंक पर
आतुर उमड़ पड़ते शब्द
आज सहमे संकोच में
ठिठके हैं प्रहरों से
मुझ में बंद कथन से असम्पृक्त
अगम,अकथ,असह्य
जानते हैं ये अराजक
जैसे शैतान बच्चों के
अकारण पिट जाने पर
माँ के विवश हाथों
ऐसे गुमसुम चौकन्ने
चाहते हैं बीत जाए
कुछ कठिन वक़्त
यूँ ही बेसबब छितराए
पैन की नोंक पर
कल शायद या फिर कभी
रौ में लहराएँ ये गीतवंशी
फिर अनहद उमग
भूल कर कि यूँ ठिठके थे
चोटिल.गतिबाधित,निरुपाय
एक दिन कुछ प्रहर
पैन की नोंक पर
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