डॉ.ए.पी.जे अब्दुल कलाम
पूर्व राष्ट्रपति
पिता किसी बच्चे की जिंदगी की दिशा कैसे तय करता है, यह मैं एक छोटे से उदाहरण से बताता हूं। देश की आजादी के फौरन बाद का किस्सा है। हम लोग रामेश्वरम में रहते थे और मेरे पिता को वहां का पंचायत अध्यक्ष चुना गया था। उन्हें इसलिए नहीं चुना गया था कि वह बहुत पैसेवाले थे। उन्हें इसलिए भी नहीं चुना गया था कि वह किसी खास जाति से ताल्लुक रखते थे। उन्हें इसलिए चुना गया था कि वह बहुत अच्छे और सच्चे इंसान थे। जिस दिन उनका चुनाव हुआ, उसी दिन शाम की यह घटना है। मैं बैठकर ज्यॉग्रफी की किताब पढ़ रहा था। तभी घर का दरवाजा खुला और एक सज्जन अंदर चले आए। उन दिनों वहां पर दरवाजे बंद करने का रिवाज नहीं था।
उन सज्जन के हाथ में एक कपड़े में लिपटी हुई कोई चीज थी। उन्होंने कहा कि यह मैं तुम्हारे अब्बू के लिए लाया हूं और वह उस चीज को वहां रखकर चले गए। बाद में अब्बू आए और उन्होंने उसे खोलकर देखा तो उसमें चांदी की बड़ी-सी प्लेट, कटोरियां, कपड़े और मिठाइयां आदि थीं। साथ ही, उन सज्जन की छोड़ी गई चिट भी थी। पिताजी यह देखकर बेहद नाराज हो गए। मैंने पहली बार उन्हें नाराज होते देखा था। उन्होंने मेरी खूब पिटाई की। मैं डर गया और रोने लगा। कुछ देर बाद वह आए और प्यार से मेरे सिर पर हाथ फेरकर मुहम्मद साहब की कही बातें बताईं, जिनके अनुसार जब आप किसी से तोहफा लेते हैं तो एक अहसान के नीचे दब जाते हैं, इसलिए किसी से गैर-वाजिब तोहफा नहीं लेना चाहिए। मनुस्मृति में भी कहा गया है कि तोहफा लेने से मर्यादा कम होती है। यह एक वाकया और इससे मिली सीख मुझे जिंदगी भर याद रही। इस एक घटना से पता चलता है कि पिता का बच्चों की जिंदगी पर क्या असर होता है।
पूर्व राष्ट्रपति
पिता किसी बच्चे की जिंदगी की दिशा कैसे तय करता है, यह मैं एक छोटे से उदाहरण से बताता हूं। देश की आजादी के फौरन बाद का किस्सा है। हम लोग रामेश्वरम में रहते थे और मेरे पिता को वहां का पंचायत अध्यक्ष चुना गया था। उन्हें इसलिए नहीं चुना गया था कि वह बहुत पैसेवाले थे। उन्हें इसलिए भी नहीं चुना गया था कि वह किसी खास जाति से ताल्लुक रखते थे। उन्हें इसलिए चुना गया था कि वह बहुत अच्छे और सच्चे इंसान थे। जिस दिन उनका चुनाव हुआ, उसी दिन शाम की यह घटना है। मैं बैठकर ज्यॉग्रफी की किताब पढ़ रहा था। तभी घर का दरवाजा खुला और एक सज्जन अंदर चले आए। उन दिनों वहां पर दरवाजे बंद करने का रिवाज नहीं था।
उन सज्जन के हाथ में एक कपड़े में लिपटी हुई कोई चीज थी। उन्होंने कहा कि यह मैं तुम्हारे अब्बू के लिए लाया हूं और वह उस चीज को वहां रखकर चले गए। बाद में अब्बू आए और उन्होंने उसे खोलकर देखा तो उसमें चांदी की बड़ी-सी प्लेट, कटोरियां, कपड़े और मिठाइयां आदि थीं। साथ ही, उन सज्जन की छोड़ी गई चिट भी थी। पिताजी यह देखकर बेहद नाराज हो गए। मैंने पहली बार उन्हें नाराज होते देखा था। उन्होंने मेरी खूब पिटाई की। मैं डर गया और रोने लगा। कुछ देर बाद वह आए और प्यार से मेरे सिर पर हाथ फेरकर मुहम्मद साहब की कही बातें बताईं, जिनके अनुसार जब आप किसी से तोहफा लेते हैं तो एक अहसान के नीचे दब जाते हैं, इसलिए किसी से गैर-वाजिब तोहफा नहीं लेना चाहिए। मनुस्मृति में भी कहा गया है कि तोहफा लेने से मर्यादा कम होती है। यह एक वाकया और इससे मिली सीख मुझे जिंदगी भर याद रही। इस एक घटना से पता चलता है कि पिता का बच्चों की जिंदगी पर क्या असर होता है।
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