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Kuch log ese hote hai jo itihash padhte hai,Kuch Ithihash Padhate hai, Kuch ese hote hai Jo NYDC mein aate hai Or Khud Itihash Banate Hai. Jai Hind Jai Bharat!...Khem Chand Rajora....A Great Leader's Courage to fulfill his Vision comes from Passion, not Position...Gajendra Kumar....National Youth Development Committee is a Platform which remove the hesitation and improve the motivation and talent of the Youth...Manu Kaushik..!!

About Manu

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मैं अपने प्यारे भारत को स्वर्ग से भी सुंदर बनाना चाहता हूँ जहाँ देवता भी आने को तरसें..इसे फ़िर से सोने की चिडि़या और विश्वगुरु बनाना चाहता हूँ ना सिर्फ़ धर्म के मामले में बल्कि हरेक क्षेत्र में..अपने देश को मैं फ़िर से इतना शक्तिशाली बना देना चाहता हूँ कि अगर ये जम्हाई भी ले ले तो पूरे विश्व में तूफ़ान आ जाय. मैं अपने भारतवर्ष ,अपने माता-पिता तथा सनातन वैदिक धर्म से अगाध प्रेम और सम्मान करता हूँ |
हमारे बारे में, हम बताएँगे, फिर भी, क्या आप समझ पाएंगे, नहीं न, फिर क्या, हम बताते आप उलझ जाते, आप समझते तो हम मुकर जाते, क्यूंकि अब किसी को किसी के बारे में जानने की, न तो चाहत है और न ही फुर्सत है |
वन्दे मातरम्... जय हिंद... जय भारत...
कोशिश तो कोई करके देखे,यहाँ सपने भी सच होते है ।
ये दुनिया इतनी बुरी नहीं, कुछ लोग अच्छे भी होते है ।।
~ मनु कौशिक

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Tuesday, 21 August 2012

क्रांतिकारी दिनेश गुप्ता


दिनेश गुप्ता का जन्म 6 दिसंबर 1911में ग्राम जोशोलोंग जिला मुंशीगंज (वर्तमान बंगलादेश) में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात स्नातक शिक्षा प्राप्त करने हेतु ढाका कॉलेज में प्रवेश लिया। वहीं दिनेश गुप्ता ने सन १९२८ में बंगाल क्रांतिकारी संघ (नेताजी सुभाष चन्द्र बोस द्वारा गठित) की सदस्यता ग्रहण की। जो प्रारंभ में राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी का घटक दल थी परन्तु कालान्तर में कांग्रेस की नीतियों से खिन्न होकर स्वयं को अलग कर सशस्त्र क्रांति से जोड़ लिया एवं क्रूर अँगरेज़ अधिकारीयों को दंड देने की ठानी।

स्वतंत्र भारत में आज के इतिहासकारों ने एक पक्षपातपूर्ण धारणा बना डाली हैं कि भारत पर राज करने वाले अंग्रेजों को यहाँ से भगाने में अहिंसा का झंडा लेकर चलने वालों का ही योगदान था जबकि गर्म दल से सम्बंधित सशत्र क्रांति करने वाले, अपने जीवन की आहुति देने वाले,अपने प्राणों को न्योछावर करने वाले हजारों ऐसे क्रांतिकारियों की अवहेलना न केवल उन गुमनाम शहीदों का अपमान हैं अपितु भारत के इतिहास के साथ अन्याय भी हैं.अंग्रेज अफसरों द्वारा लिखे गए लेखों, पुस्तकों से पता चलता हैं की उन्हें भारत में रहते हुए सबसे ज्यादा भय,डर अगर किसी से लगता था तो वो सर पर कफ़न बांध कर, हाथ में पिस्तोल लेकर आज़ादी का गीत गाते हुए उन दीवानों से ,उन जवान युवकों से जिन्हें अपने घर,परिवार,आमदनी, रोजी-रोटी की परवाह न थी अगर परवाह थी तो बस केवल और केवल भारत देश को आजाद करवाने की.आज की जवान पीढ़ी विशेषकर भारत के पूर्वी हिस्से यानि बंगाल से जो सम्बन्धित नहीं हैं उनमें से कितनो ने अपने जीवन में क्रांतिवीर दिनेश चन्द्र गुप्ता का नाम सुना हैं जिन्होंने भारत माँ की बलिवेदी पर केवल १९ वर्ष की अल्पायु में हस्ते हस्ते अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे.
अविभाजित भारत के मुन्सीगंज जिले के जोशागंज गाँव में आज से ठीक १०० वर्ष पहले वीर दिनेश चन्द्र गुप्ता का जन्म हुआ था. बचपन से कुशाग्र बुद्धि दिनेश चन्द्र भारतीयों के अधिकारों को अंग्रेजी बूटों के तले कुचलते देख व्यथित हो उठते थे.१९२८ में आप नेताजी सुभाष चन्द्र बोस द्वारा स्थापित करे गए क्रन्तिकारी संगठन बंगाल वोलुयुंटर से जुड़ गए और अस्त्र-शास्त्र में ट्रेनिंग लेकर पारंगत हो गए.  उन दिनों अंग्रेज अधिकारी किसी भी भारतीय क्रन्तिकारी को यदि पकड़ लेते तो उस पर इतने अत्याचार करते कि वह दोबारा क्रांति का नाम न ले. सिम्पसन नामक एक अंग्रेज अधिकारी तो अपने अत्याचारों के लिए अत्यंत कुख्यात हो गया था.

दिनेश चन्द्र इस युवा क्रांतिकारियों के दिमाग में चल रहे मानसिक द्वन्द को जीतने कि योजना बनाने में लग गए जिससे न केवल अंग्रेज सरकार के मन में क्रांतकारियों का भय छा जाये बल्कि उसके साथ साथ अन्य क्रांतिकारियों का मनोबल भी बढ जाये. उन्होंने सरकार के सबसे सुरक्षित स्थान रईटर बिल्डिंग में घुस कर अंग्रेजों को सबक सिखाने कि योजना बनाई. ८ दिसम्बर १९३० को बादल गुप्ता और बिनोय बसु के साथ दिनेश चन्द्र अंग्रेजी वेश भूषा में, अपने कोट में रिवोल्वर दबाये हुए आसानी से रईटर बिल्डिंग में घुस गए. सबसे पहले सिम्पसन को ही उसकी करनी का फल यमलोक पंहुचा कर दिया गया. इस अप्रत्याशित हमले से पुलिस  विभाग में मानों भूचाल ही आ गया. आनन फानन में तीनों को घेर लिया गया. चारों तरफ से फंसते देख अपने आपको जीवित न पकडे जाने का प्रण लिए हुए युवकों ने आत्मदाह का निश्चय किया.बादल गुप्ता ने जहर खाकर वहीँ प्राण दे दिए, बिनोय बसु और दिनेश चन्द्र ने अपने आपको गोली मार ली. बिनोय का हस्पताल में निधन हो गया जबकि दिनेश चन्द्र को बचा लिया गया.
इसके बाद वही राजनैतिक ड्रामा शुरू हुआ और अंत में केवल १९ वर्ष कि अवस्था में ७ जुलाई १९३१ को दिनेश चन्द्र को फँसी के तख्ते पर चड़ा दिया गया.
आज उनके १०० वें जन्मदिवस के अवसर पर ब्रिटिश सरकार के घर में घुस कर उसकी नींव को हिला देने वाले वीर दिनेश चन्द्र गुप्ता को हम स्मरण करते हैं जिनका बलिदान आज हमे अन्याय के विरुद्ध प्रेरणा दे रहा हैं और देता रहेगा.आजाद भारत में जन्म लेने वालों पर दिनेश चन्द्र सरीखे वीर क्रांतिकारियों का कितना उपकार हैं इतिहास इसका गवाह हैं.





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