भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद के जीवन की एक घटना है। एक बार उपहार में उन्हें हाथी दांत की एक कलम-दवात मिली। वह उन्हें इतनी प्रिय हो गई कि लिखते समय वे उसी का अधिक प्रयोग करते थे।
जिस कमरे में उन्होंने कलम-दवात रखी थी, उसकी सफाई का काम उनका सेवक तुलसी करता था। एक दिन मेज साफ करते समय कपड़े की फटकार से कलम-दवात नीचे गिरकर टूट गए। राजेंद्र बाबू को जब यह बात पता लगी तो उन्होंने नाराज होते हुए अपने सचिव से कहा- ऐसे आदमी को तुरंत बदल दो।
सचिव ने तुलसी को वहां से हटाकर दूसरा काम दे दिया। उस दिन राजेंद्र बाबू के मन में खलबली मची रही कि आखिर एक मामूली-सी गलती के लिए उन्होंने तुलसी को इतना बड़ा दंड क्यों दिया? लाख सावधानी बरतने पर भी ऐसी घटना किसी के साथ हो सकती है। शाम को उन्होंने तुलसी को बुलवाया।
उसके आते ही राजेंद्र बाबू कुर्सी से उठकर खड़े हो गए और बोले- तुलसी, मुझे माफ कर दो। तुलसी पहले तो सकपका गया, फिर राजेंद्र बाबू के पैरों पर गिरकर क्षमा मांगने लगा। तब राजेंद्र बाबू बोले कि तुम अपनी पहली वाली डच्यूटी पर जाओ, तब मुझे संतोष होगा। कृतज्ञता भरी आंखों से तुलसी ने अपना पुराना काम संभाल लिया।
सार यह है कि व्यक्ति को पद, स्तर, शिक्षा, जाति सभी से परे एक इंसान के रूप में देखने वाले की दृष्टि सम होती है और इसीलिए वह सभी से समान व स्नेहपूर्ण व्यवहार करता है। महानता ऐसे ही व्यवहार से प्राप्त होती है।
जिस कमरे में उन्होंने कलम-दवात रखी थी, उसकी सफाई का काम उनका सेवक तुलसी करता था। एक दिन मेज साफ करते समय कपड़े की फटकार से कलम-दवात नीचे गिरकर टूट गए। राजेंद्र बाबू को जब यह बात पता लगी तो उन्होंने नाराज होते हुए अपने सचिव से कहा- ऐसे आदमी को तुरंत बदल दो।
सचिव ने तुलसी को वहां से हटाकर दूसरा काम दे दिया। उस दिन राजेंद्र बाबू के मन में खलबली मची रही कि आखिर एक मामूली-सी गलती के लिए उन्होंने तुलसी को इतना बड़ा दंड क्यों दिया? लाख सावधानी बरतने पर भी ऐसी घटना किसी के साथ हो सकती है। शाम को उन्होंने तुलसी को बुलवाया।
उसके आते ही राजेंद्र बाबू कुर्सी से उठकर खड़े हो गए और बोले- तुलसी, मुझे माफ कर दो। तुलसी पहले तो सकपका गया, फिर राजेंद्र बाबू के पैरों पर गिरकर क्षमा मांगने लगा। तब राजेंद्र बाबू बोले कि तुम अपनी पहली वाली डच्यूटी पर जाओ, तब मुझे संतोष होगा। कृतज्ञता भरी आंखों से तुलसी ने अपना पुराना काम संभाल लिया।
सार यह है कि व्यक्ति को पद, स्तर, शिक्षा, जाति सभी से परे एक इंसान के रूप में देखने वाले की दृष्टि सम होती है और इसीलिए वह सभी से समान व स्नेहपूर्ण व्यवहार करता है। महानता ऐसे ही व्यवहार से प्राप्त होती है।
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