इंकलाब जिंदाबाद '' सिर्फ नारा नहीं है ''
modern रिव्यू के संपादक भी रामानंद चटोपाध्याय ने अपनी एक संपादकीय टिपणी में भगत सिंह के नारे '' इंकलाब जिंदाबाद ''
को खून खराबे और अराजकता का प्रतिक बताया भगत सिंह ने 3 दिसंबर 1929 को अपनी और अपने साथी बटुकेश्वर दत्त की
तरह से श्री चटोपाध्याय को पात्र लिखा |
श्री संपादक जी ,
' 'modern रिव्यू ' '
आपने अपने सम्पादित पात्र के दिसंबर 1929 क अंक में एक टिप्पणी ''इंकलाब जिंदाबाद '' के शीर्षक से लिखी है और एस नारे को निरर्थक ठेराने की चेष्टा की है आप सरीखे परिपक्व विचारक तथा अनुभवी और यशस्वी संपादक की रचना में दोष निकलना तथा उसका प्रतिवाद
करना , जिसे प्रतेयक भारतीय सम्मान की द्रिष्टी से देखता है , हमारे लिए एक बड़ी धर्ष्टता होगी | तो भी एस प्रशन का उत्तर देना और यह बताना हम अपना दायित्व समझते है की एस नारे से हमारा क्या अभिप्राय है
यह आवश्यक है , क्यूंकि में इस नारे को सब लोगो तक पहुँचाने का कार्य हमारे हिस्से में आया है ,इस नारे की रचना हमने नहीं की है यही नारा रूस के क्रांतिकारी आन्दोलन में प्रयोग किया गया है प्रसिद्ध समाजवादी लेखक 'अप्टन सिक्लेयर 'ने अपने उपन्यासों ''वोस्टन'' और आइलमें यही नारा कुछ अराजकता वादी क्रांतिकारी पत्रों के मुख से प्रयोग कराया है ,इसका अर्थ जरी रहें और कोई भी व्यवस्था अल्प समय के लिए भी स्थाई न रह सके ,दुसरे शब्दों में देश और समाज में अराजकता फेली रहें |
दीर्घकाल में प्रयोग में आने के कारन इस नारे को एक ऐसे विशेष भावना प्राप्त हो चुकी है ,जो संभव है की भाषा के नियमो एवं कोष के आधार पर इसके शब्दों से उचित तर्कसम्मत रूप में सिद्ध हो पाए ,परन्तु इसके साथ ही नारे से उन विचारों को प्रथक नहीं किया जा सकता ,जो उसके साथ जुड़े हुए है ऐसे समस्त नारे एक ऐसे स्वीक्रत अर्थ के घोतक है ,जो एक सीमा तक उनमे उत्पन्न हो गए है तथा एक सीमा तक उनमे निहित है
उदहारण के लिए हम ''यतीन्द्र नाथ जिंदाबाद '' का नारा लगते है इससे हमारा तात्पर्य यह होता ही की उनके जीवन के महँ कार्यों
आदर्शों तथा उस अथक उत्साह को सदा सदा के लिए बनाये रखें ,इस महानतम बलिदान को उस आदर्श के लिए अकथनीय
कष्ट झेलने एवं असीम बलिदान करने की प्रेरणा दी यह नारा लगाने से हमारी यह लालसा प्रकट होती है की हम भी अपने
आदर्शो के लिए ऐसे ही अथक उत्साह को अपनाये यही वह भावना है ,जिसकी हम प्रशंसा करते हैं इसी प्रकार
हमे ''इन्कलाब ''शब्द का अर्थ भी कोरे शाब्दिक रूप में नहीं लगाना चाहिए |
इस शब्द का उचित एवं अनुचित प्रयोग करने वाले लोगो के हितो के अधर पर इसके साथ विभिन्न अर्थ एवं विभिन्न
विशेस्तायें जोड़ी जाती है , क्रांतिकारियों की द्रष्टि में यह पवित्र वाक्य है ,हमने इस बात को ट्रिब्यूनल के सम्मुख
अपने वक्तव्य में स्पष्ट करने का
प्रयास किया था |
इस वक्तव्य में हमने कहा था की क्रांति (इन्कलाब) का अर्थ अनिवार्य रूप में सशस्त्र आन्दोलन नहीं होता |
बम और पिस्तौल कभी कभी क्रांति को सफल बनाने के साधन मात्र हो सकते है इसमे भी संदेह नहीं है की आन्दोलन में
कभी कभी बम एवं,पिस्तौल एक महत्पूर्ण साधन सिद्ध हो सकते है ,परन्तु केवल इसी कारण से बम और पिस्तौल क्रांति
के पर्यायवाची नहीं हो जाते ,विद्रोह को क्रांति नहीं कहा जा सकता ,यधपि यह हो सकता है की विद्रोह का अंतिम परिणाम क्रांति हो |
प्रगति की आकांशा
इस वाक्य में क्रांति शब्द का अर्थ '' प्रगति के लिए परिवर्तन की भावना एवं आकांशा है लोग साधारणतया जीवन की परंपरागत दशाओं के साथ चिपक जाते है और परिवर्तन के विचार मात्र से ही कपने लगते है यही एक अकर्मण्यता की भावना है ,जिसके स्थान पर क्रांतिकारी भावना जाग्रत करने की आवश्यकता है दुसरे शब्दों में कहा जा सकता है की अकर्मण्यताका वातावरण निर्माण हो जाता है और रुढ़िवादी शक्तियां मानव -समाज को कुमार्ग पर ले जाती है ये परिस्तिथियाँ मानव समाज की उन्नत्ति में गति रोध का कारण बन जाती है
क्रांति की इस भावना से मनुष्य जाति की आत्मा की स्थायीं तोर पर ओतप्रोत रहनी चाहिए ,जिससे की रुढ़िवादी शक्तियां मानव समाज की प्रगति की दौड़ में बाधा डालने के लिए संघठित न हो सके यह आवशयक है की पुरानी व्यवस्था सदेव रहे और वह नै व्यवस्था के लिए स्थान रिक्त करती रहें,जिससे की एक आदर्श व्यवस्था संसार को बिगड़ने से रोक सके यह हमारा वह अभिप्राय जिसको ह्रदय में रखकर हम इन्कलाब जिंदाबाद का नारा बुलंद करते है
भवदीय ---
भगत सिंह , बटुकेश्वर दत्त
modern रिव्यू के संपादक भी रामानंद चटोपाध्याय ने अपनी एक संपादकीय टिपणी में भगत सिंह के नारे '' इंकलाब जिंदाबाद ''
को खून खराबे और अराजकता का प्रतिक बताया भगत सिंह ने 3 दिसंबर 1929 को अपनी और अपने साथी बटुकेश्वर दत्त की
तरह से श्री चटोपाध्याय को पात्र लिखा |
श्री संपादक जी ,
' 'modern रिव्यू ' '
आपने अपने सम्पादित पात्र के दिसंबर 1929 क अंक में एक टिप्पणी ''इंकलाब जिंदाबाद '' के शीर्षक से लिखी है और एस नारे को निरर्थक ठेराने की चेष्टा की है आप सरीखे परिपक्व विचारक तथा अनुभवी और यशस्वी संपादक की रचना में दोष निकलना तथा उसका प्रतिवाद
करना , जिसे प्रतेयक भारतीय सम्मान की द्रिष्टी से देखता है , हमारे लिए एक बड़ी धर्ष्टता होगी | तो भी एस प्रशन का उत्तर देना और यह बताना हम अपना दायित्व समझते है की एस नारे से हमारा क्या अभिप्राय है
यह आवश्यक है , क्यूंकि में इस नारे को सब लोगो तक पहुँचाने का कार्य हमारे हिस्से में आया है ,इस नारे की रचना हमने नहीं की है यही नारा रूस के क्रांतिकारी आन्दोलन में प्रयोग किया गया है प्रसिद्ध समाजवादी लेखक 'अप्टन सिक्लेयर 'ने अपने उपन्यासों ''वोस्टन'' और आइलमें यही नारा कुछ अराजकता वादी क्रांतिकारी पत्रों के मुख से प्रयोग कराया है ,इसका अर्थ जरी रहें और कोई भी व्यवस्था अल्प समय के लिए भी स्थाई न रह सके ,दुसरे शब्दों में देश और समाज में अराजकता फेली रहें |
दीर्घकाल में प्रयोग में आने के कारन इस नारे को एक ऐसे विशेष भावना प्राप्त हो चुकी है ,जो संभव है की भाषा के नियमो एवं कोष के आधार पर इसके शब्दों से उचित तर्कसम्मत रूप में सिद्ध हो पाए ,परन्तु इसके साथ ही नारे से उन विचारों को प्रथक नहीं किया जा सकता ,जो उसके साथ जुड़े हुए है ऐसे समस्त नारे एक ऐसे स्वीक्रत अर्थ के घोतक है ,जो एक सीमा तक उनमे उत्पन्न हो गए है तथा एक सीमा तक उनमे निहित है
उदहारण के लिए हम ''यतीन्द्र नाथ जिंदाबाद '' का नारा लगते है इससे हमारा तात्पर्य यह होता ही की उनके जीवन के महँ कार्यों
आदर्शों तथा उस अथक उत्साह को सदा सदा के लिए बनाये रखें ,इस महानतम बलिदान को उस आदर्श के लिए अकथनीय
कष्ट झेलने एवं असीम बलिदान करने की प्रेरणा दी यह नारा लगाने से हमारी यह लालसा प्रकट होती है की हम भी अपने
आदर्शो के लिए ऐसे ही अथक उत्साह को अपनाये यही वह भावना है ,जिसकी हम प्रशंसा करते हैं इसी प्रकार
हमे ''इन्कलाब ''शब्द का अर्थ भी कोरे शाब्दिक रूप में नहीं लगाना चाहिए |
इस शब्द का उचित एवं अनुचित प्रयोग करने वाले लोगो के हितो के अधर पर इसके साथ विभिन्न अर्थ एवं विभिन्न
विशेस्तायें जोड़ी जाती है , क्रांतिकारियों की द्रष्टि में यह पवित्र वाक्य है ,हमने इस बात को ट्रिब्यूनल के सम्मुख
अपने वक्तव्य में स्पष्ट करने का
प्रयास किया था |
इस वक्तव्य में हमने कहा था की क्रांति (इन्कलाब) का अर्थ अनिवार्य रूप में सशस्त्र आन्दोलन नहीं होता |
बम और पिस्तौल कभी कभी क्रांति को सफल बनाने के साधन मात्र हो सकते है इसमे भी संदेह नहीं है की आन्दोलन में
कभी कभी बम एवं,पिस्तौल एक महत्पूर्ण साधन सिद्ध हो सकते है ,परन्तु केवल इसी कारण से बम और पिस्तौल क्रांति
के पर्यायवाची नहीं हो जाते ,विद्रोह को क्रांति नहीं कहा जा सकता ,यधपि यह हो सकता है की विद्रोह का अंतिम परिणाम क्रांति हो |
प्रगति की आकांशा
इस वाक्य में क्रांति शब्द का अर्थ '' प्रगति के लिए परिवर्तन की भावना एवं आकांशा है लोग साधारणतया जीवन की परंपरागत दशाओं के साथ चिपक जाते है और परिवर्तन के विचार मात्र से ही कपने लगते है यही एक अकर्मण्यता की भावना है ,जिसके स्थान पर क्रांतिकारी भावना जाग्रत करने की आवश्यकता है दुसरे शब्दों में कहा जा सकता है की अकर्मण्यताका वातावरण निर्माण हो जाता है और रुढ़िवादी शक्तियां मानव -समाज को कुमार्ग पर ले जाती है ये परिस्तिथियाँ मानव समाज की उन्नत्ति में गति रोध का कारण बन जाती है
क्रांति की इस भावना से मनुष्य जाति की आत्मा की स्थायीं तोर पर ओतप्रोत रहनी चाहिए ,जिससे की रुढ़िवादी शक्तियां मानव समाज की प्रगति की दौड़ में बाधा डालने के लिए संघठित न हो सके यह आवशयक है की पुरानी व्यवस्था सदेव रहे और वह नै व्यवस्था के लिए स्थान रिक्त करती रहें,जिससे की एक आदर्श व्यवस्था संसार को बिगड़ने से रोक सके यह हमारा वह अभिप्राय जिसको ह्रदय में रखकर हम इन्कलाब जिंदाबाद का नारा बुलंद करते है
भवदीय ---
भगत सिंह , बटुकेश्वर दत्त
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