सभी चाहते हैं कि स्वर्ग मिल जाए या स्वर्ग जैसी स्थितियों का समावेश जिंदगी में हो जाए। दार्शनिकों ने कहा है- जिस ढंग का जीवन हम जीते हैं, उसी ढंग से स्वर्ग और नर्क अपने आसपास निर्मित कर लेते हैं।
एक संत हुए हैं सुंदरदासजी। एक जगह इन्होंने लिखा है - सुंदर सतगुरु आपनैं किया अनुग्रह आई। मोह-निसा में सोवते हमको लिया जगाई।। सुंदरदासजी ने गुरु के महत्व पर बहुत सुंदर लिखा है। जो स्वर्ग की खोज में हों, उन्हें जीवन में गुरु और संत का महत्व समझना चाहिए।
जितनी देर हम संतों के साथ बैठेंगे, समझ लीजिए स्वर्ग के निकट हैं या स्वर्ग में ही हैं। संत के तीन रूप माने गए हैं- पहला तो वे सूरज हैं, जो सोए हैं उन्हें जगाते हैं।
दूसरा, वे पवन की भांति हैं, सोए हुए को हिलाने के लिए हवा की भूमिका में रहते हैं और यदि आदमी तब भी न उठे तो संत पंछी की तरह शोर करेंगे कि अब तो उठ जाओ। सूर्य, पवन और पंछी तीनों का कोई स्थायी ठिकाना नहीं होता।
जो विस्मरण में पड़े हैं, ये उनके भीतर स्मरण कराते हैं। संत के सान्निध्य में समझ में आ जाता है कि स्वर्ग का अर्थ है- परिष्कृत, गुणग्राही, हर शुभ का स्वीकार। फकीर की फकीरी हमें यही समझाती है। जहां आप सहमत होना सीखें, वहीं स्वर्ग घटा है।
सुंदरदासजी की घोषणा है कि जीवन सुंदर तब है, जब सबकुछ स्वीकार्य है और उसी के साथ शांति भी जीवन में उतर जाए। इसलिए स्वर्ग प्राप्ति के लिए संतों का सान्निध्य बनाए रखें।
एक संत हुए हैं सुंदरदासजी। एक जगह इन्होंने लिखा है - सुंदर सतगुरु आपनैं किया अनुग्रह आई। मोह-निसा में सोवते हमको लिया जगाई।। सुंदरदासजी ने गुरु के महत्व पर बहुत सुंदर लिखा है। जो स्वर्ग की खोज में हों, उन्हें जीवन में गुरु और संत का महत्व समझना चाहिए।
जितनी देर हम संतों के साथ बैठेंगे, समझ लीजिए स्वर्ग के निकट हैं या स्वर्ग में ही हैं। संत के तीन रूप माने गए हैं- पहला तो वे सूरज हैं, जो सोए हैं उन्हें जगाते हैं।
दूसरा, वे पवन की भांति हैं, सोए हुए को हिलाने के लिए हवा की भूमिका में रहते हैं और यदि आदमी तब भी न उठे तो संत पंछी की तरह शोर करेंगे कि अब तो उठ जाओ। सूर्य, पवन और पंछी तीनों का कोई स्थायी ठिकाना नहीं होता।
जो विस्मरण में पड़े हैं, ये उनके भीतर स्मरण कराते हैं। संत के सान्निध्य में समझ में आ जाता है कि स्वर्ग का अर्थ है- परिष्कृत, गुणग्राही, हर शुभ का स्वीकार। फकीर की फकीरी हमें यही समझाती है। जहां आप सहमत होना सीखें, वहीं स्वर्ग घटा है।
सुंदरदासजी की घोषणा है कि जीवन सुंदर तब है, जब सबकुछ स्वीकार्य है और उसी के साथ शांति भी जीवन में उतर जाए। इसलिए स्वर्ग प्राप्ति के लिए संतों का सान्निध्य बनाए रखें।
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